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Exclusive: झारखंड में जातीय जनगणना होनी ही चाहिए : सुदेश महतो

आजसू प्रमुख और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश कुमार प्रभात संवाद कार्यक्रम में पहुंचे. राज्य में विभिन्न सरकारों में महत्वपूर्ण भूमिका और जिम्मेवारी निभानेवाले श्री महतो झारखंड की राजनीति में एक कोण रहे हैं.

आजसू प्रमुख और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश कुमार प्रभात संवाद कार्यक्रम में पहुंचे़ राज्य में विभिन्न सरकारों में महत्वपूर्ण भूमिका और जिम्मेवारी निभानेवाले श्री महतो झारखंड की राजनीति में एक कोण रहे हैं. प्रभात संवाद कार्यक्रम में श्री महतो ने 32 के खतियान व पिछड़ों के आरक्षण के मुद्दे पर राज्य सरकार पर सवाल उठाये, तो इसके लिए आगे का रास्ता भी बताया है. आजसू प्रमुख श्री महतो ने कुड़मी को एसटी का दर्जा दिये जाने के मामले से लेकर जातीय जनगणना को लेकर बेबाकी से अपनी बातें रखीं. श्री महतो ने भाजपा के साथ गठबंधन और 2024 की चुनौतियों को लेकर भी अपने अनुभव साझा किये.

Q. 90 के शुरुआती दशक में आप राजनीति में आये, तब आजसू का आंदोलन उफान पर था, राजनीति में आने की वजह रही या संयोग रहा?

छात्र जीवन में झारखंड आंदोलन से जुड़ा, यह सोच कर आंदोलन से जुड़ा कि जिस तरह देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी गयी उसी तरह अलग झारखंड के लिए भी लड़ना होगा. आजसू के साथ था, जो इनकी लड़ाई का तरीका थोड़ा अलग था. राजनीति की समझ उस समय कम थी पर जूनून था. चरणबद्ध तरीके से लड़ाई लड़ा. आजसू में बिखराव भी हुआ, हम आंदोलन को चरम पर ले गये, पर संस्था को सुरक्षित नहीं रख पाये. आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी जाना पड़ा. उस समय जीवन को नजदीक से देखा. प्रदेश को बनते देखा. इसकी अपार खुशी है. इसी क्रम में राजनीति से भी जुड़ाव हुआ.

Q. वर्ष 1999 के चुनाव में आप पहली बार विधायक बने. राज्य गठन के बाद मंत्री बने, तब से लंबे समय तक सत्ता में रहे. अपने काम से कितना संतुष्ट हैं ?

वर्ष 1999 दिसंबर में विधायक बना. मैं बिहार विधानसभा का सदस्य बना. मैं नेशनल यूथ फोरम का हिस्सा रहा. हम लोगों ने मिल कर नेशनल फोरम बनाया. मैं गोरखालैंड आंदोलन के लोगों से भी जुड़ा रहा, कई अवसरों में पर उनके साथ भी गया. इस दौरान जैक का गठन हो चुका था, इसका चुनाव होना था. मेरी उम्र चुनाव लड़ने की नहीं थी,. पहली बार मैं निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव में जीता और बिहार विधानसभा का सदस्य बना. उस समय नौ दिन के लिए नीतीश कुमार की सरकार बनी.

दोनों तरफ से मुझसे समर्थन मांगा. लालू यादव जी ने फोन कर कहा, समर्थन दो, इधर मंत्री बनो, पर मैंने कहा ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए, आप अलग राज्य दे दो. उनके कुछ लोग भी पहुंच गये थे. इसके बाद मैंने आजसू के स्टाइल में लगभग 150 लड़कों के साथ पटना पहुंच गया. जोबा मांझी भी पटना में थी. वह आवास मंत्री बनीं और मैं विपक्ष में रहा. राज्य बना, तो एनडीए सरकार बनी. मैं 26 साल की उम्र में देश में पहला मंत्री बना.

Q. आजसू में सुदेश नेतृत्व के रूप में सामने आये, क्या वजह रही पुराने आजसू नेता जैसे प्रभाकर तिर्की, सूर्य सिंह बेसरा, ललित महतो अलग हो गये ?

