संतालपरगना की तीन-चार बड़ी हाटों से पशुधन की खरीद-बिक्री हो रही है. देवघर के मोहनपुर व सिमरमोड़, पाकुड़ के हिरणपुर तथा दुमका में सप्ताह में अलग-अलग दिन पशुओं की हाट लगती है. इन हाटों से हर सप्ताह करीब 25 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. संताल परगना की इन हाटों से खरीद के बाद पशु की तस्करी बांग्लादेश के साथ-साथ लाख बिहार के अररिया व किशनगंज के लाइसेंसी बूचड़खानों तक होती है.
पशु के कारोबार का सिंडिकेट पश्चिम बंगाल, बिहार व झारखंड के कई जिलों तक फैला है. संथालपरगना से गंगा नदी में बहा कर बांग्लादेश तक पशुओं को भेजा जा रहा है. पशु का अवैध कारोबार का कनेक्शन बिहार, झारखंड व बंगाल के रास्ते बांग्लादेश तक है. बिहार के झाझा व बरबीघा के हाट से छोटे-छोटे पशु व्यापारी गाय, बैल व बछड़ों को खरीदकर पैदल गांव के रास्ते मोहनपुर हाट तक पहुंचाते हैं. मोहनपुर हाट में मंगलवार रात में ही पशुओं की हाट लग जाती है. सिमरा मोड़ हाट में भी गिरिडीह व मधुपुर इलाके से पशु पहुंचते हैं.
मंगलवार रात तक सिमरामोड़ से सभी पशुओं को मोहनपुरहाट पैदल पहुंचा दिया जाता है. रात के अंधेरे में बांग्लादेश भेजे जानेवाले पशुधन को पैदल सरैयाहाट, हंसडीहा व नोनीहाट के रास्ते दुमका हाट पहुंचाया जाता है. घोरमारा व बासुकीनाथ में एक्सीडेंट की आशंका अधिक देखते हुए व्यापारी खाली रास्ता चुनते हैं.
मोहनपुर से दुमका हाट तक पशु पहुंचाये जाने के बाद पश्चिम बंगाल के व्यापारी दुमका हाट से पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट, नलहट्टी, गोपालपुर व सैंथिया की हाटों में पशुधन को बेचा जाता है. इसके बाद यहां से पशुधन को बांग्लादेश के बॉर्डर तक अलग-अलग तरीके से टपा दिया जाता है. देवघर के गुलीपथार के समीप छोटे-छोटे वाहनों से पशुओं को चितरा व आसनसोल के रास्ते कोलकाता के बूचड़खाने तक भेजा जा रहा है.
झारखंड से पशुओं को बांग्लादेश भेजने के कई रास्ते हैं. मोहनपुरहाट से खरीदारी कर बलथर में पशुओं को रात में पिकअप व ट्रकों में लोड कर पाकुड़ के हिरणपुर हाट में उतारा जाता है, यहां भी थोक भाव में पाकुड़ के व्यापारी पशु की खरीदारी कर गंगा नदी का किनारा धुलियान में पशुओं को उतारते हैं. धुलियान में ही बांग्लादेशी व्यापारी से डील होने के बाद पशुओं को गंगा नदी की धार में छोड़ दिया जाता है, जहां पांच से सात किलीमोटर की दूरी में नदी के दूसरे छोर पर बांग्लादेशी व्यापारी पशु को जीवित अवस्था में ही निकाल लेते हैं. कमजोर पशुओं को केले के पेड़ से बांधकर गंगा नदी में छोड़ा जाता है.
बिहार के अररिया व किशनगंज में दो लाइसेंसी बूचड़खाने हैं. इन बूचड़खानों में भी प्रतिदिन सैकड़ों पशुओं को खपाया जाता है. अगर मोहनपुर व सिमरामोड़ से आनेवाले पशुओं को अररिया व किशनगंज भेजना होता है, तो मोहनुपर से 15 किलोमीटर की दूरी पर बिहार के जयपुर में वाहनों में पशुओं को लोड कर भागलपुर होते हुए अररिया व किशनगंज भेज दिया जाता है. इस दौरान बांका के श्यामबाजार व धौरेया हाट से भी पशुओं को लोड कर अररिया व किशनगंज के बूचड़खाने में भेजा जाता है.
बताया जाता है कि डिमांड के अनुसार, अगर इन हाटों से बांग्लादेश पशुओं को भेजना होता है, तो किशनगंज के रास्ते असम में प्रवेश कर असम-बांग्लादेश बार्डर से 500 मीटर की दूरी पर पशुओं को उतारा जाता है और स्थानीय व्यापारियों की मदद से पशुओं को बार्डर के तार को उठाकर टपा दिया जाता है. इसमें 52 हजार रुपये प्रति जोड़ा पशुओं को बांग्लादेश में टपाने के लिए वसूला जाता है. बांग्लादेश में गोमांस काफी महंगी दरों पर बिकता है, जिससे इस व्यापार में जुड़े लोगों को मोटी कमाई होती है.
सांसद और पशु-अधिकारवादी मेनका गांधी ने झारखंड और बिहार से हो रही पशु तस्करी को लेकर ‘प्रभात खबर’ से बातचीत में कहा कि बिहार और झारखंड से गोवंश और अन्य पशुओं की पश्चिम बंगाल में तस्करी का मुख्य रास्ता इस्लामपुर है. वहां से दार्जिलिंग, अलीपुर द्वार और कूचबिहार होते हुए पशु पश्चिम बंगाल ले जाये जाते हैं.
पिछले महीने ही बंगाल के डीजीपी ने पशु तस्करी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से इस्लामपुर के एसपी को हटा कर नये एसपी को नियुक्त कर दिया. इसके एक हफ्ते के अंदर ही पशु तस्करी बंद हो गयी. यानी पुलिस चाह ले, तो पशु तस्करी एक ही रात में बंद हो सकती है. श्रीमती गांधी ने कहा : हमारे पास पशु तस्करी में लिप्त ट्रकों और कंटेनरों की पूरी सूची मौजूद है.
जिस भी राज्य की सरकार हमसे यह लिस्ट मांगेगी, हम उपलब्ध करा देंगे. हमने झारखंड में पाकुड़ के उपायुक्त और एसपी से कई बार पशु तस्करी को लेकर बात की. कई बार यहां तस्करी रुकी, लेकिन दोबारा यह शुरू हो गयी. बहुत से पुलिस वालों की आमदनी केवल पशु तस्करी से आ रही है.