रांची: क्रिसमस की तैयारियां अंतिम चरण में हैं. लोग आध्यात्मिक तैयारियों के साथ अपने घरों की साज-सज्जा में भी जुटे हुए हैं. क्रिसमस में घरों में चरनी सजाने का भी काफी एक महत्वपूर्ण स्थान होता है. इस काम में बड़े से लेकर बच्चे तक हाथ बंटाते हैं. चरनी के ऊपर तारा, चरनी में मां मरियम, जोसफ, भेड़ बकरियां, बालक यीशु के स्वरूपों को सजाया जाता है. वहीं चौक-चौराहों पर बजते क्रिसमस के गीतों में भी चरनी की बात जरूर रहती है. आदिवासी बहुल इलाकों में ‘चरनी ऊपरे का तारा टिमटिम टिमटिम चमकेला… जैसे गीत के बिना क्रिसमस अधूरा सा लगता है.
पोंटिफिकल यूनिवर्सिटी सत थॉमस अक्विनस, रोम में अध्ययनरत फादर सुशील टोप्पो कहते हैं : हम ख्रीस्तीयों के लिए ख्रीस्त जयंती प्रति वर्ष आनंद और शांति का संदेश लाती है. यह जयंती उस महान घटना की याद दिलाती है जब पिता ईश्वर ने लोगों की मुक्ति और उद्धार के लिए अपने इकलौते पुत्र यीशु मसीह को मुक्तिदाता के रूप में इस दुनिया में भेजा. वे कुंवारी मरियम और जोसफ के साधारण परिवार में जन्मे. बाद में अपने जीवन और शिक्षा से लोगों को प्रेम का पाठ सिखाया. दुनिया के लिए आदर्श बने.
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अपने दुश्मनों के लिए एक अच्छी सोच रखना है और उनकी गलतियों को भी क्षमा करना सिखाया. क्रिसमस की हर एक चरनी और दृश्य में इसी महान घटना को बताया जाता है. यह चरनी यीशु के जन्म का वर्णन करती है. यदि हम गौर से चरनी को निहारते हैं, तो हम बाइबल के जीवित वचन को अपनी आंखों के सामने पाते हैं. चरनी में क्रिसमस का अद्भुत संदेश छिपा है. चरनी में वर्णित कुवांरी मरियम, जोसफ और अन्य लोगों के जीवन हमें आदर्श मां, कर्तव्यनिष्ठ पिता और आज्ञाकारी संतान बनने के लिए प्रेरित करते हैं.
पोप फ्रांसिस ने 20 दिसंबर को वेटिकन में एक ऑडियंस के दौरान नेटिविटी सीन (यीशु के जन्म से जुड़े दृश्य) के संदर्भ में कहा : जन्म के दृश्य को एक ”खूबसूरत चीज” या एक ऐतिहासिक स्मरणोत्सव के रूप में देखना पर्याप्त नहीं है. क्योंकि शब्द के ”देहाधारण” के रहस्य से पहले, यीशु के जन्म से पहले, हमें ”विस्मय” (आश्चर्य) के धार्मिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. नेटिविटी दृश्य खुशी की बात भी करता है. जब कोई स्पष्ट रूप से यीशु की निकटता, ईश्वर की कोमलता का स्पर्श करता है, तो वह खुशी जो दिल से बहती है, हमें अकेला नहीं छोड़ती, बल्कि सांत्वना देती है. इस कारण किसी के घर में स्थापित किया जा सकने वाला जन्म का दृश्य बाइबिल में वर्णित कुएं की तरह है. यह मुलाकात का वह स्थान है, जहां हम जीवन की अपेक्षाओं और चिंताओं को यीशु के पास लाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे बेथलेहम के चरवाहे और ग्रेसीओ के लोगों ने किया था.
फादर फ्रांसिस मिंज के अनुसार क्रिसमस की चरनी बनाने का प्रचलन कला के रूप में चौथी सदी से प्रचलित हुआ. ख्रीस्तीय लोग अपनी दीवारों, पत्थरों और मिस्सा के परिधानों पर चरनी की पेंटिंग करते थे. क्रिसमस के धर्मानुष्ठान में प्रयुक्त लैटिन भाषा को आम जनता नहीं समझती थी, इसलिए वास्तव में असीसी के संत फ्रांसिस ने इटली के ग्रास्सियो नामक शहर में 1223 ईस्वी में यीशु के जन्म को जीवंत चरनी का रूप दिया. ईसा मसीह के जन्म को भक्तिमय ढंग से दर्शाने के लिए मनुष्य, जानवर, भेड़ और अन्य जानवरों को रखकर जीवंत चरनी बनायी.
पुरुलिया रोड में मो मुमताज क्रिसमस के समय वर्षों से चरनी बेचते हैं. उन्होंने बताया कि उनके पास चरनी 350, 450, 550, 650, 750 और 850 रुपये में उपलब्ध हैं. वहीं कई और लोग भी सड़क किनारे चरनी बेच रहे हैं. जब क्रिसमस बिलकुल निकट है, तो बाजार में चरनी की खरीदारी काफी तेज है.