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बिना विधिसम्मत कार्यवाही के किसी का मकान नहीं तोड़ सकते : हाइकोर्ट

झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने गढ़वा सदर क्षेत्र में अतिक्रमण के नाम पर एक मकान को तोड़ने की नोटिस देने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की.

By Prabhat Khabar News Desk | April 30, 2024 12:17 AM

रांची.

झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने गढ़वा सदर क्षेत्र में अतिक्रमण के नाम पर एक मकान को तोड़ने की नोटिस देने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के दाैरान दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने माैखिक रूप से कहा कि विधिसम्मत कार्यवाही चलाये बिना किसी भी व्यक्ति के मकान को नहीं तोड़ा जा सकता है, चाहे वह अतिक्रमण में ही क्यों नहीं हो. जिला प्रशासन या सरकार जबरन मकान नहीं तोड़ सकती है. कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य सरकार को लगता है कि प्रार्थी का बना मकान अतिक्रमण में है, तो झारखंड पब्लिक लैंड एंक्रोचमेंट एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए ही उसे हटा सकती है. बिना प्रक्रिया अपनाये प्रार्थी का घर नहीं हटाया जा सकता है. अदालत ने मामले में उक्त दिशा निर्देश देते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शदाब बिन हक ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी अशोक कुमार ने याचिका दायर कर नोटिस को चुनाैती दी थी. गढ़वा सीओ ने उनके मकान के संबंध में 10 मार्च 2024 को नोटिस निर्गत किया था. 24 घंटे के अंदर मकान का दस्तावेज प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था, अन्यथा मकान को अतिक्रमण मानते हुए अतिक्रमण मुक्त करने की कार्रवाई शुरू करने की बात कही गयी थी. नोटिस निर्गत करने के बाद 11 मार्च को प्रार्थी ने गढ़वा सीओ के पास मकान के जमीन से संबंधित कागजात जमा कर दिया था. इसके बाद भी सीआइ पुलिस बल के साथ उनके घर आये थे. उन्होंने उनके मकान की नापी ली तथा लाल दाग लगा दिया था.

निजी जमीन पर बने थाना भवन को सील करने का निर्देेश :

झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस राजेश कुमार की अदालत ने रैयती जमीन का बिना अधिग्रहण व मुआवजा भुगतान किये थाना निर्माण के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के दाैरान पक्ष सुनने के बाद अदालत ने गढ़वा जिला के कांडी थाना को सील करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि जब तक प्रार्थी को उसके जमीन के मुआवजे का भुगतान नहीं कर दिया जाता है, तब तक थाना सील रहेगा. अदालत ने कहा कि बिना मुआवजा दिये किसी की भी निजी जमीन पर सरकारी निर्माण नहीं कराया जा सकता है. अदालत ने पिछली सुनवाई में कहा था कि यह राज्य द्वारा जमीन हड़पने का मामला है और ऐसा कब्जा कानून की अदालत में स्वीकार्य नहीं है. मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने छह मई की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से सेवानिवृत्त न्यायाधीश सह अधिवक्ता राजीव कुमार ने पैरवी की. उन्होंने अदालत को बताया कि कांडी थाना का भवन उसकी निजी रैयती जमीन पर थाना का भवन बना दिया गया है, लेकिन उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया गया है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी अजय कुमार सिंह ने याचिका दायर की है. इसमें कहा गया है कि उनकी पांच डिसमिल निजी जमीन पर सरकार ने कांडी थाना का भवन बना दिया है. उनके पूर्वजों के नाम पर जमीन की लगान रसीद भी निर्गत है, लेकिन राज्य सरकार ने इसे गैर मजरूआ जमीन बता कर निर्माण कराया है. इसके खिलाफ सिविल कोर्ट में टाइटल सूट दाखिल किया था. 19 जून 2009 को सिविल कोर्ट उक्त जमीन पर अजय कुमार सिंह का मालिकाना हक माना था और अजय कुमार सिंह के पक्ष में फैसला दिया था. उक्त आदेश के खिलाफ सरकार ने अपील दायर की थी. सरकार की अपील वर्ष 2009 में खारिज हो चुकी है. प्रार्थी ने जिला भू अर्जन कार्यालय के पास जमीन के मुआवजा के लिए आवेदन दिया, लेकिन अब तक मुआवजा का भुगतान नहीं किया गया है.

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