नेत्रहीन बच्चों को 10वीं के बाद एडमिशन लेने में होती है मुश्किल
इस वर्ष संत मिखाइल ब्लाइंड स्कूल से सात बच्चों ने मैट्रिक की परीक्षा पास की है. अब इन बच्चों के समक्ष आगे पढ़ाई जारी रखने की समस्या है.
रांची. इस वर्ष संत मिखाइल ब्लाइंड स्कूल से सात बच्चों ने मैट्रिक की परीक्षा पास की है. अब इन बच्चों के समक्ष आगे पढ़ाई जारी रखने की समस्या है. इसकी वजह यह है कि रांची में पल्स टू या इंटर कॉलेज इन बच्चों के नामांकन लेने में आनाकानी करते हैं. संत मिखाइल स्कूल की टॉपर निधि ने बताया कि वह आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना चाहती है, क्योंकि वहां नेत्रहीन बच्चों को भी अच्छी सुविधाएं मिलती है. रांची में ऐसी सुविधाओं का अभाव है. संत मिखाइल के पूर्व छात्र शुभोदीप तरफदार ने कहा कि मैट्रिक के बाद रांची में कई कॉलेजों में दाखिले की कोशिश की, लेकिन सबका रवैया टाल-मटोल वाला रहा. कहा गया कि सीढ़ियां चढ़ने उतरने में परेशानी होगी, इसलिए नामांकन नहीं ले सकते. कई कॉलेजों में भटकने के बाद उसका दाखिला संत पॉल्स कॉलेज में हुआ. एक और नेत्रहीन छात्रा एनी मेरी होरो भी अभी संत पॉल्स कॉलेज में ही पढ़ाई कर रही है. संत मिखाइल ब्लाइंड स्कूल की प्राचार्य सरिता तालान ने कहा कि 10वीं के बाद ज्यादातर बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है, क्योंकि यहां के शिक्षण संस्थान नेत्रहीन बच्चों का एडमिशन लेना नहीं चाहते. दिल्ली और देहरादून में नेत्रहीन बच्चों को अच्छी सुविधाएं मिलती हैं. लेकिन हर अभिभावक आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं हैं कि अपने बच्चों को दूसरे शहरों में भेज सके. इसके अलावा यह भी चिंता रहती है कि बाहर इन बच्चों की देखभाल कौन करेगा. सरिता तालान ने कहा कि स्कूल की तरफ से कई बार जैक को लिखकर दिया गया है कि स्कूल को प्लस टू की मान्यता दी जाये. इससे नेत्रहीन बच्चों को अपने ही शहर में 12वीं तक की पढ़ाई करने में सुविधा होती. इस मामले पर संत पॉल्स कॉलेज के प्राचार्य डॉ अनुज कुमार तिग्गा ने कहा कि उनके कॉलेज में दो नेत्रहीन बच्चे पढ़ रहे हैं. उन्हें भी पढ़ाई का मौका मिलना चाहिए. हम सिर्फ इसलिए नहीं रोक सकते कि वे नेत्रहीन हैं.
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