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दिल्ली हाईकोर्ट से शिबू सोरेन को राहत, झामुमो की संपत्तियों की जांच पर 10 मई तक रोक

दिल्ली हाईकोर्ट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन को राहत मिली है. झामुमो की संपत्तियों की जांच पर अदालत ने 10 मई तक रोक लगा दी है और कोई भी कदम नहीं उठाने को कहा है.

रांची: दिल्ली हाईकोर्ट से झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन को राहत मिली है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने झामुमो की संपत्तियों की जांच पर 10 मई तक रोक लगा दी है और कोई भी कदम नहीं उठाने का निर्देश दिया है. कथित तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन से जुड़ी दो संपत्तियों की जांच पर सीबीआई रिपोर्ट दाखिल करने के बाद लोकपाल को 10 मई तक आगे कोई भी कदम नहीं उठाने को कहा गया है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने लोकपाल से शिकायत करनेवाले बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे को झामुमो की याचिका पर नोटिस जारी किया है.

लोकपाल के आदेश को दी गयी थी चुनौती
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की याचिका में लोकपाल के चार मार्च के आदेश को चुनौती दी गयी थी. इसमें झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी के स्वामित्व वाली दो संपत्तियों की जांच करने के लिए सीबीआई को निर्देश दिया गया था. इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने आगे की सुनवाई के लिए 10 मई की तारीख तय की है.

लोकपाल ने सीबीआई को जांच का दिया था निर्देश
लोकपाल ने सीबीआई को झामुमो से संबंधित दो संपत्तियों की जांच करने का भी निर्देश दिया है. लोकपाल ने बीजेपी के गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे की पांच अगस्त 2020 की शिकायत का निपटारा करते हुए यह निर्देश पारित किया था.
लोकपाल ने बीजेपी सांसद की शिकायत पर सीबीआई को झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन से जुड़ी कथित बेनामी संपत्तियों की छह महीने के भीतर जांच करने का निर्देश दिया है.

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राजनीतिक दल की हैं दोनों संपत्तियां
झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अरुणाभ चौधरी ने कहा कि दोनों संपत्तियां राजनीतिक दल की हैं. शिबू सोरेन की नहीं. चार मार्च का आदेश लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के तहत लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से परे था. इस दौरान उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि कानून के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ ही जांच शुरू की जा सकती है. किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं की जा सकती है. सीबीआई ने पिछली ही रिपोर्ट में कहा है कि संपत्तियां झामुमो की हैं. ऐसे में लोकपाल का आदेश अधिनियम के दायरे से बाहर चला जाता है.

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