जब मैंने आजसू ज्वाइन किया, तो ये सभी नेता आजसू में थे और जब मैं पद में नहीं था, उससे पहले इन लोगों ने आजसू छोड़ अपना रास्ता बना लिया था. आप याद कीजिए 22 जून को पार्टी स्थापना दिवस मनाती थी, 1990 से 94 के बीच रांची में स्थापना दिवस मनाने के लिए 500 कैडर भी जमा नहीं होते थे. मैंने सबको जोड़ा. देखे होंगे कि बेसरा जी, ललित जी भी अध्यक्ष रहे. मैं हमेशा संगठन व संगठन को बनाने के लिए रहा. आज आजसू छात्रावास से निकल कर 260 प्रखंड तक पहुंच गया. आज विधानसभा के साथ-साथ संसद में भी पार्टी का सदस्य है.

Q. आजसू लंबे समय तक भाजपा के साथ सरकार में रही, मधु कोड़ा की सरकार में भी आजसू रही. आपकी पार्टी पर आरोप है कि आप लोगों ने आजसू का प्रतिरोध की राजनीति को भुला दिया है, बीच का रास्ता निकाल कर चल रहे हैं ?

यह गलत हैं, हम भाजपा (एनडीए) के साथ रहे. 1999 में जब लोकसभा का चुनाव हो रहा था, तब हम विधायक भी नहीं बने थे, हमारी प्रेस कॉफ्रेंस आडवाणी जी के साथ हुई थी. क्योंकि भाजपा अलग राज्य की पक्षधर थी. मधु कोड़ा की सरकार की बात है, तो उसमें हमारी पार्टी नहीं गयी. हम भी विधायक थे. यह सही है कि पार्टी के सदस्य कोड़ा सरकार में मंत्री बने थे.

Q. 2019 में भाजपा के साथ आजसू का गठबंधन नहीं हो सका, वजह क्या रही कोई पछतावा?

राज्य के लोग भी यह चर्चा करते है कि अगर भाजपा-आजसू साथ लड़ती, तो आज राज्य की यह स्थिति नहीं होती. यह चर्चा दिल्ली तक है. आज राज्य में विकास के मानक पर कोई बात नहीं होती है. जहां तक बात गठबंधन नहीं होने की है, तो राजनीति में कई कारण होते हैं. जब आप सीट बंटवारे की बात करेंगे, तो हो सकता है कि राज्य के लिए आप कुछ और चाहते होंगे वह चीजें नहीं बन पायी हो. सीट बंटवारे की कुछ बातें ऐसी हुई जो उस समय राज्य की परिस्थिति के अनुकूल नहीं थी. इसके अलावा भी कुछ कारण थे, जिसके कारण हमारे विचारों में भेद हुआ और हम अलग-अलग चुनाव लड़े.

Q .रघुवर दास से आपकी नहीं बनी, लगातार दूर रहे. रघुवर दास का वर्किंग स्टाइल आपको पसंद नहीं था या व्यवहार से नाखुश थे?

रघुवर दास जी से मेरी कोई व्यक्तिगत खटास नहीं थी. क्षेत्रीय पार्टी होने के नाते आजसू की अपने कुछ अलग उसूल रहे हैं, जैसे स्थानीय नीति को लेकर मैं अपनी सरकार में भी पांच साल लड़ता रहा. आरक्षण का मामला नहीं सुलझा, मेरा मुद्दा यही था. राज्य में विकास परिषद बना. उसका अध्यक्ष बनाया गया, पर मैं कार्यालय नहीं गया. आयोग बनने के ढाई साल बाद भी एक बैठक नहीं हुुई. जब बैठक नहीं हुई, तो मैं क्यों जाता..

Q. 1932 आधारित स्थानीयता, ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण आपके मुद्दे रहे हैं. सरकार तो इस दिशा में आगे बढ़ी है, आपके एजेंडे पर काम हो रहा, सरकार को धन्यवाद बोलेंगे ?

