लेडियानी बेदी में दफन होनेवाले चौथे आर्चबिशप होंगे कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो, आज होगा अंतिम संस्कार
कैथोलिक परंपरा के अनुसार बिशपों के सेवा कार्य को देखते हुए कैथेड्रल यानि महागिरजाघर में ही दफनाया जाता रहा है. पूरी दुनिया में कैथोलिक चर्च की पारंपरिक-प्रथाओं का सम्मान करने के लिए तहखाने अर्थात कब्र का निर्माण किया जाता है.
रांची, रतन तिर्की : संत मरिया महागिरजाघर में आर्चबिशप कार्डिनल तेलेस्फोर चौथे आर्चबिशप होंगे, जिन्हें लेडियानी बेदी में दफनाया जायेगा. लेडियानी बेदी का ऐतिहासिक महत्व यह कि जब संत मरिया गिरजाघर का निर्माण हुआ था, उस वक्त महिलाओं के लिए अलग से एक और जगह बनायी गयी थी. अंग्रेज ईसाई महिलाएं गिरजाघर के आगे बांयीं ओर बैठतीं थी, इसलिए उस जगह को आज तक लेडियानी बेदी कहा जाता है. आर्च बिशप कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो की इच्छा थी कि इसी लेडियानी बेदी में स्थित संत मदर टेरेसा की मूर्ति के नीचे उनको दफनाया जाये. इससे पहले 30 अप्रैल 1933 को बिशप वानहूक एसजे, 24 जुलाई 1960 को बिशप निकोलस कुजूर और 21 मई 1993 को आर्चबिशप पीयूष केरकेट्टा को संत मरिया महागिरजाघर में दफनाया गया है. आज (11 अक्तूबर 2023) आर्चबिशप कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो चौथे आर्चबिशप होंगे, जिन्हें संत मरिया महागिरजाघर में ससम्मान दफनाया जायेगा.
क्यों गिरजाघर में ही दफनाया जाता है
कैथोलिक परंपरा के अनुसार बिशपों के सेवा कार्य को देखते हुए कैथेड्रल यानि महागिरजाघर में ही दफनाया जाता रहा है. पूरी दुनिया में कैथोलिक चर्च की पारंपरिक-प्रथाओं का सम्मान करने के लिए तहखाने अर्थात कब्र का निर्माण किया जाता है. जहां केवल बिशपगण को जो विशेष गिरजाघर की सेवा करते थे, वही दफनाये योग्य माने जाते हैं. आर्चबिशप कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो हमेशा से संत मरिया महागिरजाघर की सेवा करते थे, इसलिए उनका दफन भी इसी महागिरजाघर में होगा. स्व फादर कॉन्सटेंट लीवांस की अस्थि अवशेष भी इसी सेंट मरिया कैथेड्रल में रखा गया है. फादर लीवांस को संत घोषित करने के लिए रांची एवं अन्य कलीसिया में लगातार प्राथनाएं की जा रही हैं. विश्व में कैथोलिक चर्च के लिए तहखानों का निर्माण की अवधारणा ईसाइयों के उत्पीड़न और विश्वासियों के उत्पीड़न से ली गयी थी, जिन्हें मरणोपरांत गुफाओं में दफनाया गया था. जिसे श्रद्धालुओं ने आज तक सुरक्षित रखा है.
अल्फ्रेड लेम्बोन ने बनवाया था सेंट मेरीज कैथेड्रल
संत मरिया महागिरजाघर के निर्माण की सोच तब आयी, जब अल्फ्रेड लेम्बोन 1892 में छोटानागपुर आये थे. अल्फ्रेड लेम्बोन स्कूल, बंगला और गिरजाघरों के कुशल निर्माता माने जाते थे. इनकी ही देखरेख में कई जगहों में गिरजाघर का निर्माण किया गया था. 1906 में अल्फ्रेड लेम्बोन को रांची में नये गिरजाघर बनाने का जिम्मा सौंपा गया. उस वक्त पुरूलिया रोड (अब डॉ कामिल बुल्के पथ) में 20 मई 1906 को आर्चबिशप म्यूलमैन येस ने संत मरिया महागिरजाघर का शिलान्यास किया. संत मरिया महागिरजाघर तीन वर्षों में बनकर तैयार हो गया था. इसका उदघाटन ढाका (बांग्लादेश) के बिशप हर्ट द्वारा किया गया. संत मरिया महागिरजाघर के निर्माण के लिए मांडर, कटकाही, खूंटी, सरवदा आदि जगहों से कुशल कारीगर बुलाये गये थे. रोमन शैली में बने संत मरिया महागिरजाघर की लंबाई 61 मीटर और चौड़ाई 36 मीटर है. इसमें दो घंटाघर हैं. 1906 में नींव डाली गयी और 1909 में यह तैयार हो गया. संत मरिया महागिरजाघर को निष्कलंक गर्भागमन The Immaculate Virgin के नाम से समर्पित किया गया।
अब तक के आदिवासी धर्माध्यक्ष और बिशप
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स्व निकोलस कुजूर येस प्रथम आदिवासी बिशप
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स्व स्तानिसलास तिग्गा येस रायगढ़
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स्व आर्चबिशप पीयूस केरकेट्टा येस रांची
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स्व बिशप लियो तिग्गा येस दुमका/रायगंज
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स्व बिशप फ्रांसिस एक्का जलपाईगुड़ी/रायगढ़
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स्व बिशप फिलिप एक्का येस अंबिकापुर/रायगढ़
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स्व: बिशप जेम्स टोप्पो जलपाईगुड़ी
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स्व बिशप रोबर्ट केरकेट्टा SVD डिब्रूगढ़/तेजपुर
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स्व आर्चबिशप कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो दुमका/रांची
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आर्चबिशप पास्कल टोपनो येस अंबिकापुर/भोपाल
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स्व बिशप विक्टोर किंडो जशपुर/कुनकुरी
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बिशप अल्फोंस बिलुंग SVD राउरकेला
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बिशप लुकस केरकेट्टा SVD संबलपुर
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स्व: स्टीफन तीड़ू दुमका/खूंटी
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स्व बिशप चार्ल्स सोरेंग येस डाल्टेनगंज/हजारीबाग
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स्व बिशप जोसेफ मिंज सिमडेगा
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स्व बिशप माइकल मिंज
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बिशप जोसेफ आईंद SVD डिब्रूगढ़
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बिशप पतरस मिंज येस अंबिकापुर
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आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो जमशेदपुर/रांची
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बिशप जुलियुस मरांडी दुमका
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बिशप गाब्रियल कुजूर येस डाल्टेनगंज
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बिशप विंसेंट बरवा सिमडेगा
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बिशप अंजलूस कुजूर पूर्णिया
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बिशप पौल लकड़ा गुमला
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बिशप पौल टोप्पो रायगढ़
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बिशप जोन बरवा राउरकेला
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बिशप बिनय कंडुलना खूंटी