Doctors Day: डॉक्टरी का पेशा अब व्यावसायिक हो गया है. पहले की तरह मरीजों के प्रति हमदर्दी दिखायी नहीं देती है. नैतिकता और इंसानियत ढूंढ़ने से नहीं मिलती है. युवा डॉक्टर भी पैसा कमाने की जल्दीबाजी में हैं. ये बातें डॉक्टर्स डे पर पद्मश्री डॉ एसपी मुखर्जी ने प्रभात खबर के मुख्य संवाददाता राजीव पांडेय से विशेष बातचीत में कहीं. पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश.
सवाल : डॉक्टर और मरीजों के बीच बड़ा फासला बनता जा रहा है. आखिर इसकी वजह क्या है?
इसके लिए डॉक्टर और मरीज दोनों जिम्मेदार हैं. डॉक्टर मरीज को कस्टमर समझते हैं, तो मरीज भी उनको प्रोडक्ट की तरह समझते हुए इलाज कराते हैं. ऐसे में फासला तो बढ़ेगा ही. पहले डॉक्टरों में हमदर्दी थी, लेकिन आज के डॉक्टर व्यावसायिक हो गये हैं. आज के डॉक्टर जांच कराते हैं और दवा लिख देते हैं. पहले मरीज सर्दी-खांसी की समस्या लेकर आते थे, तो उनको दवा के साथ-साथ इससे बचाव के सुझाव भी दिये जाते थे, ताकि उन्हें दोबारा दवा लेने नहीं आना पड़े. अब अब वह नैतिकता और इंसानियत नहीं है. मेरी सलाह है कि युवा डॉक्टर 60 से 70 साल पहले वाले डॉक्टरों की कार्यप्रणाली को अपनायें.
सवाल : कई डॉक्टरों की फीस काफी महंगी है, ऐसा क्यों?
पहले के डॉक्टर पैसा कमाने की नहीं सोचते थे. इतनी ही फीस होती थी कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी उनके पास आकर इलाज करा सके. जिनके पास पैसा नहीं होता था, डॉक्टर मुफ्त में उनका इलाज कर दिया करते थे. आज 2,000 रुपये तक फीस है, जिस कारण आम आदमी उनके पास पहुंच नहीं पाता है. वहीं, फीस कम होने पर यदि कर्मचारी से मरीज या उसके परिजन गुहार लगाते हैं, तो डॉक्टर उनको देखने से मना कर देते हैं. मुझे तो समझ में नहीं आता कि आखिर इतना पैसा करेंगे क्या.
सवाल : अस्पतालों में इलाज इतना महंगा क्यों हो गया है?
अस्पतालों में इलाज महंगा इसलिए हो गया है कि डॉक्टरों को हर चीज में कमीशन चाहिए. 40 से 60 फीसदी कमीशन डॉक्टरों को मिल जाता है. पैथोलॉजी जांच, रेडियोलॉजी जांच और दवा सब में कमीशन तय है. कॉरपोरेट अस्पतालों में डॉक्टरों को टारगेट मिलता है, जिससे जरूरत नहीं होने वाली जांच का भी परामर्श करते हैं. जबकि सेलेक्टेड जांच की जरूरत है, अनावश्यक जांच की नहीं. वैसे ही अनावश्यक दवा की भी जरूरत नहीं है. सही डायग्नोसिस कर सीमित दवा लिखी जा सकती है.
सवाल : डॉक्टर और मरीजों के बीच बड़ा फासला बनता जा रहा है. आखिर इसकी वजह क्या है?
इसके लिए डॉक्टर और मरीज दोनों जिम्मेदार हैं. डॉक्टर मरीज को कस्टमर समझते हैं, तो मरीज भी उनको प्रोडक्ट की तरह समझते हुए इलाज कराते हैं. ऐसे में फासला तो बढ़ेगा ही. पहले डॉक्टरों में हमदर्दी थी, लेकिन आज के डॉक्टर व्यावसायिक हो गये हैं. आज के डॉक्टर जांच कराते हैं और दवा लिख देते हैं. पहले मरीज सर्दी-खांसी की समस्या लेकर आते थे, तो उनको दवा के साथ-साथ इससे बचाव के सुझाव भी दिये जाते थे, ताकि उन्हें दोबारा दवा लेने नहीं आना पड़े. अब अब वह नैतिकता और इंसानियत नहीं है. मेरी सलाह है कि युवा डॉक्टर 60 से 70 साल पहले वाले डॉक्टरों की कार्यप्रणाली को अपनायें.
सवाल : मेडिकल एजुकेशन में भी गिरावट आयी है?
आज के विद्यार्थी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. किसी तरह पास हो जाना है और प्रैक्टिस शुरू कर देना है. पहले जब हमलोग पढ़ाई करते थे, तो 16 से 18 घंटे तक अस्पताल को देते थे. एक-एक मरीज के साथ डॉक्टर शिक्षक विद्यार्थियों से डिस्कशन करते थे. स्टूडेंट भी सीखने की ललक से मरीज की बीमारी का पता लगाने की कोशिश करते थे.
सिर्फ पांच रुपये फीस लेते हैं डॉ एसपी मुखर्जी
लालपुर स्थित क्लिनिक में डॉ मुखर्जी सिर्फ पांच रुपये में मरीजों को परामर्श देते है. रिम्स के पैथोलॉजी विभाग में विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत डॉ मुखर्जी वर्ष 1966 से सस्ते दर पर इलाज कर रहे हैं. उनकी पढ़ाई पटना मेडिकल कॉलेज से हुई है. वर्ष 1959 में आरा से अपनी सेवा शुरू की. इसके बाद दरभंगा मेडिकल कॉलेज और फिर रिम्स में योगदान दिया.
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