झारखंड सेंट्रल यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अपर्णा ने कहा है कि आज हम एक संक्रमण काल के दौर से गुजर रहे हैं, जहां परस्पर दो विरोधी विचारधारा का प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क को निरंतर आंदोलित किए जा रहा है. एक तरफ तो हम सादगी और सुंदरता भरे जीवन को पसंद करते हैं. वहीं, दूसरी तरफ हम अभिजात्य सुविधा संपन्न जीवन को भी भोगना चाहते हैं. इसी विरोधाभाषी अंतर्द्वंद्व में फंसकर हम दुखी होते जा रहे हैं.
देश में बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के विरुद्ध एक वैचारिक अभियान को गति देने के उद्देश्य से प्रांजल धारा पत्रिका द्वारा शहीद शेख भिखारी बीएड कॉलेज रांची में आयोजित व्याख्यानमाला में डॉ अपर्णा ने ये बातें कहीं. उन्होंने कहा कि हम अपने बच्चों को भी जाने-अनजाने इसी दुविधा में धकेलते जा रहे हैं.
डॉ अपर्णा ने कहा कि हम जो कर रहे हैं, उसका परिणाम हमारे सामने है. हम अपने सनातन आदर्श को पसंद तो करते हैं, परंतु उन्हें जीते नहीं हैं. आज हम अपने दर्शन से दूर होते जा रहे हैं. इसलिए दर्द झेल रहे हैं. इस दर्द से, इस दुख से मुक्त होने का उपाय भी एक ही है कि हम तय करें कि हमें जाना किस रस्ते है.
डॉ अपर्णा ने कहा कि एक सनातन और साधा हुआ रास्ता अपनाना है या फिर हमें उस रास्ते पर जाना है, जो घोर भौतिक जीवन जीने की लालसा की ओर आकर्षित करता है, लेकिन यह रास्ता जाता कहीं नहीं. यह रास्ता सिर्फ हमें भटकाता है.
प्रांजल धारा के संपादक पंकज पुष्कर ने डब्लूएचओ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि हर साल भारत में लगभग डेढ़ लाख लोग आत्महत्या करते हैं. इसमें बड़ी संख्या 15 से 30 साल के लोगों की है. अपनी इस नौनिहाल पीढ़ी को बचाने के लिए हम हर स्कूल और कॉलेज तक इस अभियान को लेकर जायेंगे.
कॉलेज की प्राचार्या डॉक्टर सपना त्रिपाठी ने कहा कि हम और हमारी पूरी कॉलेज टीम इस मिशन को मंजिल तक पहुंचाने में प्रांजल धारा परिवार का सहयोग करेगी. कॉलेज की प्राचार्या डॉक्टर सपना त्रिपाठी ने डॉक्टर अपर्णा को शॉल देकर सम्मानित किया. डॉक्टर अंजू कुमारी ने पंकज पुष्कर को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया.