वैश्विक महामारी कोरोना ने बच्चों को एक बड़ी बीमारी दी. यह बीमारी आज सबसे बड़ी बीमारी बन गयी है. माता-पिता या अभिभावकों को बच्चों को इस बीमारी से बचाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है. अगर अभी से इस चुनौती से नहीं निपटा गया, तो भविष्य में एक अलग तरह की परेशानी सामने आयी. यह बीमारी है इंटरनेट एडिक्शन. बच्चों को इंटरनेट के एडिक्शन से बचाना बेहद जरूरी है.
झारखंड की राजधानी रांची के कांके में स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकियैट्री (सीआईपी) के डायरेक्टर प्रो (डॉ) बासुदेव दास कहते हैं कि यह एक गंभीर समस्या है. अभिभावकों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है. डॉ दास कहते हैं कि पहले मैट्रिक, इंटर या किसी अन्य प्रतियोगी परीक्षा के टॉपर का इंटरव्यू आता था, तो वे जोर देकर कहते थे कि वह सोशल मीडिया, मोबाइल फोन आदि से दूर रहते थे.
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डॉ दास ने आगे कहा कि उनके पास कोई गैजेट नहीं था. आज हर बच्चे के हाथ में कोई न कोई गैजेट है. इसमें बच्चों की कोई गलती नहीं है. कोविड की वजह से सब कुछ बंद हो गया. लॉकडाउन लग गया. स्कूल-कॉलेज भी बंद हो गये. ऐसे में हर वर्ग के स्टूडेंट के लिए मोबाइल फोन या लैपटॉप या टैबलेट यानी कोई न कोई गैजेट अनिवार्य हो गया.
चूंकि बच्चों को ऑनलाइन क्लास अटेंड करना था, तो उन्हें इनमें से कोई न कोई गैजेट देना ही था. सो पैरेंट्स ने उन्हें दे दिया. लेकिन, कोविड के दौरान या उसके खत्म होने के बाद पैरेंट्स को जिस तरह से बच्चों की निगरानी करनी चाहिए थी, उन्होंने वैसा किया नहीं. अगर किसी गार्जियन ने कड़ाई की, तो बच्चे क्लास अटेंड करने के नाम पर मोबाइल फोन मांग लेते थे. इसके बाद वह उसका कुछ और इस्तेमाल शुरू कर देते थे.
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धीरे-धीरे यह एक नशे के तौर पर उभरने लगा. बाद में जब हालात सामान्य हुए और ऑफलाइन क्लास शुरू हो गये, तो बच्चों को एडजस्ट करने में काफी दिक्कतें आने लगीं. कई बच्चे चोरी-छिपे फोन लेकर स्कूल जाने लगे. ऐसे कुछ बच्चों के खिलाफ स्कूल प्रबंधन ने कार्रवाई भी की. कई बच्चों को रेस्टिकेट तक कर दिया गया. मामला यहीं नहीं थमा. कई तरह की परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं.
डॉ दास ने बताया कि आज के वक्त में आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि कोई भी व्यक्ति मोबाइल फोन के बगैर रह सकता है. बच्चों के साथ भी यही स्थिति है. बावजूद इसके, आपको टाइमआउट करना होगा. माता-पिता को चाहिए कि वे एक टाइम स्लॉट तय कर दें कि दिन में आधा घंटा या एक घंटा ही आप मोबाइल का इस्तेमाल कर पायेंगे. अगर हम ऐसा कर पाये, तो बच्चों को इंटरनेट के एडिक्शन से बचा सकते हैं. ऐसा नहीं कर पाये, तो हम उन्हें इस नशे से नहीं बचा पायेंगे.