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सीता सोरेन के लिए भाजपा को तलाशना होगा नया ठौर, जामा में फंस सकता है पेच

झामुमो छोड़ कर भाजपा में शामिल हुई सीता सोरेन के सामने आनेवाले दिनों में राजनीतिक चुनौतियां बढ़ गयी हैं.

रांची. झामुमो छोड़ कर भाजपा में शामिल हुई सीता सोरेन के सामने आनेवाले दिनों में राजनीतिक चुनौतियां बढ़ गयी हैं. दुमका से भाजपा ने सीता साेरेन को उतार कर बड़ा राजनीतिक दांव चला था. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के गढ़ में भाजपा सीता सोरेन के सहारे भी जीत नहीं पायी. दो बहुओं की बीच की लड़ाई का यह चुनावी रणक्षेत्र बना गया था. सीता सोरेन आक्रामक रहीं और हेमंत सोरेन पर कई आरोप लगाये. चुनाव में सहानुभूति बटोरने की कोशिश हुई, लेकिन झामुमो की ओर से पूरे संयम-धैर्य के साथ विवाद से दूर रहने की रणनीति पर काम हुआ. झामुमो का बूथ मैनेजमेंट से लेकर कल्पना सोरेन का कैंपेन प्रभावशाली रहा. झामुमो के प्रत्याशी नलिन सोरेन वोटरों को साधने में कामयाब रहे. दुमका को झामुमो यह बता पाया कि शिबू सोरेन की विरासत उनके पास है. भाजपा सीता सोरेन को शिबू परिवार से जोड़ कर प्रोजेक्ट करने में विफल रही. बहरहाल अब संताल परगना की राजनीति में सीता सोरेन के सामने कई चुनौती होगी. जामा से उनके चुनाव लड़ने में पेच फंस सकता है. सीता सोरेन ओडिशा की रहनेवाली हैं. विधानसभा चुनाव में एसटी आरक्षित सीट से लड़ने में तकनीकी परेशानी हो सकती है. झामुमो ने तो कल्पना सोरेन के लिए गांडेय जैसे गैर आरक्षित सीट को नया राजनीतिक ठिकाना बना लिया है. भाजपा को आनेवाले चुनाव में सीता सोरेन के लिए भी नयी राजनीतिक जमीन तलाश करनी होगी. भाजपा में गैर आरक्षित सीट से मौका मिलना, शायद संभव ना हो. इधर सीता सोरेन की दो बेटियां जयश्री सोरेन और राजश्री सोरेन की सक्रियता बढ़ी है. दोनों ही बेटियों ने मां की ओर से मोर्चा संभाला है. एक्स के माध्यम से लगातार ये झामुमो पर हमलावर हैं. आने वाले राजनीति में भाजपा इनमें से किसी बेटी को प्रोजेक्ट कर सकती है. बेटियों की दावेदारी जामा से आने वाले विधानसभा चुनाव में हो सकती है.

संताल परगना में झामुमो से निकल कर नेता नहीं कर पाये कमाल

संताल परगना झामुमो का मजबूत गढ़ रहा है. 18 विधानसभा वाले संताल परगना में पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो ने अकेले नौ सीट पर बाजी मारी थी. संताल परगना में झामुमो छोड़ कर जाने वाले नेता कमाल नहीं कर पाते हैं. झामुमो की राजनीति में धाक रखने वाले सूरज मंडल ने रास्ता अलग किया, तो फिर झारखंड की राजनीति से गुम हो गये. स्टीफन मरांडी, हेमलाल मुर्मू जैसे बड़े नेताओं ने भी कभी झामुमो छोड़ा था. झामुमो से अलग हो कर एक चुनाव स्टीफन जीत गये थे, हेमंत सोरेन को ही हराया था. लेकिन बाद में वह चुनाव नहीं जीत पाये और झामुमो में वापस हुए. हेमलाल मुर्मू राजमहल से चुनाव लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली.

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