चुनावी मुद्दा से हट गया बंद डकरा केंद्रीय विद्यालय का मामला
डकरा केंद्रीय विद्यालय के मामले पर इस बार आश्चर्यजनक रूप से कोई राजनीतिक दल के नेता बात नहीं कर रहे हैं.
प्रतिनिधि, डकरा पिछले चार लोकसभा चुनावों में एनके-पिपरवार कोयलांचल का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा रहे डकरा केंद्रीय विद्यालय के मामले पर इस बार आश्चर्यजनक रूप से कोई राजनीतिक दल के नेता बात नहीं कर रहे हैं. रांची लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे दो प्रमुख प्रत्याशी भाजपा के संजय सेठ और कांग्रेस की यशस्विनी सहाय डकरा का दौरा कर चुके हैं और मतदाताओं से संपर्क कर वोट की अपील कर चुके हैं. लेकिन पिछले 20 साल से बंद डकरा केंद्रीय विद्यालय मामले पर दोनों ने कोई वादा नहीं किया और न ही इस पर बात की. इससे कोयलांचल की एक बड़ी आबादी निराश है. 80 के दशक में शुरू हुआ डकरा केंद्रीय विद्यालय कभी इस कोयलांचल का शान था. किसी भी अधिकारी और कर्मचारी का जब यहां तबादला होता था तो वे खुशी से यहां आते थे, ताकि बच्चे अच्छी शिक्षा पा सकें. यह एक प्रोजेक्ट स्कूल था. सीसीएल के खर्च पर विद्यालय संचालित था. केंद्रीय विद्यालय संगठन और सीसीएल के बीच खर्च को लेकर शुरू हुआ विवाद इस कदर बढ़ गया कि वर्ष 2002 से विद्यालय में नामांकन और शिक्षकों की पोस्टिंग बंद कर दी गयी. उस समय 2004 के लोकसभा चुनाव में यहां का यह प्रमुख मुद्दा बना. कांग्रेस प्रत्याशी सुबोधकांत सहाय और भाजपा प्रत्याशी रामटहल चौधरी ने मतदाताओं से वादा किया था कि विद्यालय बंद नहीं होने दिया जायेगा. चुनाव सुबोधकांत सहाय जीते और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने, लेकिन 2006 में विद्यालय में ताला लग गया. 2009 के चुनाव में भी सुबोधकांत सहाय जीते, लेकिन विद्यालय खोलने की दिशा में कोई काम नहीं किया. 2014 का चुनाव भाजपा के रामटहल चौधरी ने जीता और वादा करके उन्होंने भी कुछ नहीं किया. 2019 के चुनाव में भाजपा के नया चेहरा संजय सेठ ने लोगों से वादा किया कि जीतने के एक साल के भीतर विद्यालय को खोलवाया जायेगा. उन्होंने पहली बार इस समस्या को लोकसभा में बहुत प्रभावशाली तरीके से उठाया. लेकिन उसके बाद अचानक उनकी गंभीरता इस मुद्दे से हट गया और इस पर बात करना भी बंद कर दिया. 2024 के चुनाव में यह मुद्दा एजेंडे से ही गायब हो गया है. क्यों जरूरी है केंद्रीय विद्यालय : सीसीएल की एनके, पिपरवार, मगध-संघमित्रा, आम्रपाली-चन्द्रगुप्त और राजहारा एरिया में काफी संभावना है कि समय-समय पर पांचों एरिया को मिलाकर एनकेसीएल नाम से कोल इंडिया की एक अलग कंपनी और कोयलांचल के नाम से अलग जिला बनाने की मांग उठते रहती है. डकरा इसके केंद्रबिंदु में है और यहां केंद्रीय विद्यालय रहने से क्षेत्र के लगभग 8000 सीसीएल कर्मी, 1000 सीआइएसएफ जवानों, 500 रेल कर्मियों जिनका समय-समय पर तबादला होता रहता है, उनके बच्चों के पढ़ने के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता. जबसे केंद्रीय विद्यालय बंद हुआ, तब से कोई भी यहां मन से रहकर ड्यूटी नहीं करना चाहते हैँ. सभी अपने परिवार व बच्चों को दूर रखकर विवश होकर यहां ड्यूटी करते हैं. सीआइएसएफ जवान रहते हैं परेशान : सीआइएसएफ जवानों के अधिकांश बच्चे केंद्रीय विद्यालय में पढ़ते हैं, लेकिन यहां तबादला होते ही उन्हें बच्चों को पढ़ाने में बहुत परेशानी होती है. किसी निजी विद्यालय में बच्चों का नामांकन के बाद जब यहां से जाते हैं तो वहां के केंद्रीय विद्यालय में जल्दी नामांकन नहीं हो पाता है. सीआइएसएफ इस मामले में लगातार पत्राचार कर विद्यालय खोलवाने की मांग करते रहे हैं. क्या है बाधा? केंद्रीय विद्यालय बंद होने के बाद डकरा में एक दर्जन से अधिक छोटे-बड़े निजी विद्यालय खुल गये हैं. सभी विद्यालय से जुड़े लोग समूह बनाकर इस कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं. वर्ष 2010 और 2016 में सीसीएल ने जब स्कूल खोलने की प्रक्रिया शुरू की तो आश्चर्यजनक रूप में पूरी प्रक्रिया बंद कर दी गयी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि केंद्रीय विद्यालय खुलने में बाधक बने लोगों का समूह कितना मजबूत है. सही बात है संज्ञान में लाया जायेगा: शैलेंद्र भाजपा खलारी अध्यक्ष शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि आपने सही बात कही है. इस महत्वपूर्ण मुद्दे से हमलोग हटे हुए हैं. सांसद ने प्रयास भी किये थे, लेकिन किसी कारणवश नहीं हो सका तो इस बार सांसद के संज्ञान में लाकर विद्यालय खोलवाने का प्रयास किया जायेगा. पढ़ाई का खर्च से बर्बाद हो गये: साबिर खलारी कांग्रेस अध्यक्ष साबिर अंसारी से पूछने पर कहा कि केंद्रीय विद्यालय था तो बहुत कम खर्च में बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा मिलती थी, लेकिन जब से यह बंद हुआ निजी स्कूलों में फीस भरके हमलोग बर्बाद हो गये हैं. सही मुद्दा पर ध्यान दिलाया गया है, इस बारे में पार्टी प्रत्याशी से बात करेंगे.
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