पुष्पा टेटे की पुस्तक पर परिचर्चा का आयोजन
रांची. पुरुलिया रोड स्थित सिमडेगा भवन में रविवार को पुष्पा सेकुन्दा टेटे की पुस्तक ”आसारी तेरेसा, एक आदिवासी महिला की संघर्षगाथा” पर परिचर्चा हुई. यह पुस्तक जशपुर की आदिवासी महिला आसारी तेरेसा की जिंदगी पर आधारित एक सच्ची कहानी है. परिचर्चा में कैरूबिम तिर्की, अलेक्सजेंडर टेटे, प्रमोदिनी मिंज, प्रमोद खेस, विजय बाड़ा, अनिमेष डुंगडुंग, अनिप खाखा, विकास किंडो, आयुष कुजूर और अनिल केरकेट्टा शामिल हुए.आदिवासी महिला की त्रासदीपूर्ण यथार्थ पर आधारित है किताब
कैरूबिम तिर्की ने कहा कि पुस्तक एक आदिवासी महिला की त्रासदीपूर्ण यथार्थ पर लिखी गयी है, लेकिन इस त्रासदी को उस महिला ने अपने साहस, जज्बे और कभी हार न मानने की भावना के साथ एक संघर्षगाथा में बदल दिया है. अलेक्सजेंडर टेटे ने कहा कि आसारी की कहानी आदिवासी औरतों के उन गुणों को दिखाती है जिनमें वे हमेशा संघर्ष करते नजर आती हैं. हर परिस्थिति में, हर हालात में. पति के अंडमान चले जाने के बाद वह अपने पांच बच्चों को अकेले पालती है और उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाती है.आसारी का पूरा जीवन संघर्ष करते
बीता
प्रमोदिनी मिंज ने कहा कि आसारी का पूरा जीवन संघर्ष करते बीता. लेकिन उसका एक ख्वाब था कि वह किसी भी हालत में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलायेगी. आसारी खुद अनपढ़ थी लेकिन उसे पता था कि सिर्फ शिक्षा ही वह जरिया है, जिसके माध्यम से उसके बच्चों का भविष्य संवर सकता है. पुष्पा टेटे ने कहा कि मई 2006 में पहली बार जशपुर और रायगढ़ जाने के बाद आसारी तेरेसा के बेटे-बेटियों के साथ मुलाकात में आसारी तेरेसा के बारे में जानने का मौका मिला. बाद की यात्राओं में मैंने उन तमाम जगहों का दौरा किया जो आसारी के जीवन से जुड़ा है. इस दौरान प्रमोद खेस, विजय बाड़ा आदि ने भी विचार दिये.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है