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टीएसी में बनी सहमति, अब झारखंड में 1950 के जिला व थाना क्षेत्र के आधार पर सीएनटी जमीन की हो सकेगी खरीद-बिक्री

1950 में अविभाजित बहार के झारखंड प्रक्षेत्र में मात्र सात जिले थे. संतालपरगना, हजारीबाग, रांची, पलामू, मानभूम, धनबाद और सिंहभूम. टीएसी के प्रस्ताव पर सरकार आगे बढ़ती है, तो इन जिलों के विभाजन के बाद जिलों के लोग भी सीएनटी एक्ट के प्रावधान के अनुरूप अलग-अलग जिलों में जमीन खरीद सकेंगे.

राज्य में सीएनटी एक्ट के तहत जमीन की खरीद-बिक्री में जिला व थाना क्षेत्रों का दायरा बढ़ाने की तैयारी हो रही है. गुरुवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में जनजाति परामर्शदातृ पर्षद (ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल, टीएसी) की बैठक में सहमति बनी है. टीएसी की बैठक में सीएनटी एक्ट के अंतर्गत 26 जनवरी 1950 के समय राज्य के भीतर जो जिले और थाने थे, उन्हीं को जिला और थाना मानते हुए धारा-46 के तहत जमीन की खरीद-बिक्री के लिए मान्यता प्रदान पर सहमति दी गयी है. इस संबंध राज्य सरकार आगे विधि-सम्मत कार्रवाई करेगी. टीएसी की बैठक में सीएनटी के तहत आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री के मामले में सदस्यों का कहना था कि प्रशासनिक दृष्टि से नये-नये थाने बनाये गये हैं. आदिवासियों को थाना क्षेत्र के अंदर ही जमीन की खरीद-बिक्री बाध्यता है. वहीं, एससी-ओबीसी के लिए जिला का दायरा बनाया गया है.

टीएसी की 26वीं बैठक में राज्य सरकार के पंचायती राज विभाग द्वारा झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) पेसा नियमावली-22 के ड्राफ्ट को लेकर अपनी असहमति जतायी है. टीएसी के सदस्यों ने इसके प्रारूप पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इसे पंचायती राज अधिनियम-2001 के अनुरूप बनाया गया है, जबकि पी-पेसा के प्रावधान के अनुरूप नहीं बनाया गया है. पंचायती राज व्यवस्था से अलग पी-पेसा के तहत पंचायतों के अधिकार हैं. शिड्यूृल एरिया में पंचायती राज कानून के तहत व्यवस्था नहीं चल सकती है, उसके लिए पेसा के तहत नियमावली की जरूरत है. पंचायती राज व्यवस्था के तहत ग्रामसभा और पेसा के तहत पारंपरिक ग्रामसभा की अलग-अलग व्यवस्था है. अनुसूचित क्षेत्रों के ग्रामसभा को निर्वाचित ग्रामसभा की तरह नहीं चलाया जा सकता है. इससे आदिवासियों की पहचान, अस्तित्व व अधिकार पर संकट होंगे. सदस्यों की आपत्ति के बाद बैठक में निर्णय लिया गया कि टीएसी के सदस्य इसपर अपने लिखित सुझाव दें.


थानों की बाध्यता हटाने के लिए होगी जांच : सीएम

टीएसी की बैठक के बाद प्रोजेक्ट भवन में पत्रकारों से बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि टीएसी की बैठक महत्वपूर्ण रही है. यहां पर थाना क्षेत्र के अंतर्गत जमीन की खरीद-बिक्री की बाध्यता है. सीएनटी-एसपीटी एक्ट बनने के समय और आज के थानों की स्थिति में बहुत बदलाव आया है. इसे ध्यान में रखते हुए थाना की बाध्यता को जांच-पड़ताल कर उसके अनुरूप राज्य में आदिवासियों की जमीन-खरीद-बिक्री के नियम बने. इसकी खासतौर पर चर्चा की गयी. सीएम ने कहा कि स्टीफन मरांडी की अध्यक्षता में बनी उपसमिति की समयावधि बढ़ायी गयी. पेसा कानून को लागू करने पर और विस्तृत चर्चा करने की जरूरत है.

देखना होगा कि ओडिशा सरकार ने क्या किया

यह पूछने पर कि ओडिशा सरकार ने फैसला लिया है कि आदिवासी अब गैर आदिवासियों को जमीन बेच सकेंगे, सीएम ने कहा : इसमें कितनी सच्चाई है, जब तक कागज न देखा जाये, तब तक जवाब देना मुश्किल है. देखा जायेगा कि निर्णय किस संदर्भ में लिया गया है.

1950 में झारखंड में मात्र सात जिले थे, नये नियम से सीएनटी लैंड की खरीद-बिक्री का दायरा बढ़ेगा

1950 में अविभाजित बहार के झारखंड प्रक्षेत्र में मात्र सात जिले थे. संतालपरगना, हजारीबाग, रांची, पलामू, मानभूम, धनबाद और सिंहभूम. टीएसी के प्रस्ताव पर सरकार आगे बढ़ती है, तो इन जिलों के विभाजन के बाद जिलों के लोग भी सीएनटी एक्ट के प्रावधान के अनुरूप अलग-अलग जिलों में जमीन खरीद सकेंगे. इन जिलों को बांट कर ही वर्तमान में 24 जिले बने हैं. ऐसे में सीएनटी के अंतर्गत आनेवाले एससी और ओबीसी वर्ग के बीच जमीन खरीद-बिक्री का दायरा बढ़ेगा.

सीएनटी एक्ट के मामले में अब आगे क्या

  • टीएसी विधि विशेषज्ञों से राय लेकर एक सर्वसम्मत प्रस्ताव तैयार कर सकती है

  • इस प्रस्ताव को राज्य सरकार के पास भेजा जायेगा.

  • टीएसी इस मामले को गवर्नर को नहीं भेजेगी, क्योंकि गवर्नर को टीएसी से अलग किया गया है.

  • पांचवीं अनुसूची में टीएसी के कस्टोडियन गवर्नर होते हैं, लेकिन राज्य सरकार ने नयी नियमावली तैयार कर ली है.

  • सीएनटी एक्ट में सरकार कोई संशोधन करती है, तो उसे विधानसभा से पारित करना होगा.

  • विधानसभा से पारित होने के बाद ही इसको अमलीजामा पहनाया जा सकता है.

पेसा नियमावली का ड्राफ्ट खारिज करने के बाद आगे क्या

  • पेसा नियमावली का ड्राफ्ट खारिज करने के बाद आगे पंचायत चुनाव के लिए अब इंतजार करना होगा.

  • शिड्यूल एरिया में पेसा नियमावली के तहत ग्राम सभाओं का गठन होना है.

  • पेसा नियमावली में पारंपरिक ग्रामसभा व निर्वाचित ग्रामसभा के बीच एक तर्क संगत नियमावली बनाने की जरूरत होगी.

  • पंचायत चुनाव नहीं होने के कारण केंद्रीय अनुदान फंसेंगे.

1950 में अविभाजित बिहार में ये 17 जिले थे

पटना, गया, शाहाबाद, चंपारण, सारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मुंगेर, भागलपुर, पूर्णिया, संताल परगना, हजारीबाग, रांची, पलामू, मानभूम, धनबाद और सिंहभूम

-बिहार स्टेटिक्ल हैंडबुक-1951 के हवाले से

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