Corona से जंग: Jharkhand के 3 लड़कों के सपोर्ट से चीन ने 10 दिन में तैयार किया था अस्पताल, भारत को भी जरूरत
Jharkhand boys helped china from war with Coronavirus चीन के वुहान से उत्पन्न हुआ कोरोना अब भारत में भी फैल चुका है. हालांकि, चीन ने तो इसे कंट्रोल कर लिया, पर क्या भारत कर पाएगा? इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, अगर भारत में मामला और गंभीर हुआ, तो 84000 लोगों के अनुपात में भारत के पास एक आइसोलेशन बेड मिलेगा, वहीं 36000 लोगों की संख्या पर एक क्वॉरेंटाइन बेड उपलब्ध हो पायेगा.
सुमीत कुमार वर्मा
प्रभात खबर
चीन के वुहान से उत्पन्न हुआ कोरोना अब भारत में भी फैल चुका है. हालांकि, चीन ने तो इसे कंट्रोल कर लिया, पर क्या भारत कर पाएगा? इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, अगर भारत में मामला और गंभीर हुआ, तो 84000 लोगों के अनुपात में भारत के पास एक आइसोलेशन बेड मिलेगा, वहीं 36000 लोगों की संख्या पर एक क्वॉरेंटाइन बेड उपलब्ध हो पायेगा.
इसी से समझा जा सकता है भारत की तैयारी कितनी है. हालांकि, आज हम आपको झारखंड के तीन ऐसे लड़कों की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनकी मदद से चाइना कोरोना वायरस से उबर पाया, तो भारत क्यों नहीं उबर सकता…
जी हां! भारत की क्षमता यह भी है. यह देश अपने आप में खास है. जिसके पास बेशक सुविधाओं की कमी है, लेकिन टैलेंट की नहीं. झारखंड से जुड़े तीन लड़को ने चीन को सपोर्ट सिस्टम दिया था. जिसकी वजह से चीन दस दिन में मरीजों के लिए कई हजार बेड का अस्पताल खोल पाया.
इसी गुरूवार को धनबाद से भी एक खबर आयी, जिसमें धनबाद आईएसएम के स्टूडेंट्स ने एक ऐसा वेंटिलेटर बनाया, जिससे एक साथ चार मरीजों का इलाज संभव हो पाएगा. इसमें बड़ी बात यह है कि चारों मरीजों को उनके जरूरत अनुसार एक साथ ऑक्सीजन मिल पाएगा. इससे पहले ऐसी मशीन सिर्फ अमेरिका के पास थी.
आपको बता दें कि रांची के रहने वाले नितिन (32) और हर्षवर्धन (33) बचपन से ही दोस्त है. नितिन ने अपनी 12वीं की पढ़ाई केन्द्रीय विद्यालय हिनू तो हर्षवर्धन ने गुरूनानक से पूरी की है. इन्होंने भुवनेश्वर के एक कॉलेज से अपना इंजीनियरिंग पूरा किया. जबकि इनके तीसरे पार्टनर धीरज (32) से इनकी मुलाकात कॉलेज के बाद हुई. वे भी झारखंड के चांडिल के रहने वाले है.
नितिन की मानें तो झारखंड के इन तीनों पार्टनर ने मिलकर एक कंपनी खोली थी जिसका नाम था इट्रिक्स टेक्नॉलाजी. यह एक कंसल्टींग कंपनी थी. जो ग्राहकों को सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट सर्विस दिया करती थी. ऐसा ही एक ग्राहक इनका जर्मन से था, जिसका नाम था जोसेफ, जो बाद में जाकर इन तीनों का चौथा पार्टनर बना. बाद में इन्होंने एक प्रोडक्ट डिजाइन किया, जिसका नाम रखा “ब्लिंकिंग”. और इसी के नाम पर फिलहाल, इन्होंने ब्लिंकिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी खोली रखी है. और कई ग्राहकों को अपनी सर्विस दे रहे हैं.
