रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि कभी-कभी प्रवासी श्रमिक भाइयों की मृत्यु से संबंधित अप्रिय खबरें आती हैं. अगर दुर्भाग्यवश किसी प्रवासी श्रमिक की मृत्यु होती है, तो राज्य सरकार उनके पार्थिव शरीर को वापस उनके घर लाने की व्यवस्था करेगी तथा अंत्येष्टि का पूरा खर्चा भी वहन करेगी. इसके लिए सभी जिलों में कॉरपस फंड बनाया जायेगा.
मुख्यमंत्री ने गुरुवार को झारखंड मंत्रालय स्थित सभागार में आयोजित सेफ एंड रिस्पांसिबल माइग्रेशन इनिशिएटिव (एसआरएमआइ) का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि झारखंड से रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर श्रमिकों का पलायन होता है, परंतु आज तक प्रवासी श्रमिकों के सुरक्षित और जवाबदेह पलायन के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनायी गयी है.
वर्तमान राज्य सरकार का प्रयास है कि झारखंड से जो भी श्रमिक एवं अन्य लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य अथवा देशों में जाते हैं, उनका हम पूरा डाटा बेस तैयार कर सकें. नीति के तहत उन्हें विपत्ति के समय मदद पहुंचा सकें. मौके पर सीएम के सचिव विनय चौबे, श्रम सचिव प्रवीण टोप्पो, मनरेगा आयुक्त बी राजेश्वरी, श्रम आयुक्त ए मुथुकुमार मौजूद थे.
मुख्यमंत्री ने कहा कि अपने जीवन स्तर को सकारात्मक दिशा देने के लिए कई बार हमें दूसरी जगहों पर पलायन करना पड़ता है. यह स्वाभाविक है. राज्य के प्रवासी मजदूरों को संरक्षित करने के लिए सरकार द्वारा ई-श्रम पोर्टल बनाया गया है. जल्द ही राज्य में स्किल यूनिवर्सिटी की भी स्थापना की जायेगी. मौके पर मुख्यमंत्री ने विभिन्न योजनाओं के तहत लाभुकों के बीच राशि का वितरण भी किया.
श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में संक्रमण काल में झारखंड ने सबसे बेहतर कार्य किया है. प्रवासी श्रमिकों का आंकड़ा उपलब्ध नहीं था. हमारी सरकार ने प्रवासी श्रमिकों का डाटाबेस तैयार किया है.
राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने कहा कि ह्यूमन माइग्रेशन के कई पहलू हैं. माइग्रेशन सिर्फ नकारात्मक ही नहीं बल्कि सकारात्मक भी होता है.
वर्तमान में एसआरएमआइ पायलट प्रोजेक्ट के तहत दुमका, पश्चिमी सिंहभूम तथा गुमला के श्रमिकों के पलायन को ध्यान में रखकर नीति बनायी गयी है. इन तीन जिलों से दिल्ली, केरल और लेह-लद्दाख में रोजगार के लिए गये प्रवासी श्रमिकों का डाटाबेस तैयार किया जा रहा है. इन सभी राज्यों से समन्वय स्थापित कर प्रवासी श्रमिकों के सामाजिक, आर्थिक और कानूनी मदद दी जायेगी.