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रांची में Designing Institute ने की अच्छी पहल, मूर्तिकारों को मिल सकता है नया प्रोफेशन

Designing Institute in Ranchi: रांची के एक डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट ने मूर्तिकारों के लिए अच्छी पहल की है. यह मूर्तिकारों को नया प्रोफेशन से जोड़ने की एक कोशिश है. इस इंस्टीट्यूशन में मूर्तिकार बतौर शिक्षक पढ़ा रहे हैं.

By Jaya Bharti | February 21, 2024 6:07 PM

रांची के एक डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट (Designing Institute) ने मूर्तिकारों के लिए अच्छी पहल की है. दरअसल, यहां मूर्तिकार को बतौर शिक्षक रखा गया है. इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर सह मैनेजर अविनाश वर्मा ने यह पहल की है. उन्होंने बताया कि मूर्तिकारों के पास जो स्किल होते हैं, उनसे NID, NIFT, UCEED (IIT) आदि की तैयारी कर रहे बच्चों को काफी मदद मिल सकती है. उन्होंने कहा, एक मूर्तिकार बचपन से ही अपनी कला से जुड़ा होता है और उससे बेहतर इस कला को कोई और नहीं सीखा सकता है. उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि स्टूडेंट्स को बेहतर करने में मदद मिले, साथ ही इस पहल से सीजनल कमाने वाले मूर्तिकारों को एक नया प्रोफेशन से जोड़ा जाए.

बच्चों में दिखा उत्साह, कहा- एयर ड्राई क्ले से काफी अच्छा है नेचुरल मिट्टी

डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट के बच्चे भी पढ़ने के इस नए तरीके से काफी खुश दिखे. अपनी पढ़ाई के प्रति उनकी दिलचस्पी और ज्यादा बढ़ी. बच्चों ने कहा कि अब तक हम पेपर, एयर ड्राई क्ले, आदि का इस्तेमाल करके क्राफ्ट बनाते थे. पहली बार प्राकृतिक मिट्टी का इस्तेमाल किया, जिससे काफी अच्छा अनुभव मिला. उन्होंने कहा कि बाजार में मिलने वाले एयर ड्राई क्ले काफी महंगे भी होते हैं, जबकि मिट्टी आसानी से मिल जाता है. वहीं उन्होंने यह भी कहा कि नेचुरल मिट्टी एयर ड्राई क्ले से काफी ज्यादा अच्छा भी है और इससे डिजाइन बनाना काफी मजेदार भी है.

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बच्चों ने भी किया बेहतरीन काम

बच्चों ने बताया कि मूर्तिकार ने अच्छे से पूरी प्रक्रिया बताई. इसके बाद कुछ होमवर्क भी दिया. इन होमवर्क पर भी बच्चों ने बेहतरीन काम किया और एक-से-बढ़कर-एक कलाकृति बनाई. कम समय में ही डिजाइनिंग के इन विद्यार्थियों ने बहुत कुछ सीख लिया. जिसकी झलक नीचे की तस्वीरों में देख सकते हैं.

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क्या कहते हैं मूर्तिकार

इंस्टीट्यूट में पढ़ाने आए मूर्तिकार पवन कुमार ने बताया कि साल में सिर्फ 6 महीने ही मूर्तिकारों को काम मिल पाता है. काफी मेहनत के बाद भी उतनी कमाई नहीं हो पाती है. ऐसे में बतौर शिक्षक एक इंस्टीटियूट में बच्चों को मूर्ति बनाने की क्लास देने का अनुभव काफी अच्छा था. जब उनसे पूछा गया तो कि क्या आप इस नए प्रोफेशन को भी अपनाना चाहेंगे, तो उन्होंने बड़ी ऊर्जा के साथ कहा “बेशक अपनाना चाहेंगे.”

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बच्चों को कला सीखाते मूर्तिकार

मूर्तिकार को बतौर शिक्षक का आइडिया कैसे आया?

संस्था के डिप्टी डायरेक्टर सह मैनेजर अविनाश वर्मा से जब पूछा गया कि एक मूर्तिकार को बतौर शिक्षक रखने का आइडिया कैसे आया, तो उन्होंने कहा कि झारखंड में बहुत से लोग हैं, जो आर्ट फील्ड हैं, और अपने-अपने क्षेत्र में माहिर हैं. मूर्ति बनाना हो, पेंटिंग करना हो, स्केचिंग करना हो, या कुछ और, आर्ट के अलग-अलग कैटेगरी हैं. बच्चे अपनी पढ़ाई में बेहतर कर सकें, उनका रिजल्ट अच्छा हो, इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना ऐसे लोगों के बुलाया जाए जो अपने आर्ट में माहिर हैं. उन्होंने कहा कि, मेरा मानना है कि सभी चीज किताब से नहीं सीख सकते, प्रैक्टिकल बहुत जरूरी है.

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मूर्तिकार और स्टूडेंट्स के साथ खुद भी शामिल हुए डिप्टी डायरेक्टर अविनाश वर्मा

“झारखंड के लिए फर्स्ट स्टेप लेना चाहता हूं”

डिप्टी डायरेक्टर अविनाश वर्मा ने कहा कि वे झारखंड के लिए फर्स्ट स्टेप लेना चाहते हैं. उन्होंने कहा, चूंकि झारखंड में ऐसे कई आर्टिस्ट हैं, जो सीजनल काम करते हैं और उसी से अपना जीवन बसर करते हैं. अगर हम इस फील्ड में भी उन्हें अपना आर्ट दिखाने अवसर दें, तो उनका जीवन आसान होगा. अच्छे अवसर मिलेंगे, तो वे अपनी कला से जुड़े रहेंगे. इस तरह कला को भी बचाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ये फर्स्ट स्टेप इसलिए है कि ऐसे लोगों की संख्या बहुत है, जो छिपे हुए हैं. ये पहल और लोगों तक या अन्य संस्थानों तक पहुंचेगी तो कुछ बड़ा और अच्छा जरूर हो सकता है.

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