सरकार अगर हल के लिए बढ़ती, तो जरूर धन्यवाद देता, अगर आप उलझाने के लिए बढ़े हैं, तो आप पर सवाल उठेगा. 1932 यहां के लोगों के परिचय का विषय रहा है. लेकिन तीन साल बीत गये. सरकार ईमानदार नहीं है इसलिए इतने दिनों तक कुछ नहीं किया. सरकार स्थानीयता मामले को नौवीं अनुसूची में शामिल कराने की बात कह रही है. इसमें दूसरी एक कमी छोड़ दी. स्थानीयता के लिए 1932 का खतियान को आधार बनाने की बात कही, पर भूमिहीन लोगों के लिए ग्राम सभा में अधिकार दिया गया है.

यह इसमें एक बड़ी कमी है, इसके माध्यम से लोगोंं की इंट्री होगी. किसकी इंट्री होगी, यह आगे की बात है. सरकार इन चीजों की तब पहल कर रही है, जब वह अपने को सहज महसूस नहीं कर रही है. वहीं अनुसूचित जाति को 10 से 12 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 26 से 28 व ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की बात कही है. सुप्रीम कोर्ट ने कभी नहीं कहा कि आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता है, इसके लिए आपको सही तर्क देना होगा. झामुमो कभी ईमानदार नहीं रही है, अलग राज्य को लेकर भी नहीं. अटल बिहारी वाजपेयी जी की पहल नहीं होती, तो अलग राज्य नहीं बनता. झामुमो चीजों को उलझाती है, आजसू सुलझाती है.

Q. जाति आधारित जनगणना को लेकर आपकी पार्टी लगातार बात कर रही है. राज्य सरकार इसे केंद्र का विषय बताती है, आपकी पार्टी क्या चाहती है?

जातीय जनगणना होनी चाहिए. कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्य ऐसा करा रहे हैं. उच्च न्यायालय का जजमेंट भी है. यह राज्य जजमेंट के आलोक में ही करा रहे हैं. इनको केंद्र ने छूट दी है. किसी को आरक्षण या अन्य लाभ देना चाहते हैं, तो ऐसा करना ही होगा.

Q. हेमंत सोरेन भाजपा के साथ -साथ आजसू पर हमला कर रहे हैं. आप लोग डिफेंसिव मोड में है ?

हाउस में एक मुख्यमंत्री के रूप में जो पहल करनी चाहिए, तो उन्होंने उसे नहीं किया. मुख्यमंत्री को चाहिए था कि वे जिस विषय को लेकर आ रहे हैं, उसे तर्क के साथ सदन में रखे. यह नहीं हुआ. उन्होंने केवल राजनीतिक बात की, कहा, सुपड़ा साफ कर देंगे. सदन में वरीय नेताओं को बोलने से रोका गया. यह एक तरह से आपातकाल जैसा है. नीतिगत निर्णय में जिस तरह का डीबेट होना चाहिए नहीं हुआ. सदन में केवल राजनीतिक बात की. यह राज्य के लिए नुकसानदेय है.

Q. पिछले चुनाव में भाजपा-आजसू गठबंधन नहीं होने का नुकसान दोनों ने देखा इस बार गठबंधन मजबूरी होगी क्या?

मैं कोई काम मजबूरी से नहीं करता, न ही भाजपा कोई काम मजबूरी से करती है. विचारों का मेल होगा, हम लोग विकास को लेकर साथ में रहे हैं. विकास के मानक पर आगे बढ़ेंगे. राज्य को आज पार्टी से अधिक नेता की जरूरत है. लोग चाहेंगे कि एक अच्छा गठबंधन सामने आये.

Q. झारखंड आंदोलनकारियों के लिए अब तक सरकार ने जो किया है, उससे आप संतुष्ट हैं? क्योंकि राज्य गठन के बाद ही झारखंड आंदोलनकारियों के सम्मान की बात हो रही है?

अभी क्या हो रहा है. झारखंड में आंदोलनकारियों के चिह्नितीकरण का काम हमने शुरू कराया था. कमेटी में झामुमो के कार्यकर्ताओं को जगह दी थी. इसेक लिए कमेटी बनायी गयी थी. जानता था कि प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं करेगा, इस कारण इसमें आंदोलनकारी का होना जरूरी है. आज जो हो रहा है, देख लीजिए. आंदोलन चिह्नितीकरण आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को क्या सुविधा मिली है, पता कर लीजिए. जहां बैठते हैं वहां काम वाले कोई नहीं है. असल में सरकार के लिए इस तरह की चीजें कोई मुद्दा नहीं है. चीजों का भट्ठा बैठा दिया.

