कोयला ढुलाई में लगे झारखंड के मजदूरों की बीमारी का कारण प्रदूषण, 25 फीसदी को सांस संबंधी रोग

झारखंड में अगर कोयले का उत्पादन कम या खत्म किया गया तो ज्यादातर मजदूर खेती को दूसरे विकल्प के रूप में अपनाना चाहेंगे. पर्यावरण प्रदूषण संबंधी समस्या को लेकर भारत ने ऊर्जा के वैसे स्त्रोतों को कम करने का निर्णय लिया है.

By Prabhat Khabar News Desk | April 20, 2023 9:36 AM

झारखंड की कोयला खदानों से उत्पादन कम होने या बंद करने के मुद्दे पर अर्नेस्ट एंड यंग और क्लाइमेट ट्रेंड ने रिपोर्ट जारी की है. दोनों संस्थाओं ने मिलकर झारखंड के छह हजार मजदूरों को सर्वे में शामिल किया. इसमें पाया कि कोयला खनन से जुड़े एक तिहाई मजदूरों की बीमारी का कारण प्रदूषण है. इन बीमारियों में से 28 फीसदी मजदूर सिलिकॉसिस से पीड़ित हैं. जबकि 25 फीसदी को सांस संबंधी रोग हैं.

कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में रिपोर्ट जारी की गयी. इसमें बताया गया कि झारखंड में अगर कोयले का उत्पादन कम या खत्म किया गया तो ज्यादातर मजदूर खेती को दूसरे विकल्प के रूप में अपनाना चाहेंगे. पर्यावरण प्रदूषण संबंधी समस्या को लेकर भारत ने ऊर्जा के वैसे स्त्रोतों को कम करने का निर्णय लिया है, जिससे वातावरण को नुकसान हो रहा है. इस कारण 2030 के बाद कोयले का उत्पादन कम करना है. कोयला का उत्पादन कम या खत्म होगा तो इस पेशे से जुड़े लोग क्या करेंगे, इसको रिपोर्ट में शामिल किया गया.

सर्वे में पाया गया कि कोयला क्षेत्र में काम करनेवाले 50 फीसदी मजदूर मानते हैं कि वह दूसरे काम के लायक नहीं हैं. एक तिहाई कोयला मजदूरों का मानना है कि उनके पास रोजगार करने के लिए पैसा भी नहीं है. 94 फीसदी मजदूरों का मानना है कि उनको तकनीकी प्रशिक्षण नहीं मिला है. 86 फीसदी मजदूर चाहते हैं कि उनकी क्षमता का विकास हो. अर्नेस्ट एंड यंग के एसोसिएट पार्टनर अमित कुमार ने कहा कि कोयला उत्पादन कम होने के बाद कर्मियों पर क्या असर होगा, इस पर अब तक गंभीरता से चर्चा नहीं हो रही है.

झारखंड जैसे राज्य में कई जिले ऐसे हैं, जहां कोयला पर निर्भरता बहुत अधिक है. बिना प्लान के खदानों के बंद होने का असर कई जिलों में दिखता है. इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूर है. क्लाइमेट ट्रेंड की आरती खोसला ने कहा कि फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म इंधन) से ऊर्जा की जरूरत पूरी करने को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभी एकमत नहीं बन पाया है.

आइआइटी कानपुर के प्रदीप स्वर्णकार ने कहा कि जस्ट ट्रांजिशन विषय के कई पहलू हैं. इसमें एक मामला मजदूरों का है. इससे बड़ी संख्या में मजदूर प्रभावित होंगे. कार्यक्रम में एटक की महासचिव अमरजीत कौर, प्रो रुना सरकार, इसीएल की निदेशक आरती स्वाइन, स्वाति डिसूजा, मयंक अग्रवाल ने भी विचार रखा.

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