कांग्रेस नेता बंधु तिर्की बोले, झारखंड के जनजातीय समूहों के विकास के लिए हाई लेवल कमेटी बनाए हेमंत सरकार
बंधु तिर्की ने कहा कि अधिकतर जनजातीय समूह विकास की दौड़ में पूरे समाज और अन्य कुछेक जनजातीय समूहों से भी काफी पीछे हैं. प्रत्येक जनजातीय समुदाय अथवा समूह की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति, सभ्यता, रहन-सहन और कुल मिलाकर एक अलग पहचान है जिसे न केवल संरक्षित किया जाए, बल्कि प्रभावी योजना बनायी जाए.
रांची: झारखंड के पूर्व मंत्री व कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि झारखंड स्थापना के 22 साल बाद भी अधिकतर जनजातीय समूहों का उपेक्षित, अभावग्रस्त और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रहना गंभीर चिंता की बात है. अभी वर्तमान में अनुसूचित जनजाति की सूची में 32 जातियां सूचीबद्ध हैं लेकिन उन सभी के संतुलित, अपेक्षित और योजनाबद्ध विकास के लिये राज्य सरकार को नये सिरे से अपनी योजना तैयार करनी चाहिये क्योंकि अब तक यह बात पूरी तरीके से प्रमाणित हो चुकी है कि अनेक कारणों से विविध सरकारी योजनाओं का उन जनजातीय समूहों को अभी तक पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाया है.
बंधु तिर्की ने कहा कि अधिकतर जनजातीय समूह अभी भी विकास की दौड़ में तुलनात्मक रूप से पूरे समाज और अन्य कुछेक जनजातीय समूहों से भी काफी पीछे हैं. प्रत्येक जनजातीय समुदाय अथवा समूह की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति, सभ्यता, रहन-सहन और कुल मिलाकर एक अलग पहचान है जिसे न केवल संरक्षित किया जाना चाहिये बल्कि उसके उन्नयन के लिए भी सरकार को प्रभावी योजना तैयार करनी चाहिये. राज्य सरकार को इस योजना के कार्यान्वयन में बेहद सक्रिय, संवेदनशील एवं जागरूक अधिकारियों को सम्बद्ध किया जाना चाहिये क्योंकि झारखंड का गठन ही यहां की संस्कृति के संरक्षण एवं जनजातीय समूहों की सभ्यता, रहन-सहन, जीवन पद्धति आदि के संरक्षण-उन्नयन के साथ ही उनके आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास के प्राथमिक उद्देश्य के साथ किया गया था. अनेक जनजाति समूह प्रशासनिक निष्क्रियता के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि अधिकतर जनजाति समूहों को अपने जीवन-यापन के लिये पलायन का सामना करना पड़ रहा है.
सरकार विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के विशेषज्ञ लोगों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर उसे इस बात का दायित्व सौंपे कि वह सीमित अवधि में सभी जनजातीय समुदायों के संतुलित एवं समन्वित विकास की प्रभावी योजना तैयार करे और इसकी पृष्ठभूमि में विविध जनजाति के परंपरागत पेशे के साथ उनकी सामाजिक एवं शैक्षणिक स्थिति को भी ध्यान में रखे जिससे सभी जनजाति आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टिकोण से अपने-आप को मुख्यधारा में ला सकें.
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