नितिन और हर्ष साथ में कई प्रोजेक्टस पर कर चुके हैं काम
नितिन बताते हैं कि वे कॉलेज के बाद हर्ष के साथ मिलकर कई प्रोजेक्टस पर काम कर चुके है. उन्होंने अपने सामने कई कंपनियों को उन्हीं के सर्विस को लेकर बड़ा बनते देखा है. वे लोग डेटिंग ऐप समेत बहुत सारे साफ्टवेयर के डेवलप्मेंट का काम कर चुके है.
कैसे काम करती है इनकी कंपनी
दरअसल, ब्लिंकिग प्राइवेट लिमिटेड अपने ग्राहकों के लिए साफ्टवेयर डेवलप्मेंट का काम करती थी. बाद में इन्होंने ग्राहकों के अलावा बड़ी कंपनियों के लिए ऐसा प्रोडक्ट बनाना शुरू किया जिसे वह कंपनी अपने ग्राहकों को इनके सपोर्ट से सेवाएं देने लगीं. इससे एक फायदा यह भी हुआ कि इनसे सीधे ग्राहक के अलावा बड़ी कंपनियां भी जुड़ीं और सर्विस लेने लगीं.
बैंगलोर से बैठ कर चाइना के मशीन को कर सकते हैं इंस्टॉल
इन्होंने एक ऐसा सर्विस ऐप बनाया जो किसी भी तरह के मशीन का इंस्टॉलेशन बिना किसी टेक्निकल बंदे के कर सकता है. इनके द्वारा बनायी गयी मशीन स्वत: काम करती है. लोगों को मौके पर मौजूद रहने की जरूरत नहीं है. वे बैंगलोर से बैठ कर चाइना के मशीन को रिमोट पर लेकर आसानी से इंस्टॉल कर सकते हैं.
दरअसल, इन्होंने गुगल एलेक्सा की तरह एक विजुअल बोट का निर्माण किया है, जो एक बार किसी इंस्टॉलेशन प्रोसेस को देख लेने के बाद अपने डाटावेस में सेव कर लेता है और दोबारा उसके इंस्टॉलेशन का पूरा प्रोसेस वेव कैम या मोबाइल के कैमरे के माध्यम से ही करके बता देता है.
कोरोना से जंग में चीन को कैसे किया सपोर्ट
आपने खबरों में सुना होगा कि चीन ने दस दिन में एक अस्पताल तैयार कर लिया था. दरअसल, चीन में जब कोरोना का कहर चरम पर था, तो संक्रमित लोगों को रखने के लिए चीन के पास अस्पताल की कमी हो गई. ऐसे में चीन ने कई हजार बेड का एक अस्पताल महज दस दिनों में निर्माण करवाया. अब जाहिर सी बात है, अगर अस्पताल बना तो मेडिकल से जुड़ी मशीनें भी लगी होंगी.
आपको बता दें कि चीन ने वेंटीलेटर समेत अन्य मशीनों के इंस्टॉलेशन के लिए टेंडर जारी किया था, जो एक जर्मन कंपनी ‘ह्यूबर रैनर’ को मिला. बाद में उस जर्मन कंपनी ने ब्लिंकिंग की मदद से, बिना वहां गए मशीनों के इंस्टॉलेशन का काम किया. नितिन ने बताया कि उनकी कंपनी ने करीब 60-70 एयर कंडीशनर यूनिट के अलावा कई मेडिकल इक्विपमेंट को इंस्टॉल किया था.
भारत को भी है जरूरत
नितिन बताते हैं कि उनके पास फिलहाल कई बड़े प्रोजेक्टस आए हुए हैं. भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ने में वे अपना सहयोग देना चाहते है.
भारत सरकार को भी इस मुसीबत की घड़ी में देश में मौजूद ऐसे ही कुछ स्टार्टअप से मदद लेने की जरूरत है.