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मौत को हराया, अब जिंदगी से कर रहे दो-दो हाथ

कोरोना और उसके चलते हुए लॉकडाउन से रोजी-रोजगार की समस्या पैदा तो हुई है, पर यह स्थायी नहीं है. यह जरूर एक कठिन दौर है जो सिर्फ झारखंड या भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है. लेकिन इसे गुजर जाना है. कई लोग छोटी-छोटी परेशानियों, बाधाओं, दुखों से अवसाद में चले जाते हैं, जो उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है. लेकिन मानव जीवन अनमोल है. यह व्यर्थ गंवाने के लिए नहीं, बल्कि संघर्ष कर मिसाल बनाने के लिए है. प्रभात खबर इस गंभीर समस्या के अहम बिंदुओं को उजागर करने का प्रयास कर रहा है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 14, 2020 4:03 AM

आलोक सिंह, रांची : हादसे इंसान के हालात बदल सकते हैं, लेकिन हौसले मजबूत हों तो बदले हुए हालात को भी काबू में किया जा सकता है और जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया जा सकता है. कोरोना काल में बदले हालातों के सामने कई लोगों ने घुटने टेक दिये और आत्महत्या का रास्ता चुन लिया या फिर चुनने की कगार पर हैं. ऐसे लोगों के लिए मिसाल हैं सीआरपीएफ के कमांडेंट (द्वितीय कमान अधिकारी) रविशंकर मिश्रा. उनकी दृढ़इच्छा शक्ति के आगे मौत भी हार गयी. बम ब्लास्ट में शरीर के कई अहम अंग गंवा चुके श्री मिश्रा को देखते ही हताश हो चुके लोगों में भी जीने की इच्छा जाग जाती है.

छह साल पहले 13 मार्च 2014 को पलामू-चतरा बॉर्डर पर मनातू में बरामद केन बम को धुलकी नदी में नष्ट करने के दौरान हुए विस्फोट में श्री मिश्रा बुरी तरह घायल हो गये थे. उनके शरीर के दाहिने हिस्से के हर अंग गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया. दायां पैर उड़ गया, दायें हाथ की तीन उंगलियां उड़ गयीं, दायीं आंख क्षतिग्रस्त हो गयी. बुलेटप्रूफ जैकेट होने के कारण सिर्फ कमर का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त होने से बच गया.

तीन महीने गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में भर्ती रहे, जहां इलाज के बाद जान बची. जब पूरी तरह स्वस्थ हुए, तो जिंदगी दुश्वारियां लेकर उनके सामने खड़ी हुईं. परिवार की जिम्मेदारी के साथ खुद को जिंदा होने का एहसास भी दिलाना था. खैर! पत्नी काजल मिश्रा ने कदम-कदम पर हौसला दिया और श्री मिश्रा दोबारा जिंदगी की जंग लड़ने को उठ खड़े हुए.

जिंदगी के बारे में नजरिया : खुदकुशी करनेवाले व्यक्ति का परिवार उसके बाद रोज मरता है. दुख-सुख, हर्ष-विषाद, संपन्नता-विपन्नता, हार-जीत जीवनरूपी इंद्रधनुष के अलग-अलग रंगों की तरह हैं, जिनसे जीवन का सुंदर नजारा दिखता है. वह कहते हैं इसीजी की मशीन भी हमें यह बताता है कि जीवन तभी तक है, जब तक उतार-चढ़ाव है. जैसे ही एक सी लाइन चलने लगती है, तो समझो जीवन समाप्त हो जाता है.

प्रोस्थेटिक लेग लगाकर जाते हैं दफ्तर, परिवार की जिम्मेदारियां भी निभाते हैं : शरीर के अहम अंग गंवा चुके श्री मिश्रा अपनी दिनचर्या के सभी काम खुद ही करते हैं. घर में ज्यादातर समय वे ह्वील चेयर पर रहते हैं. जबकि दफ्तर जाने के समय वे प्रोस्थेटिक लेग (कृत्रिम पैर) लगा लेते हैं. रोजाना ठीक सुबह 10 बजे सेल सिटी स्थित घर से धुर्वा स्थित अपने ऑफिस पहुंच जाते हैं. श्री मिश्रा पांच जिलों – रांची, खूंटी, सिमडेगा, गुमला और लोहरदगा में सीआरपीएफ के सभी ऑपरेशन की मॉनिटरिंग करते हैं.

दिन भर की ड्यूटी के बाद शाम सात बजे घर लौटते हैं. पुत्र तनय मिश्रा (नौंवी कक्षा) और बेटी जीया मिश्रा (चौथी कक्षा) को पढ़ाते हैं. बचे हुए समय में प्रेरक कविताएं और समसामयिक विषयों पर ब्लॉग लिखते हैं. इसके अलावा श्री मिश्रा जरूरतमंदों की मदद करने से भी नहीं चूकते हैं. श्री मिश्र कहते हैं कि वह इंसान ही क्या जो किसी के काम न आये.

Post by : Pritish Sahay

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