रांची : झारखंड में वित्तीय वर्ष 2022-23 में नयी उत्पाद नीति लागू होने के बाद देसी शराब की खपत में लगतार गिरावट आयी है. इससे उत्पादन से लेकर राजस्व तक में कमी आयी है. राज्य में वर्ष 2019-20 में राज्य में देसी शराब की कुल खपत 116 लाख एलपीएल (लंदन प्रूफ लीटर) था, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में घट कर लगभग 30 लाख एलपीएल हो गया है. यानी चार वर्षों में देसी शराब की खपत आधी से भी कम हो गयी.
वर्ष 2021-22 के बाद देसी शराब की खपत में रिकॉर्ड कमी आयी है. उत्पाद विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, वर्ष 2021-22 में राज्य में 69 लाख एलपीएल देसी शराब की खपत हुई थी, जो वर्ष 2022-23 में घट कर लगभग 30 लाख एलपीएल हो गयी. वर्ष 2019-20 के बाद से देसी शराब की खपत में इससे अधिक कमी कभी नहीं हुई थी. वर्तमान वित्तीय वर्ष में इसकी खपत में और कमी आने की आशंका जतायी जा रही है.
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वर्ष 2022-23 में नयी उत्पाद नीति लागू होने के बाद राज्य में देसी शराब का उत्पादन प्लास्टिक के बोतल में करना बंद कर दिया गया. इसके बाद देसी शराब कांच की बोतल में बॉटलिंग करना अनिवार्य कर दिया गया. इस कारण शराब उत्पादन की लागत बढ़ गयी. कांच का बोतल राज्य के दूसरे राज्य से मंगानी होती है, जबकि प्लास्टिक बोतल स्थानीय स्तर पर मिल जाती थी. शराब कारोबारियों का कहना है कि लागत बढ़ने के कारण देसी शराब की कीमत काफी बढ़ गयी. देसी शराब की खपत कम होने का यह एक प्रमुख कारण है.
झारखंड शराब व्यापारी संघ के प्रदेश महासचिव सुबोध कुमार जायसवाल कहना है देसी शराब के बोतल में बदलाव से जो शराब 50 रुपये में मिलती थी, उसकी कीमत 70 से 80 रुपये तक हो गयी. श्री जायसवाल का कहना है देसी शराब की कीमत बढ़ने से अवैध शराब का कारोबार बढ़ा है. लोग देसी शराब के बदले अवैध तरीके से बन रही शराब कम कीमत में खरीद रहे हैं. इस राज्य में अवैध शराब के कारोबार को भी बढ़ावा मिल रहा है. संघ ने सरकार से मांग की है कि पूर्व की भांति देसी शराब का उत्पादन प्लास्टिक के बोतल में करने की अनुमति दी जाये.