Q .राज्य सरकार कहती है कि केंद्र सरकार अपनी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. क्या मानते हैं ?

राजनीति में यह चर्चा शुरू से होती रही है. आपातकाल के बाद से सत्ता में रहनेवाले लोगों पर आरोप लगता रहा है. अभी जो प्रधानमंत्री हैं, वह मुख्यमंत्री रहते दो-दो बार दिल्ली में जाकर जांच कमेटी के सामने अपनी बात रख चुके हैं. लालू जी के शासन काल में ही जांच हुई थी. अभी जो चर्चा हो रही है, वह लिंक पर हो रही है. अब यहां एक हजार करोड़ रुपये की गड़बड़ी का आरोप लगा है. जहां से गड़बड़ी की गुंजाइश है. वहां मुख्यमंत्री के करीबी लोग थे. जो जेल में हैं, उनसे भी उनका संबंध है. यह जांच की प्रक्रिया है.

Q . कुड़मी एसटी का दर्जा मांग रहे हैं. कई राज्यों में आंदोलन चल रहा है. आपकी क्या राय है ?

यह तो कुड़मी का हक है. एसटी का दर्जा कुड़मियों को आजादी के पहले से मिला हुआ था. कुड़मी 1913 के गजट में आदिम जनजाति की सूची में शामिल थे. इसमें कुरमी व कुड़मी शामिल थे. 1931 में भी यह भारत सरकार के गजट में थे. 1951 में यह गजट से गायब हो गये. इसके पीछे कोई तर्क नहीं था. यह कुड़मियों की जायज लड़ाई है. यह छूटे हुए लोग हैं, इनको जोड़ने की पहल है. कुछ अजजा जो किसी कारणवश एसटी से बाहर हो गये थे. उन्हें शामिल किया जा रहा है. ऐसा चतरा के एक समुदाय के साथ हुआ है.

Q. 2024 का चुनाव आजसू पार्टी के लिए चुनौती होगी. गठबंधन में सीटों का बंटवारा बड़ा पेचिदा होता है. आपकी क्या दावेदारी होगी ?

अभी तो हम संगठन को मजबूत करने में लगे हैं. आजसू पार्टी राज्य में पहले अपना आधार तैयार करेगी. हम पहले मजबूत होंगे. तभी हमारी पूछ होगी. इसके बाद बैठ कर तय करेंगे कि हम क्या चाहते हैं.

Q. पूरे प्रकरण में राज्यपाल की भूमिका को किस रूप में देखते हैं, लिफाफा खुल नहीं रहा ?

राज्यपाल का पद संवैधानिक है. चुनाव आयोग में शिकायत पर निर्णय आना है. निर्णय देने के लिए किसी को बाध्य नहीं कर सकते हैं. यह भी एक कोर्ट है.

Q. किसी जांच एजेंसी के समक्ष हाजिर होनेवाले हेमंत पहले मुख्यमंत्री हैं, क्या जांच एजेंसियां विधायिका के साथ अतिवादी हस्तक्षेप की नीति पर काम कर रही है. कितना उचित है यह कार्रवाई?

यह बहस का विषय है. अभी तक सरकार के स्तर से इस तरह के मामलों के लिए कानून बने हैं. बड़े पदों पर बैठे लोगों से पूछने का तरीका कैसा होना चाहिए, इस पर बात हो सकती है. इस पर विचार करना चाहिए. देश स्तर पर इसकी चर्चा हो सकती है. वैसे लीडर को आम आदमी की तरह होना चाहिए. अगर आप ईमानदार हैं, तो इतने लोगों को सड़क पर लाने की जरूरत क्या है. जब पूछताछ के लिए आम आदमी की तरह जायेंगे, तो आपका भी सम्मान बढ़ेगा. लोगों को भी समझ में आयेगा कि सबके लिए कानून एक तरह का है.

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