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Digital Detox: कहीं आपको डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत तो नहीं? ऐसे छुड़ाएं मोबाइल से पीछा

Digital Detox: केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान और रिनपास के मनोचिकित्सक भी मानते हैं कि डिजिटल डिटॉक्स जरूरी होता जा रहा है. इसके अच्छे परिणाम आ रहे हैं. यह एक प्रकार से नशे की लत से छुड़ाने के लिए किये जानेवाले डिटॉक्स के जैसा ही है.

रांची, मनोज सिंह : अगर किसी भी डिजिटल उपकरण (मोबाइल, लैबटॉप, डेस्कटॉप आदि) को कुछ समय के लिए छोड़ने पर आपको घबराहट या छटपटाहट होने लगती है, तो आप एक प्रकार के मनोविकार के शिकार हो रहे हैं. यह आपके दैनिक काम को प्रभावित कर रहा है. ऐसे में आपको इस लक्षण से बचने की जरूरत है, नहीं तो आनेवाले समय में यह एक बड़ी बीमारी का कारण हो सकता है. इसका एक इलाज डिजिटल डिटॉक्स है. इस पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान हो रहे हैं. केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी) और रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) के मनोचिकित्सक भी मानते हैं कि डिजिटल डिटॉक्स जरूरी होता जा रहा है. इसके अच्छे परिणाम आ रहे हैं. यह एक प्रकार से नशे की लत से छुड़ाने के लिए किये जानेवाले डिटॉक्स के जैसा ही है.

डिजिटल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग भी नशे की तरह ही है. कई बड़े लोग अब इसको खुद की थैरेपी में इस्तेमाल कर रहे हैं. हाल ही में सेल्स फोर्स के सीइओ मार्क बेनीऑफ ने 1000 से अधिक कर्मियों को काम से निकालने के बाद डिजिटल डिटॉक्स का सहारा लिया था. ऐसा उन्होंने खुद स्वीकार किया था. उन्होंने 10 दिनों तक किसी भी तरह के डिजिटल उपकरण का उपयोग सूचना या मनोरंजन के लिए नहीं किया था. सीआइपी में डिजिटल माध्यम के अत्यधिक उपयोग से होनेवाली बीमारी पर विशेष रूप से काम कर रहे मनोचिकित्सक सौरव खानरा बताते हैं कि निश्चित तौर पर यह एक टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन, इसका लिखित कोई इलाज का तरीका नहीं है.

हम वैसे लोगों को कुछ समय के लिए वैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूर रहने की सलाह देते हैं, जिससे दूर रहने से उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है. काम पर असर पड़ने लगता है. ऐसा सबसे अधिक मोबाइल से होता है. सलाह होती है कि अगर आप जरूरी काम भी कर रहे हैं, तो आधे घंटे के बाद कुछ देर के लिए ही उस उपकरण से दूरी बनायें. यह डिटॉक्स का छोटा तरीका है. लेकिन, अगर आपको लत लग गयी है, तो लंबे समय तक इन उपकरणों से दूर रहने की सलाह दी जाती है. इसका सकारात्मक असर पड़ता है. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग सोते समय ज्यादा मोबाइल का उपयोग करते हैं. यह गलत है. यह आपकी नींद को प्रभावित करता है. लगता है कि सोने से पहले मोबाइल देखाना चाहिए, इससे स्लिप डिसआर्डर की संभावना बनी रहती है.

इलाज का प्रभावशाली तरीका है ‘डिजिटल डिटॉक्स’

मोबाइल, मीडिया और कम्युनिकेशन जर्नल ने 2021 में डिजिटल डिटॉक्स पर एक लेख प्रकाशित किया था. इसमें स्मार्टफोन के समय में डिजिटल डिटॉक्स को इलाज का एक प्रभावशाली तरीका बताया था. इसमें कहा गया है किस्मार्ट फोन में सोशल नेटवर्क साइट का उपयोग, तुरंत रिस्पांस करना आदि मनुष्य के व्यवहार पर असर डालता है. इससे डिप्रेशन के लक्षण विकसित होते हैं. इसके लिए डिजिटल डिटॉक्स को इलाज के एक टूल के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

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मोबाइल की लत से कई प्रकार की बीमारियां हो रही हैं. इससे जुड़े कई मरीज अब इलाज के लिए आने लगे हैं. जैसे नशा छुड़ाने के लिए उससे दूर रहना एक ट्रिटमेंट का हिस्सा है. उसी प्रकार डिजिटल संक्रमण से बचने के लिए उससे कभी-कभी दूरी बनाये रखना जरूरी है.

-डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, मनोचिकित्सक, रिनपास

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