झारखंड आंदोलन के बौद्धिक अगुआ बिशप निर्मल मिंज का आज शाम निधन हो गया. वे पिछले कुछ दिनों से कोरोना से पीड़ित थे. उनका निधन डिबडीह, रांची स्थित आवास में हुआ. वे 94 वर्ष के थे. उनके निधन के बाद झारखंड में शोक का माहौल है और सोशल मीडिया में उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है. कोई उन्हें शिक्षाविद के रूप में याद कर रहा है तो कोई उन्हें झारखंड आंदोलन की बौद्धिक खुराक बता रहा है.
थियोलॉजिकल कॉलेज के प्राचार्य व गोस्सनर कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य रहे, एनडब्ल्यूजीइएल चर्च के प्रथम बिशप डॉ निर्मल मिंज का 94 वर्ष की आयु में हुआ. उनका अंतिम संस्कार गुरुवार छह मई को डिबडीह स्थित कब्रिस्तान में होगा.
बिशप निर्मल मिंज को 2017 में साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान से भी नवाजा गया था.गोस्सनर कॉलेज के प्राचार्य के रूप में उन्होंने इतिहास में पहली बार झारखंड के आदिवासी और क्षेत्रीय भाषाओं की पढाई शुरू करवाई. उनके ही प्रयासों से रांची विवि में भी इन भाषाओं की पढ़ाई शुरू हुई. वे 1970 से 1976 तक स्टडी कमीशन ऑफ द लूथेरन वर्ल्ड फेडरेशन के सदस्य रहे.
चर्च में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाते हुए उन्होंने कुड़ुख में गिरजा की धर्मविधि चलायी और कुड़ुख में गीत गाना भी शुरू कराया. इसमें जस्टिन एक्का ने उनकी काफी मदद की. छोटानागपुर की मसीही कलीसिया में मांदर जैसे आदिवासी वाद्य यंत्र के प्रथम प्रयोग का श्रेय भी उन्हें जाता है.1980 के मध्य से उन्होंने झारखंड अलग प्रांत के लिए एक बौद्धिक मार्गदर्शक के रूप में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ काम करना शुरू किया. 1987 में गठित झारखंड समन्वय समिति के सक्रिय सदस्य बने.
उनकी शिक्षा चैनपुर, गुमला, पटना यूनिवर्सिटी, सेरामपुर यूनिवर्सिटी और अमेरिका के लूथर सेमिनरी, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा में हुई थी. उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से पीएचडी किया था. वे अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी, चार बेटियां और भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं. उनकी बड़ी बेटी सोना झरिया मिंज सिदो कान्हू मुर्मू विवि की वीसी हैं, वहीं दूसरी बेटी डॉ शांति दानी मिंज सीएमसी वेल्लोर में डॉक्टर हैं. तीसरी बेटी पादरी निझर मिंज हैं और चौथी बेटी अकय मिंज नेशनल हेल्थ मिशन की स्टेट प्रोग्राम कोर्डिनेटर हैं.