झारखंड में डोभा योजना पूरी तरह से फेल, डूब गये सरकार के इतने करोड़ रुपये
राज्य सरकार ने पूरे राज्य में डोभा खुदवाने में करीब 900 करोड़ रुपये खर्च किये. लेकिन, विभागीय कर्मचारियों व पदाधिकारियों की लापरवाही से योजना अपने उद्देश्य से भटक गयी और आधे से ज्यादा डोभा बर्बाद हो गये.
Jharkhand News: तत्कालीन सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 में शुरू की गयी ‘डोभा योजना’ पूरी तरह फेल हो चुकी है. गांवों का जलस्तर बढ़ाने और बरसात के बाद खेतों में पटवन की वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए ‘गांव का पानी गांव में व खेत का पानी खेत में’ रोकने के उद्देश्य से यह योजना शुरू की गयी थी. बीते छह साल में राज्य सरकार ने पूरे राज्य में डोभा खुदवाने में करीब 900 करोड़ रुपये खर्च किये. लेकिन, विभागीय कर्मचारियों व पदाधिकारियों की लापरवाही से योजना अपने उद्देश्य से भटक गयी और आधे से ज्यादा डोभा बर्बाद हो गये. यानी योजना पर खर्च की गयी कुल राशि में से करीब 500 करोड़ रुपये डूब गये.
इधर, बड़ी संख्या में योजना के तहत स्वीकृत डोभा बने ही नहीं, जबकि उनका पैसा निकाल लिया गया. यानी डोभा निर्माण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां भी हुई हैं. गुमला जिले में तो 20 हजार डोभा गायब ही हो गये. वहीं, बड़ी संख्या में ऐसी जगहों पर डोभा बना दिये गये, जहां बरसात का पानी जाता ही नहीं है. गलत जगह पर डोभा बनाने से भी योजना फेल हो गयी और किसानों को योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. बचे-खुचे डोभा से कुछ किसान पटवन कर रहे हैं. जबकि, अधिकतर डोभा में मिट्टी भर गये हैं.
सरकारी आंकड़ों में 3.20 लाख डोभा का निर्माण हुआ राज्य में
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में छह वर्षों में करीब 3.20 लाख डोभा का निर्माण हुआ. कृषि विभाग की ओर से करीब 1.50 लाख और मनरेगा के तहत करीब 1.70 लाख डोभा का निर्माण कराया गया था. कृषि विभाग ने इस योजना पर करीब 400 करोड़ रुपये खर्च किये थे, जबकि मनरेगा के तहत डोभा निर्माण पर 500 करोड़ से अधिक की राशि खर्च की गयी. यानी डोभा निर्माण योजना पर करीब 900 करोड़ रुपये खर्च हुए. जरूरत के हिसाब से अलग-अलग साइज के डोभा का निर्माण कराया गया. इस पर 20 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक अधिक राशि खर्च की गयी.