BIT मेसरा के विद्यार्थियों ने 5 दिन में तैयार किया कैन सैटेलाइट, आज होगी टेस्टिंग
राज्य के BIT मेसरा को भी जोड़ा गया है. संस्था के यूजी, पीजी और रिसर्च स्कॉलर के 40 विद्यार्थियों की टीम ने एआइसीटीइ आइडिया लैब के सहयोग से कैन सैटेलाइट (कैनसैट) तैयार की है. इसमें इसरो से पहुंचे दो वैज्ञानिक ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया.
रांची, अभिषेक रॉय : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान का नारा देते हुए विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि बढ़े और तकनीकी विज्ञान में देश का स्थान सर्वश्रेष्ठ हो, इसकी पहल की है. साथ ही आजादी की 75वीं वर्षगांठ (अमृत महोत्सव) पर ’75 स्टूडेंट सैटेलाइट मिशन’ की घोषणा की थी. इसरो की ओर से इसे प्रभावी बनाया जा रहा है. तकनीकी विज्ञान और निर्माण की दिशा में आगे बढ़ते हुए देशभर के 75 संस्थानों का चयन किया गया है. इसको लेकर इसरो के वैज्ञानिक विद्यार्थियों को सैटेलाइट निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हैं. इसी कड़ी से राज्य के बीआइटी मेसरा को भी जोड़ा गया है. संस्था के यूजी, पीजी और रिसर्च स्कॉलर के 40 विद्यार्थियों की टीम ने एआइसीटीइ आइडिया लैब के सहयोग से कैन सैटेलाइट (कैनसैट) तैयार की है. इसमें इसरो से पहुंचे दो वैज्ञानिक उपाग्रह एमेच्योर रेडियो क्लब के स्टेशन डायरेक्टर बीए सुब्रमणि और प्रो डॉ आरआर इलांगोवन ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया.
पांच दिन में सैटेलाइट पूरा करने का लिया चैलेंज
बीआईटी मेसरा के विद्यार्थियों ने पांच दिनों में सैटेलाइट का निर्माण करने का चैलेंज लिया है. छोटे आकार के कैन सैटेलाइट में जाइरोस्कोप, कैमरा, एक्सेलेरोमीटर और टेंपरेचर एंड ह्यूमिडिटी सेंसर स्थापित किया गया है. सैटेलाइट को जमीन से 100 फीट की ऊंचाई पर भेज कर परीक्षण किया जायेगा. स्पेस इंजीनियरिंग एंड रॉकेट्री के विभागाध्यक्ष डॉ प्रियांक कुमार ने बताया कि विद्यार्थियों की ओर से तैयार सैटेलाइट को हिलियम गैस युक्त बैलून या ड्रोन की मदद से आसमान में भेजा जायेगा. वहां से कैनसैट के सेंसर वायुमंडल में मौजूद विभिन्न गैस और कणों की जांच की जायेगी. एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंच कर कैनसैट का सेंसर कंप्यूटर को सिग्नल भेजेगा, जिसका आकलन कर निश्चित रिपोर्ट तैयार की जायेगी. गुरुवार को टीम कैनसैट की टेस्टिंग करेगी.
लागत कम करने का हो रहा प्रयास
स्टूडेंट सैटेलाइट निर्माण टीम में संस्था के विभिन्न संकाय के विद्यार्थियों को जोड़ा गया है. इनमें स्पेस इंजीनियरिंग एंड रॉकेट्री, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, रिमोट सेंसिंग इंजीनियरिंग और मैकनिकल इंजीनियरिंग के विद्यार्थी शामिल हैं. टीम में शामिल 40 विद्यार्थी पहले से एआइसीटीइ आइडिया लैब से जुड़ कर काम कर रहे हैं. सैटेलाइट निर्माण में जुटे विद्यार्थियों ने कहा कि टीम निर्माण की लागत कम करने का प्रयास कर रही है. विद्यार्थी कैनसैट निर्माण के बाद लांच पैड तैयार करने की प्रक्रिया में जुटेंगे.
