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Corona Effect : पशुपालक को नहीं मिल रहे दूध के खरीदार, चारा मिलने पर भी संकट

पशुपालकों को दूध बेचने का उपाय नहीं सूझ रहा है, वे दूध फेंकने को मजबूर हैं. पशुपालकों का कहना है कि अगर ऐसी ही स्थिति रही, तो पशुओं को बचाना मुश्किल हो जायेगा. सामलौंग शांतिनगर में रहनेवाले विजेंद्र यादव कहते हैं कि यहां करीब 50 पशुपालक परिवार हैं.

रांची : कोरोना के साथ-साथ पशुपालकों का संकट भी राजधानी में बढ़ रहा है. जिन-जिन इलाकों में कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं, उन इलाकों के पशुपालकों का संकट और बढ़ रहा है. लॉकडाउन होने के कारण पशुपालक पहले से ही संकट में थे. पशुओं के उत्पादों की कीमत पहले से ही बढ़ी हुई थी. अब ग्राहकों ने भी साथ छोड़ दिया है. पशुपालकों को दूध बेचने का उपाय नहीं सूझ रहा है, वे दूध फेंकने को मजबूर हैं. पशुपालकों का कहना है कि अगर ऐसी ही स्थिति रही, तो पशुओं को बचाना मुश्किल हो जायेगा. सामलौंग शांतिनगर में रहनेवाले विजेंद्र यादव कहते हैं कि यहां करीब 50 पशुपालक परिवार हैं.

सभी की आजीविका का साधन दूध ही है. यहां करीब 500 जानवर हैं. कांटाटोली व सामलौंग में कोरोना पॉजिटिव पाये जाने के बाद ग्राहकों ने आना छोड़ दिया है. कई ग्राहकों के पास दूध का पैसा बकाया है, वे भी देने नहीं आ रहे हैं. इससे जानवरों के सामने खाने का संकट हो गया है. इस मामले में उपायुक्त से संपर्क करने की कोशिश की गयी. उपायुक्त ने जिला पशुपालन पदाधिकारी का नंबर दिया. लेकिन, वहां से कोई रिस्पांस नहीं मिला. इस संबंध में पशुपालन विभाग के एक वरीय अधिकारी ने बताया कि पशुओं को चारा उपलब्ध कराने की कोई स्कीम विभाग में नहीं है.

खटाल विकास परिषद ने सुनी पशुपालकों की समस्या खटाल विकास परिषद ने शहर के पशुपालकों की समस्या को लेकर उनसे वीडियो कॉल से बात की. पशुपालकों की समस्या भी सुनी. परिषद के अध्यक्ष केएन गोप को पशुपालकों ने बताया कि करीब-करीब पूरे शहरी इलाकों में खटाल संचालकों की स्थिति बुरी हो गयी है. दूध के खरीदार नहीं मिल रहे हैं. पशुओं के समक्ष चारे का संकट हो गया है. मेधा और सुधा का कलेक्शन सेंटर भी ग्रामीण इलाकों में है. ऐसी स्थिति में अगर सरकारी सहायता नहीं दी गयी, तो पशुओं की मौत होने लगेगी. इससे बचने के लिए तत्काल शहर के पशुपालकों के खाते में दो-दो हजार रुपये डालने चाहिए.

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