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जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट सरकार ने हाइकोर्ट को सौंपी

हाइकोर्ट ने झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने प्रार्थी व राज्य सरकार का पक्ष सुना.

वरीय संवाददाता (रांची).

हाइकोर्ट ने झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने प्रार्थी व राज्य सरकार का पक्ष सुना. इसके बाद खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 जून की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि कोर्ट के 11 जून के आदेश के आलोक में एक सदस्यीय जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट की फोटोकॉपी शपथ पत्र के माध्यम से दाखिल कर दी गयी है. मंत्रिमंडल सचिवालय व निगरानी विभाग के अवर सचिव शिवमंगल सिंह ने शपथ पत्र दायर किया है. इसमें कहा गया है कि एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट (स्वर्गीय जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद द्वारा दो खंडों में 30 संदर्भों के संबंध में बिना अनुलग्नक के) की फोटो कॉपी झारखंड विधानसभा सचिवालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली एक सदस्यीय न्यायिक आयोग को साैंपी गयी थी. जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली एक सदस्यीय न्यायिक आयोग द्वारा जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट की फोटोकॉपी 16 नवंबर 2023 को विभाग को प्रस्तुत की गयी थी. उस रिपोर्ट की फोटोकॉपी शपथ पत्र के साथ संलग्न की गयी है. इस पर प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए समय देने का आग्रह किया. पूर्व में राज्य सरकार ने आयोग की रिपोर्ट सीलबंद प्रस्तुत की थी. सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन, झारखंड विधानसभा की ओर से अधिवक्ता अनिल कुमार व राज्यपाल की ओर से अधिवक्ता प्रशांत पल्लव ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी शिवशंकर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की है. प्रार्थी ने आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई व सीबीआइ जांच की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि झारखंड विधानसभा में हुई अवैध नियुक्तियों की जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग बनायी गयी थी. आयोग ने वर्ष 2018 में राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. बाद में जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए एक और न्यायिक आयोग सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता में बना दी गयी.

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