झारखंड के कुम्हारों को है प्रशिक्षण की जरूरत, डिजाइनर दीये और बर्तन ने बढ़ा दी है चुनौती
दीपावली पर झारखंड के विभिन्न जिलों के अलावा यूपी, कोलकाता, सिलीगुड़ी और बंता सहित अन्य शहरों से मिट्टी के सामान मंगाये जा रहे हैं. बंता की गणेश-लक्ष्मी मूर्ति और खिलौने जैसे हाथी, घोड़ा, ग्वालिन आदि की बिक्री हो रही है
रांची : दीपावली की दस्तक के साथ ही कुम्हारों की याद आती है. दीयों के त्योहार से एक हुनरमंद समाज भी जुड़ा है. इनकी व्यावसायिक पीड़ा और चुनौतियां भी हैं. अब इलेक्ट्रिक चाक, डिजाइनर दीये और बर्तन का जमाना आ गया है. उत्पादों ने मॉडर्न रूप ले लिया है. इसके उत्पादन की चुनौती भी कुम्हारों के सामने है. लेकिन आगे बढ़ने में पूंजी और प्रशिक्षण आड़े आ रही है. वहीं स्थानीय कुम्हारों का मानना है कि अगर झारखंड के कुम्हारों को मिट्टी से बनी पारंपरिक चीजों के अलावा रोजमर्रा का सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया जाये, तो उनका व्यवसाय दस फीसदी तक बढ़ सकता है.
दूसरों राज्यों से मंगाये जा रहे हैं सामान :
दीपावली पर झारखंड के विभिन्न जिलों के अलावा यूपी, कोलकाता, सिलीगुड़ी और बंता सहित अन्य शहरों से मिट्टी के सामान मंगाये जा रहे हैं. बंता की गणेश-लक्ष्मी मूर्ति और खिलौने जैसे हाथी, घोड़ा, ग्वालिन आदि की बिक्री हो रही है. वहीं कोलकाता के डिजाइनर दीये सहित अन्य सामान बाजार में बिक रहे हैं. इसके अलावा झारखंड के ठाकुर गांव और सिलीगुड़ी सहित अन्य जगहों से दीया कुम्हारों द्वारा मंगा कर जगह-जगह बेचा जा रहा है.
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ऑनलाइन भी मिलते हैं मिट्टी के बर्तन :
अब कुम्हार के बनाये गये बर्तन आदि बाजारों के अलावा ऑनलाइन साइट पर मिल रहे हैं. मिट्टी के बने तवा, कुकर, हांडी, ढक्कन, चम्मच, कटोरी जैसे आइटम ऑनलाइन आसानी से खरीदे जा रहे हैं. इसे काफी संख्या में लोग पसंद भी कर रहे हैं और खरीदारी भी कर रहे हैं.
दीपावली और गर्मी में आती है कुम्हारों की याद :
कुम्हारों का कहना है कि समर सीजन और दिवाली में ही कुम्हारों को याद किया जाता है. दीपावली में दीया व मिट्टी के खिलौने और समर सीजन में सुराही, मटका आदि के लिए लोग कुम्हार को याद करते हैं. गर्मी के दिनों में थर्मस, मटका, घड़ा, सुराही आदि बनाकर और दीपावली में दीया बनाकर परिवार का पालन पोषण करना कठिन है. उनका मानना है कि पहले खपड़ा जैसी चीजों का इस्तेमाल घर बनाने में किया जाता था. जिससे सालों भर काम मिलता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है. इस कारण से कुम्हार काफी पिछड़े हुए हैं.
अपग्रेड होने के लिए पूंजी की जरूरत:
समय की मांग के अनुरूप कुम्हारों को अपग्रेड होने की आवश्यकता है. समय के साथ नया सामान बनाने की ट्रेनिंग लेने की जरूरत है. लेकिन पूंजी, मार्केटिंग और मिट्टी के अभाव में अब कुम्हार अपने पारंपरिक पेशे से दूर हो जा रहे हैं. वह गुजरात, सिल्ली, कोलकाता, एमपी और यूपी सहित अन्य शहरों से मिट्टी का सामान मंगा कर बेच रहे हैं. जगदीश प्रजापति ने कहा कि अब मिट्टी नहीं मिलने से काम छोड़ कर बाहर से सामान मंगा कर बेच रहे हैं.
दिवाली में बंता से गणेश लक्ष्मी सहित अन्य मूर्तियां और कोलकाता से डिजाइनर दीया मंगा कर बेचने को मजबूर हैं. क्योंकि यहां पर मिट्टी और जलावन की लड़कियां इतनी महंगी हो गयी हैं कि बनाकर बेचना संभव नहीं है. सरकार और बैंक लोन की सुविधा मिल जाये तो अपने रोजगार को आगे बढ़ा सकते हैं.
रुद्र देव प्रजापति
झारखंड में मिट्टी की दिक्कत और जलावन दिक्कत कुम्हारों को हो रही है. मिट्टी के लिए उन्हें अब चार से पांच हजार प्रति गाड़ी देनी पड़ रही है. वह भी आसपास के क्षेत्र से मंगाना पड़ रहा है. इसके अलावा जलावन की कीमत बढ़ती जा रही है. अगर कुम्हारों को मिट्टी और सारी सुविधाएं मिल जायें, तो वह भी अपग्रेड होकर नयी-नयी चीजें बनाना सीख जायेंगे.
त्रिवेणी कुमार काशी, संरक्षक, कुम्हार महासभा
दीपावली को लेकर बाहर से समान मंगा कर बेचने के लिए मजबूर हैं. अगर पूंजी रहती तो पहले की तरह घर पर ही परिवार के सदस्य मिलकर सामान बनाते. लेकिन आर्थिक तंगी और पुरानी चीजों के प्रति लोगों का रुझान खत्म होने से कुम्हारों का मनोबल टूटता जा रहा है. इस कारण कुम्हार पेशे से दूर भी होते जा रहे हैं.
रेखा प्रजापति