रांची में सज गये छठ महापर्व के बाजार, देखें तस्वीरें
हरमू स्थित फल मंडी में सेब और केला की खूब थोक बिक्री हुई. केला बंगाल और आंध्र प्रदेश से मंगाये गये हैं. वहीं नारंगी के अलावा कश्मीर के सेब की बिक्री हुई. गुरुवार को 35 ट्रक केला और करीब 20 ट्रक सेब की बिक्री हुई.
रांची : लोक आस्था का महापर्व छठ 17 नवंबर को नहाय-खाय से शुरू हो रहा है़ व्रती 19 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ देंगी. 20 नवंबर को उगते सूर्यदेव को अर्घ देने के साथ ही चार दिवसीय महापर्व संपन्न हो जायेगा. इधर, छठ पूजा के निमित्त बर्तन धोये जा रहे हैं. दुकानों में पूजन सामग्री पहुंचने लगी है. राजधानी के बाजार भी गुलजार हो उठे हैं. बाजार में स्थानीय और दुमका, तपकरा आदि जगहों से बांस की टोकरी और सूप उतर चुके हैं. सूप की कीमत 55 से 90 रुपये के बीच है. वहीं टोकरी 180 से 250 रुपये प्रति पीस बिक रही है.
बाजार में कश्मीर के सेब व बंगाल-आंध्र प्रदेश के केलेहरमू स्थित फल मंडी में सेब और केला की खूब थोक बिक्री हुई. केला बंगाल और आंध्र प्रदेश से मंगाये गये हैं. वहीं नारंगी के अलावा कश्मीर के सेब की बिक्री हुई. गुरुवार को 35 ट्रक केला और करीब 20 ट्रक सेब की बिक्री हुई. आठ किलो वाले सेब के बॉक्स की कीमत 400 से 600 रुपये रही. वहीं नारंगी 600 से 900 रुपये प्रति 20 किलो के हिसाब से बिकी. बंगाल के पीला केला के एक घौद की कीमत 300-450 रुपये, जबकि आंध्र प्रदेश का केला 500 से 600 रुपये प्रति घौद के हिसाब से बिका.
नहाय-खाय को लेकर राजधानी के विभिन्न बाजारों में कद्दू 20-30 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है. गुरुवार को व्रतियों ने इसकी खरीदारी की. वहीं कई लोगों ने अपने घरों में फले कद्दू का वितरण व्रतियों के घर में किया. इसके अलावा अन्य सब्जियों की खरीदारी की.
मिट्टी के बर्तन की शुरू हो गयी खरीदारीमिट्टी के बर्तन की भी खरीदारी शुरू हो गयी है. खूंटी व स्थानीय आस-पास के इलाकों से मिट्टी की सामग्री मंगायी गयी है. वहीं हांडी पुरुलिया से मंगायी गयी है. मिट्टी का चूल्हा 151 रुपये पीस बिक रहा है. बड़ा चूल्हा 200-250 और लोहा का चूल्हा 300-450 रुपये में उपलब्ध है. वहीं कई लोग स्टील का चूल्हा भी खरीद रहे हैं, जिसकी कीमत 350-600 रुपये प्रति पीस है.
पति-पत्नी एक साथ कर रहे हैं छठी मइया का व्रतपूनम पांडेय-राजीव पांडेय, अशोक नगर
अशोक नगर की पूनम पांडेय पति राजीव पांडेय के साथ छठ व्रत कर रही हैं. वह बताती हैं : 23 वर्षों से छठ पूजा का अनुष्ठान कर रही हूं. वहीं पति सात वर्षों से छठ सालों से साथ यह अनुष्ठान करते आ रहे हैं. पर्व की इतनी महिमा है कि आज तक मेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती आ रही हैं. छठ के साथ-साथ प्रत्येक रविवार को उपवास भी रखती हूं. कोरोना काल के बाद से घर में अर्घ देती हूं. इस बार की पूजा की सारी तैयारियां हो गयी है.
व्रतियों की आस्था, वर्षों से निभा रहीं परंपराबचपन से ही छठी मइया के प्रति गहरी आस्था रही है
धुर्वा की सीमा झा 2003 से छठ महापर्व कर रही हैं. हालांकि सूप-दउरा लेकर अर्घ नहीं देती. सिर्फ जल में नारियल दीया लेकर खड़ी रहती हैं. सीमा बताती हैं : बचपन से ही छठी मइया के प्रति गहरी आस्था रही है. जब मन्नत पूरी हुई, तो व्रत रखना शुरू किया. इसके बाद लगातार छत व्रत करती आ रही हूं. नहाय-खाय, खरना पूरी परंपरा के साथ करती हूं, लेकिन सूप के साथ अर्घ नहीं देती.
छठ महापर्व के लिए ऑस्ट्रेलिया से रांची पहुंच गये हैं बेटी-दामादमोरहाबादी की डॉ मीना शुक्ला 35 वर्षों से छठ पर्व कर रही हैं. इस बार भी छठ को लेकर उनकी तैयारियां शुरू हो गयी हैं. ऑस्ट्रेलिया से बेटी और दामाद आ चुके हैं. बेंगलुरु से भी रिश्तेदार आये हैं. डॉ मीना कहती हैं : मैं लगातार छठ पर्व का अनुष्ठान करती आ रही हूं. इसके लिए पूरा परिवार एक जगह एकत्रित हो जाता है.
परिवार में चार लोग एक साथ करते हैं छठ व्रतहिनू की रहने वाली सुषमा शरण 2011 से छठ कर रही हैं. परिवार के चार सदस्य साथ में छठी मइया की उपासना करते हैं. वह बताती हैं कि छठ पूजा में घर में 40 सूप हो जाते हैं. पहले स्वर्णरेखा नदी में अर्घ देती थी, लेकिन भीड़ अधिक होने के कारण घर में ही सभी लोग अनुष्ठान करते हैं. इस बार भी तैयारियां शुरू हो गयी हैं. गोधन के दिन ही पूजन सामग्री, सूप, दउरा, गेहूं सहित अन्य सामग्री घर आ चुकी है. गेहूं के धोने व सुखाने का काम पूरा हो गया है.