शौर्य गाथा: कैप्टन फेलिक्स पिंटो ने तवांग की दुर्गम घाटियों से दुर्घटनाग्रस्त विमान को खोज निकाला
झारखंड के फेलिक्स पैट्रिक पिंटों ने वायुसेना में रहते हुए बचाव काम करते हुए असंभव को संभव कर दिखाया. अप्रैल 2011 की घटना में अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन सीएम दोरजी खांडु का विमान तवांग की वादियों में लापता हो गया था. लापता विमान को खोजने की जिम्मेवारी विंग कमांडर फेलिक्स पिंटो को दी गयी थी.
Shaurya Ghata: झारखंड के फेलिक्स पैट्रिक पिंटों ने वायुसेना में रहते हुए बचाव काम करते हुए असंभव को संभव कर दिखाया. अप्रैल 2011 की घटना है. अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दोरजी खांडु का विमान तवांग की वादियों में लापता हो गया था. उसका कहीं अता-पता नहीं था. लापता विमान को खोजने की विशेष जिम्मेवारी विंग कमांडर फेलिक्स पिंटो को दी गयी. काम लगभग असंभव था लेकिन उन्होंने लापता विमान के मलबे का पता लगाया. कुछ दिनों बाद जिस हेलिकॉप्टर पर वे शिलांग से उड़े थे, वह हवा में ही खराब हो गया था. उस हेलिकॉप्टर में और 13 पायलट भी बैठे थे. उसका क्रैश करना लगभग तय लग रहा था, लेकिन अपनी बुद्धिमता से उन्होंने हेलिकॉप्टर को सुरक्षित गुवाहाटी एयरपोर्ट पर उतार दिया. ऐसे बहादुरी भरे कार्यों के लिए शौर्य चक्र सम्मानित किया गया.
बचपन से था पिंटो को जोखिम भरा काम करने का शौक
फेलिक्स पिंटो के पिता का नाम पीजेआर पिंटो है, जो रेलवे के सेवानिवृत अधिकारी हैं. उनकी मां डॉ. अश्रिता कुजूर झारखंड चिकित्सा विभाग से उप निदेशक के पद से सेवानिवृत हुई हैं. बचपन से पिंटो को जोखिम भरा काम करने का शौक रहा है. प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने गया से की थी. बाद में फेलिक्स को 12वीं की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया गया. फेलिक्स चाहते थे कि भारतीय वायुसेना में जायें और देश की सेवा करें. इसी क्रम में उन्होंने एनडीए की परीक्षा पास की और एनडीए खड़गवासला में उनको प्रवेश मिल गया. भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद वे लगातार आकाश से बातें करते. उड़ाने भरतें. उन्हें इसमें आनंद आने लगा, लेकिन उन्हें कुछ खास करने की इच्छा थी. ऐसा काम करना चाहते थे जिससे उनका नाम देश-दुनिया में हो.
खोज, बचाव या राहत का अभियान
अप्रैल 2011 में एक ऐसा ही क्षण आया. हालांकि यह युद्ध का समय नहीं था, खोज, बचाव या राहत का अभियान इसे माना जा सकता है. अरूणाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दोरजी खांडु का विमान तवांग की वादियों में लापता हो गया था पूरा देश परेशान था. पता नहीं चल पा रहा था कि यह विभाग कहा गया. चारों और खोज हो रही थी. इस बात की भी आशंका थी कि यह विमान भटक कर दूसरे देश की सीमा में तो नहीं चला गया है. इस लापता विमान को खोज निकालने की जिम्मेवारी विंग कमांडर फिलिया के नेतृत्व वाले दल को मिली. अपनी टीम के साथ वह संभावित क्षेत्र में लगातार उड़ान भरते रहे. यह अभियान जोखिम भरा था. विमान को खोजने के क्रम में कई बार उन्हें हेलिकॉप्टर की काफी कम ऊंचाई पर उड़ानी पड़ती थी. पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण दुर्घटना की आशंका लगातार थी. कुछ कठिन उड़ानों के बाद उन्हें सफलता मिली. उन्होंने विमान के कुछ टुकड़ों को देखा. मौसम खराब था, लेकिन इतना तो उन्होंने पता लगा लिया था कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और उसका मलबा आसपास बिखरा है. अब खोजी दल का काम आसान हो गया था. खराब मौसम के बावजूद उनकी टीम ने विमान के पूरे मलबे को ढूंढ निकाला. कुछ समय पहले तक जिस लापता विमान को कोई जानकारी नहीं थी, उसे उन्होंने अपने अथक प्रयासों से खोज निकाला.
15 मिनट के अंदर हेलिकॉप्टर को सुरक्षित उतारा
उसी साल 29 अगस्त को फेलिक्स ने एक और बहादुरी का काम किया. शिलांग से उड़ने के बाद उनके हेलिकॉप्टर में कुछ तकनीकी खराबी आ गयी. लगा कि बचना मुश्किल है. उन्होंने बगैर विचलित हुए 15 मिनट के भीतर अपनी टीम के साथ उस हेलिकॉप्टर को सुरक्षित उतार लिया. एक समय लगभग असंभव सा दिखने वाला कार्य बड़ी कुशलता और सफलता के साथ फेलिक्स ने कर दिखाया. विषम परिस्थितियों में एक ही वर्ष में फेलिक्स ने दो बार उच्च स्तरीय नेतृत्व, दृढ़ निश्चय और धैर्य का उदाहरण पेश किया. इन्हीं कारणों से उनका नाम शौर्य चक्र के लिए प्रस्तावित किया गया, और 26 जनवरी 2012 को उन्हें शौर्य चक्र से सुशोभित किया गया. इस उपलब्धि के बावजूद फेलिक्स ने आराम नहीं किया.
वीर की वीरता पर भारतीय को नाज
केदारनाथ में जब कुदरत ने कहर बरपाया तो फेलिक्स का हेलिकॉप्टर बचाव कार्य में पहुंचने वाला पहला हेलीकॉप्टर था. ऑपरेशन राहत के शुरुआती दौर में उनके शानदार और निष्काम प्रयासों ने भविष्य के लिए हेलिकॉप्टर द्वारा बचाव कार्य करने के और नये द्वार खोल दिये. सैकड़ों लोगों को उन्होंने बचाया और सुरक्षित जगह पहुंचाया. विपरीत परिस्थितियों में, फेलिक्स के असाधारण नेतृत्व क्षमता और हिम्मत के लिए, उन्हें वायुसेना मेडल से भी सम्मानित किया गया. अपनी इन्हीं योग्यताओं की वजह से उन्हें विदेशों में भी कई बार भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त हुआ, उनकी बहादुरी को देश तो सलाम करता ही है, उनका परिवार भी इसमें पीछे नहीं रहता, माता-पिता का आशीर्वाद तो है ही. पत्नी, एक बेटा और एक बेटी का प्यार प्रार्थना उनकी ताकत है. उन्होंने अपने बच्चों को भविष्य में अपने करियर को चुनने को पूरी आजादी दे रखी है. अगर वे सेना में जाना चाहें तो इस विकल्प का भी चुनाव उन्हीं पर निर्भर रहेगा. वर्तमान में फेलिक्स उधमपुर में पदस्थापित हैं. शौर्य चक्र पाने के बाद उनका उत्साह और बढ़ा हुआ है. फेलिक्स देश की सेवा के लिए सदैव तैयार रहते हैं. ऐसे वीर की वीरता पर सभी भारतीय को नाज है.