झारखंड में विकसित हो रही ज्यादा फल-फूल देने वाली महुआ की ब्रीड, रांची की नर्सरी में तैयार हो रहे पौधे
Prabhat Khabar Exclusive: झारखंड के आदिवासी इसे खाते तो हैं ही, इसके फल और फूल को बेचकर उनकी अच्छी-खासी कमाई भी हो जाती है. भारत सरकार ने आदिवासियों की आय बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर काम शुरू किया है. ज्यादा फल-फूल देने वाले महुआ के पेड़ का विकास भी उसी का हिस्सा है.
Prabhat Khabar Exclusive: झारखंड में ज्यादा फल-फूल देने वाले महुआ के पेड़ तैयार किये जा रहे हैं. केंद्र सरकार की संस्था वन उत्पादकता संस्थान (FPI) इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के मातहत काम करने वाली वन उत्पादकता संस्थान की राजधानी रांची में कटहल मोड़ के पास विशाल नर्सरी है, जिसमें अलग-अलग तरह के पौधों की अलग-अलग किस्में विकसित की जा रही हैं.
आदिवासियों की आय बढ़ाने की केंद्र की पहल
झारखंड के आदिवासी इसे खाते तो हैं ही, इसके फल और फूल को बेचकर उनकी अच्छी-खासी कमाई भी हो जाती है. भारत सरकार ने आदिवासियों की आय बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर काम शुरू किया है. ज्यादा फल-फूल देने वाले महुआ के पेड़ का विकास भी उसी का हिस्सा है. वन उत्पादकता संस्थान के बीडी पंडित ने बताया कि रांची स्थित संस्थान की नर्सरी में महुआ का कलम तैयार किया जता है.
वन उत्पादकता संस्थान में तैयार होते हैं रूट-शूट
उन्होंने बताया कि कटिंग से इसका कलम तैयार होता है. उसमें बालू, गिट्टी और गोबर को मिक्स करके डाला जाता है, जो खाद के रूप में काम करता है. कुछ ही दिनों में रूट-शूट तैयार हो जाता है. इसके बाद उससे पौधा निकलने लगता है. श्री पंडित ने बताया कि इस प्रक्रिया से जो महुआ के पेड़ तैयार होंगे, उससे किसानों को ज्यादा फूल मिलेगा, ज्यादा फल मिलेगा. इससे किसानों को आर्थिक रूप से फायदा होगा.
आदिवासी समाज की आय का जरिया है महुआ
बता दें कि महुआ आदिवासी समाज के लिए आय का जरिया तो है ही, उनके पर्व-त्योहार से लेकर शादी-ब्याह तक में इसका इस्तेमाल होता है. इसकी चर्चा स्थानीय गीतों के साथ-साथ हिंदी, भोजपुरी, मैथिली और अन्य लोकगीतों में भी होती है. महुआ आदिवासियों के खान-पान से लेकर उनके रीति-रिवाजों तक में रचा-बसा है.