Child Trafficking, Child Labor in Jharkhand: रांची : झारखंड के पलामू जिला में बाल श्रम कराने वाला गिरोह सक्रिय है. मुख्यमंत्री के संज्ञान में ट्विटर के जरिये यह बात आयी, तो उन्होंने तत्काल महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री जोबा मांझी को संज्ञान लेकर कार्रवाई करने के लिए कहा. मुख्यमंत्री ने पलामू के डीसी को टैग करते हुए लिखा, ‘बाल मजदूरी एक कलंक है, जिसे आप-हम सबको मिलकर खत्म करना है.’
पलामू के उपायुक्त से श्री सोरेन ने कहा कि मामले की जांच कर कार्रवाई करते हुए संबंधित क्षेत्र में परिवारों को जरूरी सरकारी योजनाओं से मदद पहुंचायें तथा बच्चों को शिक्षा से जोड़ें. उनके घर के आसपास के स्कूलों में उनका दाखिला करवायें. श्री सोरेन ने इसके साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री जोबा माझी को भी मामले का संज्ञान लेने के लिए कहा.
दरअसल, किसी ने ट्विटर पर मुख्यमंत्री को जानकारी दी कि पलामू के मनातू में बाल मजदूरी करनवाने का गोरखधंधा चल रहा है. यहां 2,000 रुपये में बच्चों को राजस्थान भेजा जा रहा है. इसके बाद मुख्यमंत्री ने मामले का संज्ञान लिया और कार्रवाई के निर्देश जिला के उपायुक्त और संबंधि विभाग की मंत्री को दिये.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि संयुक्त बिहार में 90 के दशक तक पलामू जिला का मनातू इलाका बंधुआ मजदूरी के लिए देश भर में चर्चित था. बंधुआ मजदूरी के कलंक से मुक्त होने के बाद इसकी पहचान नक्सलवादी हिंसा वाले क्षेत्र के रूप में बनी और अब जबकि दुनिया चांद और मंगल से आगे निकल चुकी है, यह इलाका बाल श्रमिकों के बड़े केंद्र के रूप में उभरा है.
खबर है कि मनातू के कई इलाकों से बड़ी संख्या में बच्चों को राजस्थान ले जाया गया है. लॉकडाउन के दौरान राजस्थान से मनातू के बंशी खुर्द और जगराहा गांव के 7 बच्चों को उनके घर पहुंचाया गया, जो उस राज्य में बाल श्रम कर रहे थे. आये दिन देश के अलग-अलग इलाकों से मनातू के बच्चों को बरामद किया जा रहा है.
बताया जा रहा है कि मनातू में एक बड़ा गिरोह सक्रिय है, जो बच्चों का बचपन छीनकर उन्हें मजदूरी की भट्ठी में झोंक रहा है. राजस्थान में चूड़ी की फैक्ट्री में झारखंड के बच्चों को काम पर लगा दिया जाता है. इनसे ऊंट की देखभाल भी करवायी जाती है. सिर्फ राजस्थान से एक साल में दो दर्जन से अधिक बच्चों को मुक्त कराया गया है, जो कहीं न कहीं बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे.
यह गिरोह बच्चों को राजस्थान ही नहीं, देश के अन्य राज्यों में भी ले जाता है. बाल मजदूरी का बड़ा केंद्र बन चुके बंशी के उप-मुखिया की मानें, तो किसी को नहीं मालूम कि यहां के कितने बच्चे अन्य राज्यों में मजदूरी करने के लिए गये हैं. बच्चों के माता-पिता भी यह बताने को तैयार नहीं हैं. 8-10 साल के बच्चों से भी मजदूरी करायी जाती है. सिर्फ दो-दो हजार रुपये में.
मजदूरी करने के साथ-साथ इन बच्चों को अपने मालिकों का जुल्म-ओ-सितम भी सहना पड़ता है. एक-एक गलती की उन्हें सजा मिलती है. पैसा कमाने की लालच में बच्चे अपने घर से चले तो जाते हैं, लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनका जीवन नर्क हो जाता है. उनके जैसे और कई बच्चे होते हैं, जिन्हें एक साथ एक कमरे में रखा जाता है. घर से निकलने की इजाजत नहीं होती.
बच्चों से सुबह 8 बजे से रात के 11 बजे तक चूड़ी में नग लगवाया जाता है. बीच में यदि कोई सो जाये, तो डांट-फटकार तो लगती ही है, पिटाई भी हो जाती है. 24 घंटे में सिर्फ दो बार भोजन नसीब होता है. एक बार दोपहर में और फिर रात में. बीच में यदि किसी ने खाना मांग लिया, तो उसकी खैर नहीं. जो भी बच्चे गये हैं, उनके परिवार की स्थिति बेहद खराब है. गरीबी में जी रहे हैं.
बाल मजदूरी एक कलंक है, जिसे आप-हम सबको मिलकर खत्म करना है। @DC_Palamu कृपया उक्त मामले की जाँच कर कार्यवाई करते हुए संबंधित क्षेत्र में परिवारों को जरूरी सरकारी योजनाओं से मदद पहुँचाकर तथा बच्चों को शिक्षा हेतु स्कूल में नामांकन करा सूचित करें।@JobaMajhi जी कृपया संज्ञान लें। https://t.co/06vge74H59
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) September 10, 2020
पलामू जिला के बाल संरक्षण पदाधिकारी प्रकाश कुमार बताते हैं कि बहुत से बच्चे बाल मजदूरी के लिए बाहर चले गये हैं. परिवार के सदस्य कहीं नहीं जाते और प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं देते. इसकी वजह से बहुत सारी बातें मालूम नहीं होतीं. मामले में चाइल्डलाइन को पहल करने के लिए कहा गया है.
Posted By : Mithilesh Jha