अंतरिक्ष में मौजूदा सैटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखी
कैनसैट टीम ने निर्माण के साथ-साथ अंतरिक्ष में मौजूदा सैटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करने की प्रक्रिया सीख ली है. विद्यार्थियों ने सैट एंटीना की मदद से अंतरिक्ष में मौजूद नोवा सैटेलाइट (जो रांची रीजन से 10:58 से 11:07 बजे के बीच गुजरा) से सिग्नल प्राप्त किया. डॉ प्रियांक ने बताया कि विद्यार्थियों को सिग्नल रिसीविंग के साथ-साथ ट्रांसमिट की प्रक्रिया से भी अवगत कराया गया है. इसमें इस्तेमाल होने वाले हैम रेडियो और हैम रेडियो लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया की जानकारी दी गयी. वहीं, इसरो के वैज्ञानिक डॉ आरआर इलांगोवन की देखरेख में विद्यार्थियों ने अंतरिक्ष में मौजूद एस्ट्रोनॉट से वार्ता करने का भी प्रशिक्षण लिया. इसके साथ ही विद्यार्थियों को सैटेलाइट सिग्नल को कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से ऑन बोर्ड कंप्यूटर में निश्चित डाटा तैयार करने की प्रक्रिया का जानकारी दे दी गयी है.
पूर्व में लांच व्हीकल तैयार करने में सफल रही थी टीम
संस्था के विद्यार्थी पूर्व में भी इसरो से जुड़ कर काम कर चुकी है. बीते 10 वर्षों में इसरो के कई स्पांसर प्रोजेक्ट को पूरा कर चुकी है. इसमें मुख्य रूप से सैटेलाइट लांच व्हीकल- वीएसएलवी अैर जीएसएलवी को तैयार करने का काम किया जा चुका है. डॉ प्रियांक ने बताया कि सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग का काम पूरा होने के बाद इसे विभाग के कोर्स में शामिल किया जायेगा. इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को देश के लिए जरूरी सैटेलाइट के निर्माण से जोड़ना और वैज्ञानिक के रूप में विकसित करना है.
स्टूडेंट सैटेलाइट देश के विकास में सहयोगी
इसरो के वैज्ञानिक डॉ आरआर इलांगोवन ने बताया कि सैटेलाइट की मदद से किसी भी निश्चित डाटा का सटीक आंकलन किया जा सकता है. स्टूडेंट सैटेलाइट का उद्देश्य कम लागत में एक निश्चित तथ्य के लिए सैटेलाइट को विकास करना है. उदाहरण के तौर पर बीआइटी मेसरा अगर ऐसा सैटेलाइट बनाता है जो केवल वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा की जांच करेगा, तो इसका इस्तेमाल देश को कार्बन फ्री बनाने में किया जा सकेगा. इसके अलावा विद्यार्थी अगर सैटेलाइट के लिए जरूरी सेंसर तैयार करना सीख लेते हैं, तो यह इसरो के चुनिंदा वैज्ञानिकों के पेयलोड को कम करने का काम करेगा. संस्था के विद्यार्थी बेहतर काम कर रहे हैं. ’75 स्टूडेंट सैटेलाइट मिशन’ के तहत अगर सैटेलाइट आइडिया चयनित हुआ तो, अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले 75 सैटेलाइट में बीआइटी मेसरा का एक सैटेलाइट होगा.
परीक्षण कर प्रोटोटाइप की पहल की जायेगी
बीआइटी मेसरा विद्यार्थियों की ओर से तैयार किये गये सैटेलाइट मॉडल का परीक्षण कर उसके प्रोटोटाइप की पहल करेगा. डॉ प्रियांक ने बताया कि स्टूडेंट सैटेलाइट को मूल रूप से पर्यावरण संबंधी डेटा हासिल करने के लिए तैयार किया जा रहा है. जरूरी मानकों के आधार पर सैटेलाइट पर्यावरण और वायुमंडल की मौजूदा स्थिति की जानकारी देगा. इस आइडिया को हाई एंड प्रोसेस में बदला जायेगा. अंतिम रूप से सफल होने पर स्टूडेंट सैटेलाइट को प्रोटोटाइप के लिए भेज दिया जायेगा. अनुमति मिली, तो इसरो से संपर्क कर स्टूडेंट सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने की पहल की जायेगी.