रांची, लता रानी : मूक बधिर बच्चे सुन और बोल नहीं सकते हैं, लेकिन ये भावनाओं को बखूबी समझते हैं. ये प्रतिभा संपन्न होने के साथ-साथ ज्यादा समझदार भी होते हैं. आज के दौर में मोबाइल ने इनकी जिंदगी को आसान बना दिया है. अब पहलेवाली बात नहीं रही.अब ये भी समाज के अन्य सामान्य बच्चों के साथ जिंदगी की रेस में शामिल हो रहे हैं. समय-समय पर मौका मिलने पर इन्होंने खुद को साबित भी किया है.
कोरोना संकट के दौर में भी ऑनलाइन कक्षाएं हुईं,तो इन बच्चों ने भी घर पर रह कर ही ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण की. आज के दौर में ये तकनीक और सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल करना जानते हैं. क्षितिज मूक बधिर मध्य विद्यालय निवारणपुर, डोरंडा में विशेष बच्चे बखूबी मोबाइल पर अपने दैनिक कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. इधर, शैरॉन एंजेल तिग्गा, मोहित, आयुष और मान्या आज आसानी से सामान्य बच्चों की तरह पढ़ाई के साथ-साथ अपने दैनिक जीवन के कार्यों को कर रहे हैं.
संवाद के तौर पर नयी तकनीक मूक-बधिर बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही है. मोबाइल के सहारे व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित अन्य सोशल मीडिया पर ये बच्चे अपनी फीलिंग्स यानी भावना को आसानी व सहज तरीके से व्यक्त कर पा रहे हैं. यूं कहें कि मोबाइल ने इनके जीवन को नया मिशन दिया है. ऐसे में समाज और उनके बीच संवाद की बाधा काफी हद तक हटी है.मूक बधिर बच्चे आसानी से अपने शिक्षकों,परिजनों और दोस्तों से कम्यूनिकेट कर रहे हैं.पहले होता था कि इन बच्चों की बातों को समझने के लिए शिक्षकों और परिजनों को उनकी बातें, उनकी भाषा और इशारों को समझना होता था,लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ती. सोशल मीडिया और एसएमएस के सहारे ये बच्चे आसानी से संवाद कर रहे हैं.
नयी तकनीक ने मूक बधिर बच्चों के लिए संवाद को काफी आसान कर दिया है.बच्चे वीडियो कॉल से विचारों को समझ रहे हैं. अब बच्चे मोबाइल पर अपने ग्रुप में सवालों का आदान-प्रदान कर रहे हैं.सवाल बना कर डिस्प्ले कर रहे हैं.डॉक्यूमेंट बनाकर भेज रहे हैं.वहीं इसी मंच पर शिक्षक इसकी जांच भी कर रहे हैं,जिससे बच्चों, उनके अभिभावकों और शिक्षकों को काफी लाभ पहुंच रहा है.बेशक कोरोना काल में अभिभावकों और शिक्षकों ने सोचा कि शायद ऑनलाइन मंच पर ऐसे मूक-बधिर बच्चों की शिक्षा संभव नहीं हो पायेगी, लेकिन इन बच्चों ने अपनी समझदारी और तर्क से इसे सफल बनाया.खुद को फेसबुक,इंस्ट्राग्राम और व्हाट्सएप की केयरिंग और शेयरिंग तकनीक से अपडेट किया.जहां पहले बच्चों को समझाने के लिए अभिभावकों को शिक्षकों से लगातार संपर्क में रहना पड़ता था, वहीं अब बच्चे संवाद की नयी तकनीक से खुद चीजों को समझ रहे हैं.
मूक बधिर बच्चों को ओरल और साइन लैंग्वेज के माध्यम से पढ़ाया जाता है. ओरल मतलब बोल कर समझना,ऑराल मतलब सुनकर समझना और साइन लैंग्वेज का अर्थ होता है कि संकेत के माध्यम से यानी कि समझने के लिए सांकेतिक भाषा के माध्यम से वार्तालाप करना. इन तीन माध्यमों से ही मूक बधिर बच्चों को पढ़ना, सुनना और लिखना सिखाया जाता है.ये बच्चे सुन और बोल नहीं सकते हैं, लेकिन बातों को समझ सकते हैं और पढ़ सकते हैं.इसलिए इनके लिए साइन लैंग्वेज की जरूरत नहीं पड़ती है.केवल कुछ ही परिस्थितियों में बच्चों के लिए कभी कभार विशेष शिक्षकों को साइन लैंग्वेज का प्रयोग करना पड़ता है.आज कल सोशल मीडिया और तकनीक से मूक बधिर बच्चे भी सहज तरीके से संवाद कर ले रहे हैं.
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राज्य की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के हाथों मूक बधिर मोहित कुमार और आयुष राज को उनकी चित्रकारी के लिए पुरस्कृत किया गया था.बाल आयोग की ओर से इन बच्चों को नकद राशि भी दी गयी.ये बच्चे, खेलकूद,पेंटिंग और डांस तक करते हैं.
मेरी बेटी शैरॉन एंजेल तिग्गा कक्ष चार में पढ़ रही है. 11 साल की है. बचपन से ही सुन और बोल नहीं पाती है. डॉक्टरों ने बताया कि बेटी कभी बोल नहीं पायेगी. फिर तो सुनने की बात ही दूर थी. तब बहुत दुख हुआ, लेकिन आज खुशी है कि वह हर काम आसानी से कर लेती है.नयी तकनीक के साथ वह भी जमाने के साथ चल रही है. स्कूल के सहयोग से व्हाट्सएप ग्रुप बना लिया है, जो बहुत ही मददगार है. इससे होम वर्क और स्कूल के आदि कार्यों में बहुत आसानी हो जाती है. बच्चे एक दूसरे से बात कर पा रहे हैं.अपनी बातों को रख पा रहे हैं.
-पूनम कंडूलना, अभिभावक
मेरी बेटी मान्या कुमारी कक्षा पांच में पढ़ रही है. मेरे दो बच्चे हैं. बेटी मान्या सुन और बोल नहीं पाती है. कोरोना कोल से ऑनलाइन मंच ने बेटी को अपडेट कर दिया.बेटी खुद से ऑनलाइन क्लास कर लेती थी. मुझे कुछ परेशानी नहीं हुई.अब तो सोशल मीडिया के माध्यम से संवाद कर लेती है.मैं भी उसे यू ट्यूब पर वीडियो दिखाती हूं, जिससे बहुत जल्दी चीजों को समझ जाती है.
-अनुराधा देवी, अभिभावक