आंखों में रोशनी को तरस रहे झारखंड के दृष्टिहीन और जमशेदपुर से कॉर्निया भेजा जा रहा बंगाल

राज्य के कई सरकारी अस्पतालों के आई बैंक में कॉर्निया संग्रहित करने की व्यवस्था है. इसके बावजूद वे इसमें रुचि नहीं दिखाते हैं, जबकि निजी अस्पताल इसे लेकर सजग रहते हैं. यही वजह है कि निजी नेत्रालयों के मुकाबले सरकारी अस्पतालों में कॉर्निया ग्राफ्टिंग का आंकड़ा बेहद खराब है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 3, 2023 6:24 AM

रांची, राजीव पांडेय: स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) ने नियम बना रखा है कि किसी भी मृत व्यक्ति के शरीर से निकाले गये स्वस्थ अंग को सबसे पहले अपने राज्य में जरूरतमंद व्यक्ति को प्रत्यारोपित किया जायेगा. किसी अंग के प्रत्यारोपण की सुविधा नहीं होने की स्थिति में ही वह अंग दूसरे राज्य को भेजा जायेगा. फिलहाल, अन्य अंगों के प्रत्यारोपण की बात छोड़ कर केवल कॉर्निया की बात करते हैं. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स समेत कई अन्य अस्पतालों में कॉर्निया के संग्रहण और संरक्षण की व्यवस्था है. वहीं, सैंकड़ों दृष्टिहीन दुनिया देखने के लिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन, राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले से हर महीने चार से छह कॉर्निया पश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित निजी अस्पतालों में भेजे जा रहे हैं.

फाउंडेशन की पदाधिकारी तरु गांधी की दलील

यह काम जमशेदपुर की स्वयंसेवी संस्था ‘रोशनी फाउंडेशन’ द्वारा किया जा रहा है. यह सब स्वास्थ्य विभाग, मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों और स्वयंसेवी संस्थाओं के बीच आपसी तालमेल की कमी के कारण हो रहा है. इस मामले को लेकर फाउंडेशन की पदाधिकारी तरु गांधी की दलील है कि जमशेदपुर से रांची रिम्स या अन्य सक्षम अस्पताल तक कॉर्निया भेजने का कोई सही सरकारी व्यवस्था नहीं है, इसलिए मजबूरन उन्हें कॉर्निया बाहर भेजना पड़ता है. हालांकि, उनकी दलील के साथ यह सवाल भी उठता है कि जब कॉर्निया जमशेदपुर से कोलकाता भेजा जा सकता है, तो रिम्स या अन्य मेडिकल कॉलेज में क्यों नहीं?

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सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की व्यवस्था भी लचर

राज्य के कई सरकारी अस्पतालों के आई बैंक में कॉर्निया संग्रहित करने की व्यवस्था है. इसके बावजूद वे इसमें रुचि नहीं दिखाते हैं, जबकि निजी अस्पताल इसे लेकर सजग रहते हैं. यही वजह है कि निजी नेत्रालयों के मुकाबले सरकारी अस्पतालों में कॉर्निया ग्राफ्टिंग का आंकड़ा बेहद खराब है. मिसाल के तौर पर रिम्स के आई बैंक को पिछले दो महीनों में मात्र चार कॉर्निया प्राप्त हुए, जिसमें तीन का उपयोग हुआ. जबकि एक कॉर्निया में रोशनी की क्वालिटी खराब हाेने के कारण उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सका. वहीं, शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज (एसएनएमएमसी) धनबाद में आई बैंक तो है, लेकिन कॉर्निया के सर्जन नहीं हैं. ऐसे में यहां से प्राप्त हुआ कॉर्निया रिम्स भेज दिया जाता है. जबकि, एमजीएम जमशेदपुर में आई बैंक है ही नहीं.

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सचिव ने भी माना : सरकारी आई बैंक की व्यवस्था ठीक नहीं

स्वास्थ्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने भी सरकारी आई बैंकों की व्यवस्था को सुधारने पर जोर दिया है. वे मानते हैं कि आई बैंक के डॉक्टर रात के समय कॉर्निया संग्रहित करने में रुचि नहीं दिखाते हैं. इस वजह से मृतक के परिजन निजी अस्पतालों या एनजीओ की शरण में चले जाते हैं. इसके अलावा विभाग के पास ऐसा कोई पोर्टल नहीं है, जिससे निजी अस्पताल या एनजीओ सरकार को कॉर्निया संग्रहण की जानकारी दे पायें.

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अंगदान को बढ़ावा देने के लिए राज्यस्तरीय बैठक आज

राज्य में अंगदान को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग की अहम बैठक मंगलवार को होनी है. इसमें रिम्स सहित राज्य के कई आई बैंक के पदाधिकारी शामिल होंगे. सोटो की टीम के अलावा अभियान निदेशक, राज्य अंधापन नियंत्रण पदाधिकारी, रिम्स निदेशक, बिहार आई बैंक, कश्यप मेमोरियल आई बैंक और जमशेदपुर आई बैंक के अधिकारी शामिल होंगे. सोटो के नोडल पदाधिकारी डॉ राजीव रंजन भी इस बैठक में मौजूद रहेंगे.

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