रांची : सरकारी अस्पतालों में फंड रहने के बावजूद मरीजों को नहीं दिया जाता भोजन
स्वास्थ्य विभाग ने इस सर्वे के दौरान यह पता लगाने का प्रयास किया कि सरकारी अस्पतालों में बहाल स्वास्थ्य सुविधाओं का वास्तविक लाभ मरीजों को मिल रहा है या नहीं.
रांची : सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) का ऑपरेशन करानेवाले करीब 25 प्रतिशत मरीजों और उनके परिजनों को भोजन मुहैया नहीं कराया जाता है. वह भी तब, जब स्वास्थ्य विभाग की ओर से इस मद में अस्पतालों को पर्याप्त फंड मुहैया कराया जाता है. स्वास्थ्य विभाग के कॉलिंग हेल्थ एजेंट को टीबी मरीजों ने कई चौंकानेवाली बातें बतायी. सर्वे में पता चला कि महज 32% लाभुकों को ही इलाज के लिए प्रोत्साहन राशि मिलती है. केवल सात फीसदी लाभुकों ने ही कहा कि वे टीबी से संबंधित सभी सामान्य लक्षणों को पहचानते हैं. सरकारी अस्पतालों में चलायी जा रही विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर मरीजों और उनके परिजनों से टेलीफोनिक सर्वे के दौरान ऐसी कई खामियां उजागर हुई हैं. सर्वे रिपोर्ट में वार्डों के अंदर भर्ती मरीजों ने कम से कम दो बार चिकित्सकों के भ्रमण करने पर जोर दिया. मरीजों ने भोजन की गुणवत्ता में भी सुधार की जरूरत बतायी. हालांकि, 70% से अधिक लोगों ने रांची सदर अस्पताल में साफ-सफाई, डाक्टरों का व्यवहार और दवा व जांच की उपलब्धता को संतोषजनक बताया है.
स्वास्थ्य विभाग के टेलिफोनिक सर्वे में खुलासा
स्वास्थ्य विभाग ने इस सर्वे के दौरान यह पता लगाने का प्रयास किया कि सरकारी अस्पतालों में बहाल स्वास्थ्य सुविधाओं का वास्तविक लाभ मरीजों को मिल रहा है या नहीं. इसके लिए विभाग ने अपने कॉलिंग हेल्थ एजेंट के माध्यम से अस्पताल में भर्ती और इलाज करा चुके मरीजों व उनके परिजनों को कॉल कर फीडबैक लिया. इसके अलावा विभाग ने कॉलिंग हेल्थ एजेंट के जरिये 28 स्वास्थ्य योजनाओं की जमीनी हकीकत का भी पता लगाया़ इस संबंध में संबंधित ग्राम प्रधान-मुखिया से लेकर विधायक और सांसदों तक से प्रतिक्रिया ली गयी है. मुखिया ने 108 एंबुलेंस को लेकर, तो सांसद ने एंटी रैबीज की उपलब्धता को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करायी. इस पूरी कवायद की आंतरिक रिपोर्ट विभागीय के वरीय अधिकारियों को सौंप दी गयी है. वहीं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अभियान निदेशक ने जिला के चिकित्सा पदाधिकारियों को इस संबंध में पत्र लिखा है.
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