झारखंड : अब बिना खतियान के भी बन सकेगा जाति प्रमाण पत्र
झारखंड में जाति प्रमाण पत्र से संबंधित आ रही परेशानी को देखते हुए मुख्य सचिव ने सभी डीसी को आदेश दिया है कि बिना खतियान के प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा.
रांची : मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने जाति प्रमाण पत्र जारी करने में आ रही परेशानियों को दूर करने का निर्देश दिया है. उन्होंने सभी जिलों के उपायुक्तों से जाति प्रमाण पत्र के लंबित व निष्पादित मामलों की जानकारी मांगी है. कहा है कि राज्य में बिना खतियान के स्थानीय जांच के आधार पर भी जाति प्रमाण पत्र बनाया जाना है. अंचल कार्यालय से बनाये गये जाति प्रमाणपत्र के आधार पर अभ्यर्थी ऑनलाइन आवेदन करेंगे. उस आवेदन के आधार पर अनुमंडलाधिकारी कार्यालय से जाति प्रमाणपत्र जारी किया जायेगा.
मुख्य सचिव ने उपायुक्तों से कहा है कि कार्मिक, प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग द्वारा इससे संबंधित स्पष्ट आदेश जारी है. खतियान नहीं होने या परिवार के अन्य सदस्यों का पूर्व से प्रमाण पत्र नहीं बनने की वजह से किसी का जाति प्रमाण पत्र लंबित नहीं रहना चाहिए. ऐसी परिस्थितियों में आवेदक के आवेदन की जांच स्थानीय स्तर पर करायी जाये.
मुखिया व ग्रामसभा की रिपोर्ट के साथ जांच करा कर दें प्रमाण पत्र :
मुखिया व ग्रामसभा की रिपोर्ट के साथ स्थानीय स्तर पर जांच करा कर जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाये. स्थानीय जांच प्रतिवेदन के आधार पर आॅनलाइन आवेदन किया जा सकता है. इसके बाद अनुमंडलाधिकारी कार्यालय से जाति प्रमाणपत्र जारी किया जायेगा.
मुख्य सचिव ने कहा है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के विस्थापित आवेदकों का जाति प्रमाणपत्र वर्तमान पता के आधार पर भी जारी किया जा सकता है. इससे छात्रों को सहूलियत हाेगी. मालूम हो कि खतियान की बाध्यता को कारण बताते हुए जाति प्रमाण पत्र के आवेदनों को लंबित रखे जाने की शिकायत है. इससे छात्रों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने के कारण नहीं मिल रहा है आरक्षण का लाभ
रांची जिले में रह रहे भंगी जाति के लोगों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है. पिछले पांच सालों से यह स्थिति बनी हुई है. जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने के कारण जहां इस जाति के लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. वहीं, शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र-छात्राओं को राज्य सरकार द्वारा दी जानेवाली स्कॉलरशिप से भी वंचित रहना पड़ रहा है. भंगी समुदाय के लोग राजस्थान से माइग्रेट होकर आये हैं.
जब देश गुलाम था तो अंग्रेज इस समुदाय के लोगों को साफ सफाई के लिए लेकर आये थे. शुरुआत में ये नगर निगम में सफाई करने का काम करते थे. इसकेे अलावा मैला ढोने का काम भी इन्हीं लोगों से करवाया जाता था. आजादी के बाद धीरे-धीरे इस समाज के लोगों में जागृति आयी. सरकार ने भी मैला ढोने की प्रथा पर लगाम लगाया तो ये धीरे-धीरे मुख्यधारा में शामिल हुए. लेकिन शुरू से ही भूमिहीन रहने के कारण अब तक इनको जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है.
नियमों के जंजाल में फंस रहे हैं लोग
राज्य के किसी भी शैक्षणिक संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने व राज्य सरकार द्वारा निकाली गयी किसी भी वैकेंसी में नौकरी के लिए आवेदन के साथ जाति प्रमाण पत्र जरूरी है. राज्य सरकार ने जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की है. लेकिन, इसके जरूरतमंद इस व्यवस्था के पेच में फंस रहे हैं. आवेदक भूमिहीन होने या उसके पास जमीन से कागजात नहीं होने पर स्थिति गंभीर हो जाती है.
प्रज्ञा केंद्रों के माध्यम से जमा किया जानेवाला आवेदन अंचल के कर्मचारी के पास पहुंचता है. जमीन के कागजात नहीं होने पर कर्मचारी उसे रिजेक्ट कर देता है. इसके बाद चप्पल घिस जाने तक भी चक्कर काटने पर सीओ कार्यालय से आवेदक को कोई संतोषजनक जवाब तक नहीं मिलता है. जबकि, भूमिहीनों को जाति प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए राज्य सरकार ने विशेष व्यवस्था की है.
भूमिहीनों को ग्राम सभा के अनुमोदन या मुखिया व वार्ड पार्षद का अनुशंसा के बाद जाति प्रमाण पत्र प्रदान करने का नियम है. लेकिन, यह नियम केवल कागजों तक ही सिमट कर रह गया है. ग्रामसभा या मुखिया के अनुमोदन के बाद भी सीओ उसे संतुष्ट नहीं होने की बात कर ज्यादातर आवेदनों को रद्द कर देते हैं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ग्रामसभा के अनुमोदन होने पर भी संबंधित अंचलाधिकारी को यह विशेषाधिकार दिया गया है कि वह अपने स्तर से ऐसे आवेदनों को संतुष्ट होने पर ही जारी करे.
Posted by : Sameer Oraon