कॉमर्शियल माइनिंग से मजबूत होगी कोल इंडिया

कोयला खनन में कॉमर्शियल माइनिंग की अनुमति मिलने के बाद इसका कई स्तर पर विरोध हो रहा है. झारखंड सरकार का कहना है कि बिना राज्य की सलाह के केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है. इससे राज्य का अहित होगा. कोल इंडिया में काम करनेवाले मजदूरों और अधिकारी संगठनों को लगता है कि इससे कंपनी का अस्तित्व खतरे में होगा. कोल इंडिया बाजार से आउट हो जायेगी तथा इससे निजी कंपनियों को फायदा होगा. कोयला मंत्रालय के लिए कोल माइंस प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआइ) ने कोल ब्लॉक नीलामी के लिए कई काम किये हैं. यह संस्थान मंत्रालय को तकनीकी सहयोग भी कर रहा है. कॉमर्शियल माइनिंग को लेकर हो रहे विवाद के मद्देनजर प्रभात खबर के लिए मनोज सिंह ने सीएमपीडीआइ के सीएमडी शेखर सरन से बात की. श्री सरन का मानना है कि कॉमर्शियल माइनिंग से कोल इंडिया और मजबूत होगी. वहीं करीब एक लाख करोड़ रुपये हर साल विदेश जाने से बचेंगे.

By Prabhat Khabar News Desk | June 28, 2020 5:47 AM
  • कहा : विदेश जाने से बचेंगे लगभग एक लाख करोड़ रुपये

कोयला खनन में कॉमर्शियल माइनिंग की अनुमति मिलने के बाद इसका कई स्तर पर विरोध हो रहा है. झारखंड सरकार का कहना है कि बिना राज्य की सलाह के केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है. इससे राज्य का अहित होगा. कोल इंडिया में काम करनेवाले मजदूरों और अधिकारी संगठनों को लगता है कि इससे कंपनी का अस्तित्व खतरे में होगा. कोल इंडिया बाजार से आउट हो जायेगी तथा इससे निजी कंपनियों को फायदा होगा. कोयला मंत्रालय के लिए कोल माइंस प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआइ) ने कोल ब्लॉक नीलामी के लिए कई काम किये हैं. यह संस्थान मंत्रालय को तकनीकी सहयोग भी कर रहा है. कॉमर्शियल माइनिंग को लेकर हो रहे विवाद के मद्देनजर प्रभात खबर के लिए मनोज सिंह ने सीएमपीडीआइ के सीएमडी शेखर सरन से बात की. श्री सरन का मानना है कि कॉमर्शियल माइनिंग से कोल इंडिया और मजबूत होगी. वहीं करीब एक लाख करोड़ रुपये हर साल विदेश जाने से बचेंगे.

आखिर कॉमर्शियल माइनिंग क्यों?

अभी देश में केवल कोल इंडिया ही कोयला निकाल कर बेच रही है. हर वर्ष करीब 700 मिलियन टन कोयला निकाला जाता है. इसके बाद भी करीब 235 मिलियन टन कोयला अभी हमें विदेशों से मंगाना पड़ रहा है. इसमें 150 से 160 मिलियन टन कोयला ऐसा है, जो हम अपने देश में ही निकाल सकते हैं. बाहर से कोयला मंगाने पर देश को हर साल करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, जबकि यह कोल इंडिया के उत्पादन का एक तिहाई है. जिस हिसाब से देश में कोयले की मांग बढ़ रही है, उसे पूरा करने के लिए खनन में निजी कंपनियों का अाना जरूरी है. देश में ऊर्जा की जरूरत पूरी करने के लिए सबसे सस्ती बिजली, कोयला से ही संभव है. वर्ष 2035 के आसपास देश को करीब 1500 से 1600 मिलियन टन कोयले की सालाना जरूरत होगी. इसे केवल कोल इंडिया के सहारे पूरा करना संभव नहीं है.

