Christmas 2022: रांची में प्रभु यीशु के स्वागत के लिए तैयार किया जा रहा डिजाइनर चरनी
Christmas 2022: रांची के विभिन्न इलाकों में डिजाइनर चरनी की तैयारी की जा रही है. इसे लेकर रांची के बाजार में भी तरह-तरह की रेडिमेड चरनी की बिक्री हो रही है. चर्च के प्रारूप में तैयार की गयी चरनी 350 रुपये में मिल रही है.
Christmas 2022: क्रिसमस का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. मसीही विश्वासी क्रिसमस ट्री और चरनी सजाने में जुट गये हैं. बाजार में भी तरह-तरह की रेडिमेड चरनी की बिक्री हो रही है. खूंटी, हेहल, तुपुदाना के कारीगर पुआल और बांस से बनी चरनी लेकर रांची के बाजार पहुंच चुके हैं. वहीं, चरनी को सजाने के लिए बाजार में विभिन्न आकार में तरह-तरह की प्रतिमा, सितारे, क्रिसमस बॉल आदि उपलब्ध हैं. शहर के विभिन्न संस्थानों में भी क्रिसमस ट्री और चरनी को आकर्षक रूप में सजाया गया है. कहीं इसे गिटार का रूप दिया जा रहा है, तो कहीं गोशाला का.
13वीं शताब्दी में पहली बार सजायी गयी थी चरनी
प्रभु यीशु के जन्म पर्व क्रिसमस को लोग उत्साह के साथ मनाते हैं. इस पवित्र घटना के प्रतीकात्मक प्रारूप को चरनी के जरिये पेश किया जाता है. संत अलबर्ट कॉलेज के रेक्टर फादर अजय कुमार खलखो ने बताया कि चरनी तैयार किये जाने की परंपरा रोम, इटली में 13वीं शताब्दी से शुरू हुई. संत फ्रांसिस ऑफ आसीसी ने रोम के मेजर बेसिलिका ऑफ मेदर मेरी में पहली बार चरनी तैयार की थी. चरनी के प्रारूप में प्रभु यीशु मसीह के जन्म स्थान यानी बैतुलम गांव की गोशाला की सज्जा मिलती है. इसमें प्रतीकात्मक बालक यीशु, उनकी मां मरियम, पिता जोसेफ व चरवाहे समेत तीन ज्योतिष मिल्केयोर, जैस्पर और बल्थाजार और एक एंजेल की प्रतिमा स्थापित की जाती है. साथ ही चरनी के ऊपर ध्रुव तारा को प्रतीक के रूप में लगाया जाता है, जिसे तीन ज्योतिष देखते हुए बैतुलम पहुंचे थे. चरनी में इस्तेमाल होने वाले अन्य प्रारूपों में तीन ज्योतिष से प्रभु यीशु को उपहार में मिले सोना, लोबान और गंधरस को दिखाया जाता है.
जगह-जगह तैयार की जा रही चरनी
रांची के विभिन्न इलाकों में लाइव चरनी की तैयारी की जा रही है. डंगरा टोली, बरही टोली, सीआइपी कॉलोनी कांके, सेम्हर टोली कांके, सीएमपीडीआइ, खोरहा टोली, हेसाग, राजेंद्र चौक डोरंडा, एसओपी, एनओपी, डिब्डीह, सेक्टर टू धुर्वा, सतरंजी, बहूबाजार, सामलौंग, नामकुम आदि इलाकों में मसीही विश्वासी डिजाइनर चरनी तैयार कर रहे हैं. इसके अलावा विभिन्न चर्च और संस्थानों व घर में क्रिसमस ट्री के साथ डिजाइनर चरनी की सजावट दिखायी देने लगी है.
चरनी में दिख रहा चर्च का प्रारूप
बाजार में उपलब्ध रेडिमेड चरनी में संत मेरी चर्च, सीएनआइ चर्च और जीइएल चर्च का प्रारूप खास है. इसके अलावा घरौंदा, कुटिया व गोशाला के प्रारूप में भी चरनी मिल रही है. इनकी कीमत 200 से 2000 रुपये तक है. वहीं, चर्च के प्रारूप में तैयार की गयी चरनी 350 रुपये में मिल रही है. इसके साथ लोग क्रिसमस ट्री पर सैंटा पॉकेट्स एंड सॉक्स भी लगा रहे हैं. इसकी कीमत 50 से 80 रुपये तक है.
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रांची में 177 वर्ष पहले पहली बार मनाया गया था क्रिसमस पर्व
रांची में क्रिसमस मनाने की परंपरा 177 वर्ष पुरानी है. दो नवंबर 1845 को चार जर्मन लूथेरन मिशनरी- एमिल शात्स, ऑगस्त ब्रांट, फ्रेड्रिक बात्श और थियोडोर यानके रांची पहुंचे. बाबू लेन गोस्सनर कंपाउंड में टेंट लगाया. वर्तमान में जहां बेथेसदा हाई स्कूल है, वहीं प्रार्थनालय तैयार किया. जीइएल चर्च के बिशप जॉनसन लकड़ा ने बताया कि इसी प्रार्थनालय को रांची के पहले चैपल के रूप में विकसित किया गया है. इस चैपल में गोस्सनर मिशनियों नें 24 दिसंबर 1845 की रात को पहली बार क्रिसमस मनाया था. प्रार्थना कर प्रभु यीशु के आगमन की खुशियां आपस में बांटी थी. इसके बाद जर्मन मिशनरियों ने ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया. इस क्रम में चर्च के लिए जगह चिह्नित हुई और निर्माण कार्य शुरू हुआ. जर्मन मिशनरियों के आगमन के ठीक 10 वर्ष बाद 24 दिसंबर 1855 में जीइएल चर्च का उद्घाटन हुआ. और इसी रात क्रिसमस की पहली अराधना चर्च सभागार में हुई. इसके बाद से रांची में अन्य चर्च संगठन भी पहुंचे और धीरे-धीरे क्रिसमस वृहत रूप में मनाया जाने लगा.
रिपोर्ट : अभिषेक रॉय, रांची