मनोज सिंह, (रांची). पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए अफ्रीका की ‘बोमा’ तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा. इसके तहत एक रिजर्व के अंदर एक शंकु आकार की अस्थायी फेंसिंग (घेराबंदी) की जाती है. इसके अंदर बाघों के लिए हैबीटेट (पर्यावास) तैयार किया जाता है. यहां बाघों के खाने के लिए हिरण-चीतल व अन्य जानवर रखे जाते हैं. इसी की तलाश में बाघ रिजर्व के अंदर आ जाते हैं. बाघों का विशेष पर्यावास तैयार करने के लिए पीटीआर दूसरे राज्यों और चिड़ियाघरों से हिरण-चीतल व अन्य जानवर लाकर यहां रखेगा. 192 वर्ग किलोमीटर में फैले पीटीआर की इस योजना को नेशनल टाइगर रिजर्व अथॉरिटी ने सहमति जता दी है. नेशनल जू अथॉरिटी से भी जानवरों के परिचालन के लिए अनुमति मांगी गयी है. बोमा तकनीक का इस्तेमाल ‘कान्हा नेशनल पार्क’ में भी किया जा रहा है. रांची के जू से चीतल व हिरण पीटीआर में भेजे जायेंगे. पीटीआर के कुदरुम व बूढ़ा पहाड़वाले में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा. इस संबंध में पीटीआर के निदेशक कुमार आशीष ने कहा कि पीटीआर में चार बाघ होने का प्रमाण है. अभी 150 से अधिक ट्रैप कैमरे भी लगाये गये हैं. पग मार्क और स्टैक की जांच नियमित हो रही है. बाघों को स्थायी रूप से रखने के लिए पानी की व्यवस्था की जा रही है. उसके हिसाब से हैबीटेट तैयार किया जा रहा है. घासों को दुरुस्त रखने के लिए कई स्प्रिंकलर लगाये गये हैं. जलाशयों में सोलर पंप लगाये जा रहे हैं.
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