रांची. रिम्स में मरीजों को सस्ती दवाएं (जेनरिक) उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि डॉक्टर ही इसमें सहयोग नहीं कर रहे हैं. रिम्स में हर माह ओपीडी में लगभग छह हजार मरीजों को परामर्श दिया जाता है. वहीं, रोजाना करीब 1800 भर्ती मरीजों का इलाज किया जाता है. लेकिन, इनमें से सिर्फ 10 फीसदी मरीजों को ही डॉक्टर जेनरिक दवा लिखते हैं. ऐसे में 90 फीसदी मरीज महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं.
जेनेरिक दवाओं पर 70 से 80 फीसदी तक की छूट
रिम्स में प्रधानमंत्री जनऔषधि की दुकानों पर जेनेरिक दवाओं पर 70 से 80 फीसदी तक की छूट दी जाती है. वहीं, अमृत फार्मेसी में जेनेरिक पर 80 फीसदी तक और ब्रांडेड दवाओं पर 40 फीसदी तक की छूट दी जाती है. लेकिन, डॉक्टर मरीजों की पर्ची पर वैसी दवा लिखते हैं, जो इन दोनों दुकानों में नहीं के बराबर रहती हैं. मरीजों का कहना है कि सर्जरी के सामान अमृत फार्मेसी में नहीं मिलते हैं. इसे बाहर की दुकानों से खरीदना पड़ता है. वहीं, कुछ मरीजों के परिजनों का कहना था कि पहले डॉक्टर यह दलील देकर बाहर की दवाएं लिखते थे कि कई बार ब्रांडेड दवाओं की आवश्यकता पड़ जाती है. लेकिन, अब परिसर में ब्रांडेड दवा की दुकान खुल गयी है. फिर क्यों नहीं लिखते हैं.
डॉक्टर बाहर से मंगाते हैं इंप्लांट
सर्जरी में उपयोग होने वाले इंप्लांट को भी डॉक्टर बाहर से मंगाते हैं, जबकि अमृत फार्मेसी में इंप्लांट उपलब्ध है. बाहर से इंप्लांट मंगाने पर मरीज के परिजनों को दोगुना पैसा खर्च करना पड़ता है. अमृत फार्मेसी के संचालक का कहना है कि डिमांड होने पर वह सभी प्रकार के इंप्लांट मंगाकर रखेंगे.
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जनऔषधि व अमृत फार्मेसी की दवा लिखें डॉक्टर : निदेशक
प्रभारी निदेशक डॉ राजीव गुप्ता ने रिम्स के डॉक्टरों को जनऔषधि और अमृत फार्मेसी में उपलब्ध दवाएं लिखने का निर्देश दिया है. डॉक्टरों को कहा गया है कि जेनेरिक और ब्रांड की सस्ती दवा दुकान परिसर में संचालित है, लेकिन मरीजों की पर्ची पर यहां की दवाएं नहीं लिखी जा रही हैं. विभागाध्यक्षों और यूनिट इंचार्ज को इसे सुनिश्चित करने को कहा गया है.