वरीय संवाददाता, रांची. झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस अनिल कुमार चाैधरी की अदालत ने क्रिमिनल क्वैशिंग याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि चेक बाउंसिंग के मामले में एनआइ एक्ट की धारा-142 के तहत अपराधों का संज्ञान लेने के लिए पुलिस को रिपोर्ट करने की आवश्यकता नहीं होती है, न ही अदालत को शिकायत की जांच करने के लिए पुलिस को निर्देश देने का अधिकार है. दंडनीय अपराध का संज्ञान सिर्फ लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है. अदालत ने सुनवाई के दाैरान दलील सुनने व रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्रियों को देखने के बाद कहा कि यहां यह उल्लेख करना उचित है कि कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि एनआइ एक्ट की धारा-142 के तहत अपराध का संज्ञान केवल लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है. अधिनियम पुलिस को रिपोर्ट करने की बात नहीं करता और न ही संज्ञान लेने वाली अदालत को पुलिस को शिकायत की जांच करने का निर्देश देने का अधिकार देता है. ऐसी परिस्थितियों में यह अदालत इस विचार पर है कि भले ही प्राथमिकी में प्रार्थी के खिलाफ लगाये गये आरोप सत्य माने जाये, फिर भी प्रार्थी के खिलाफ भादवि की धारा-467, 468/120बी के तहत दंडनीय अपराध नहीं बनता है. अदालत ने याचिका स्वीकार कर लिया. साथ ही प्राथमिकी को निरस्त कर दिया. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अदालत में यह तर्क दिया गया कि उनके खिलाफ जालसाजी का कोई आरोप नहीं है. इसलिए प्राथमिकी निरस्त की जानी चाहिए. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी प्रशांत कुमार सिंह ने याचिका दायर की थी. प्रार्थी के खिलाफ आरोप था कि उसने शिकायतकर्ता को 10,82,500 रुपये का चेक जारी किया था. वह चेक भुनाने के क्रम में बाउंस कर गया था.
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