पूर्व में भी निजी कंपनियों से खनन का प्रयास हुआ था, लेकिन वह तो विफल रहा?

पिछली बार कंपनियों को जो कोल ब्लॉक दिये गये थे, उनमें कंपनियों को अपनी यूनिट रखने की शर्त थी. जिन कंपनियों की यूनिट किसी कारण शुरू नहीं हो पायी, वहां खनन का काम शुरू नहीं हो सका. इसमें कुछ नीतिगत परेशानियां भी थीं, जिन्हें अब दूर कर लिया गया है. निजी कंपनियों को कई प्रकार की छूट भी दी जा रही है.

निजी कंपनियों के आने से कोल इंडिया की हालत दूसरी सार्वजनिक उपक्रम जैसी तो नहीं होगी?

ऐसा नहीं है. कोल इंडिया भी उत्पादन बढ़ाने के लिए काम कर रही है. कंपनी को अगले एक-दो वर्षों में एक हजार मिलियन टन कोयला निकालना है. इसके लिए मंत्रालय की मदद मिल रही है. इससे कोल इंडिया भी प्रतिस्पर्द्धी हो जायेगी. इसकी शुरुआत माइंस डेवलपर सह ऑपरेटर (एमडीओ) लाकर की जा रही है. इसके तहत कंपनियों को कोल इंडिया अपना ब्लॉक 25 साल तक के लिए लीज पर देगी.

एमडीओ कहीं निजीकरण की दिशा में एक कदम तो नहीं है?

नहीं ऐसा नहीं है. ऐसा तो यूनियनें भी चाहती हैं. उनका कहना था कि किसी कंपनी को लंबी अवधि के लिए खनन लीज मिले. इससे कंपनी अपनी आधारभूत संरचना खड़ी कर सकेगी. इसी कारण कोल इंडिया ने खनन तक या 25 साल तक खनन अनुमति देने का प्रावधान किया है.

निजी कंपनियों के आने से कोल इंडिया के कोयले की कीमत महंगी तो नहीं होगी? क्योंकि यहां उत्पादन लागत अधिक है?

कोल इंडिया भी अब निजी ऑपरेटरों से खदानों की खुदाई करा रही है. कोयले की कीमत तय करने के लिए कोल प्राइस इंडेक्स है. इसमें कोल इंडिया जैसा बड़ा खिलाड़ी ही कोयले की कीमत तय करेगा. इस कारण निजी ऑपरेटरों के लिए सस्ता कोयला बेचना आसान नहीं होगा.

इससे राज्य सरकारों को क्या परेशानी है?

राज्य सरकार को परेशानी नहीं होनी चाहिए. झारखंड में 41 खदान नीलामी पर हैं. इससे राज्य सरकार को राजस्व मिलेगा. लोगों को रोजगार मिलेगा. डीएमएफटी की अतिरिक्त नीलामी के बाद खनन शुरू होने पर पैसा देने का प्रावधान है. केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को कई अधिकार दिये हैं.

अभी नीलामी हुई, तो कब तक कोयला बाजार में आने लगेगा ?

जिस माइंस का अभी कुछ भी क्लियर नहीं है, उसे शुरू होने में कम से कम पांच साल लगेंगे. कुछ ऐसे भी माइंस हैं, जो दूसरी कंपनियों ने लिये थे. अब सरेंडर हो गये हैं. एेसी माइंस का सब कुछ क्लियर होगा, तो एक साल में खनन शुरू हो सकता है.

क्या कोल इंडिया की माइंस भी नीलामी में है?

नहीं. भारत सरकार ने कोल इंडिया के लिए पहले से कुछ माइंस चिह्नित कर रखे हैं. वह नीलामी में नहीं हैं. कोल इंडिया के पास कुल रिजर्व का करीब 54 फीसदी माइंस है. वर्तमान खनन क्षमता के आधार पर पर 100 साल तक खनन हो सकेगा.

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