झारखंड में हर एक लाख की आबादी में औसतन 30 लोग डॉग बाइट (कुत्ता काटने) के शिकार हो रहे हैं. इसमें आवारा और पालतू दोनों तरह के कुत्तों के द्वारा काटने के मामले शामिल हैं. इधर राज्य में कुत्ता काटने के आंकड़े बढ़े हैं. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 के सात माह (जनवरी से जुलाई तक) में लगभग 16500 लोग डॉग बाइट के शिकार हुए हैं. यानी हर माह राज्य में औसतन 2300 लोग कुत्ता काटने के शिकार हो रहे हैं. सात माह में राजधानी रांची में सबसे ज्यादा 3091 लोगों के कुत्ता काटने के मामले सामने आये हैं. वहीं गुमला में 2620, गिरिडीह में 1936 और देवघर में 1197 लोग डॉग बाइट के शिकार हुए हैं.
शहर में बढ़े केस, पालतू कुत्ते भी कर रहे नुकसान
ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्रों में डॉग बाइट के मामले बढ़े हैं. इनमें पालतू कुत्तों के द्वारा भी काटने की शिकायत आयी है. राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पहल शुरू की है. साथ ही झारखंड में रेबीज को अधिसूचित बीमारी घोषित करने का प्रस्ताव तैयार किया है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से महामारी रोग अधिनियम 1897 की धारा दो के तहत झारखंड महामारी रोग (रेबीज) विनियमन 2023 (द झारखंड एपिडेमिक डिजीज रेबीज रेगुलेशन 2023) बनाया गया है. इसे कैबिनेट में ले जाने की तैयारी चल रही है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत स्वास्थ्य मंत्रालय राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के माध्यम से पूरे देश में नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम चला रहा है.
राज्य में विजन 2030 तक रेबीज को करना है खत्म
ह्यूमन रेबीज एक वायरल जूनोटिक बीमारी है. यह संक्रमित कुत्ते के काटने से होती है. जूनोटिक बीमारी से रोग और मृत्यु को कम करने के दृष्टिकोण से झारखंड भी नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम चलाया जा रहा है. विजन 2030 तक रेबीज को खत्म करना है. रेबीज से होने वाली मौत शून्य करने का लक्ष्य है. केंद्र सरकार के निर्देशानुसार ह्यूमन रेबीज को नोटिफायबल डिजीज के रूप में झारखंड में अधिसूचित किया जाना है. केंद्र सरकार के निर्देश पर कई राज्यों ने भी रेबीज को अधिसूचित बीमारी घोषित की है.
कुत्ता पालने का शौक, लेकिन रजिस्ट्रेशन में रुचि नहीं
पंजीकृत कुत्तों को नियमित दवा देने से उनके काटने के बाद खतरे का अंदेशा कम रहता है. इसके विपरीत आवारा कुत्तों के काटने पर मरीज की सुरक्षा के उपाय नहीं किये जाने से खतरे का अंदेशा बना रहता है. रांची नगर निगम क्षेत्र में करीब 10 हजार पालतू कुत्ते घरों में रखे जाते हैं. शहर में कुत्तों की नसबंदी और वैक्सीनेशन का काम कर रही संस्था होप एंड एनिमल ट्रस्ट की मानें, तो लोगों को अपने पालतू कुत्तों के रजिस्ट्रेशन में रुचि नहीं है. जबकि इसका चार्ज मात्र 100 रुपये है. होप का कहना है कि इस राशि से हम कुत्ते का वैक्सीनेशन करते हैं. इसके अलावा ओनर को सर्टिफिकेट भी दिया जाता है.
Also Read: रांची में वफादार हो रहे हमलावर, तेजी से बढ़ रहा डॉग बाइट का मामलारोज 18-20 कुत्तों की ही नसबंदी
शहर में कुत्तों की नसबंदी का काम कर रही संस्था होप एंड एनिमल के पदाधिकारियों की मानें, तो संस्था वर्ष 2007 से रांची में नसबंदी का काम रही है. 16 सालों में 10,1494 कुत्तों की नसबंदी की गयी है. संस्था हर दिन बकरी बाजार स्टोर में 18-20 स्ट्रीट डॉग्स की प्रतिदिन नसबंदी करती है.
अभी भी 60 हजार कुत्तों की नहीं हुई नसबंदी
शहर में आवारा कुत्तों की संख्या पर लगाम लगाने की जिम्मेवारी रांची नगर निगम के पास है. इन कुत्तों की संख्या में वृद्धि नहीं हो, इसके लिए नगर निगम ने होप एंड एनिमल संस्था को कुत्तों की नसबंदी करने की जिम्मेवारी सौंपी है. दूसरी ओर शहर में अब भी 60 हजार कुत्तों की नसबंदी नहीं की जा सकी है. इस कारण खुले में घूमनेवाले आवारा कुत्तों की आबादी पर लगाम नहीं लग पा रहा है. अभी तक संस्था द्वारा 10,1494 कुत्तों की नसबंदी करायी गयी है. जबकि शहर में आवारा कुत्तों की संख्या 1.60 लाख के करीब है. 60 हजार कुत्तों की नसबंदी नहीं होने का असर यह हुआ है कि कुत्तों की आबादी पर लगाम ही नहीं लग रही है.
60 पालतू कुत्तों का ही निगम में निबंधन
शहर में पालतू कुत्तों की संख्या 10 हजार से अधिक है. लेकिन इसमें से मात्र 60 कुत्ते ही ऐसे हैं. जिनका निबंधन नगर निगम में कराया गया है. वहीं इन 60 में भी कितने कुत्ते खतरनाक नस्ल के हैं. इस संबंध में निगम के पास कोई जानकारी नहीं है.
Also Read: गुस्सा छोड़िये कूल बनिये, एंगर मैनेजमेंट से बदल सकती है जिंदगी100 में होता है निबंधन प्रमाण पत्र भी मिलता है
पालतू कुत्ते का निबंधन नगर निगम में मात्र 100 रुपये में होता है. इस 100 रुपये में ही कुत्ते के वैक्सीनेशन के साथ नगर निगम द्वारा रजिस्ट्रेशन का प्रमाण पत्र भी ओनर को दिया जाता है.
कुत्ता पालना है पसंद पर शहर को करते हैं गंदा
शहर में कुत्ता पालने वाले लोगों की संख्या में भले ही बढ़ोतरी हुई है. लेकिन उचित ट्रेनिंग नहीं दिये जाने के कारण अधिकतर कुत्ते शहर को गंदा करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं. शहर में ऐसे लोगों की संख्या हजारों में है, जो हर दिन अपने डॉग के साथ मॉर्निंग वॉक के लिए निकलते हैं. लेकिन सड़क किनारे ही इन्हें पॉटी कराने के लिए छोड़ दिया जाता है.
महानगरों में कुत्ता होता है जब्त, लगाया जाता है मोटा जुर्माना
डॉग रजिस्ट्रेशन के मामले पर अगर गौर करें, तो शहर में मात्र 60 कुत्तों के निबंधन का एकमात्र कारण नगर निगम की लापरवाही है. नगर निगम अगर सख्त रुख अपनाता, तो डॉग ओनर को मजबूरी में ही रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता. लेकिन निगम के लापरवाह रुख के कारण लोग निबंधन नहीं कराते हैं. वहीं दूसरी ओर देश के अन्य शहरों में पालतू कुत्ते का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है. अगर कोई पंजीयन नहीं कराता है तो संबंधित नगर निगम की टीम आकर डॉग ओनर पर जुर्माना लगाने के साथ-साथ डॉग को भी जब्त कर लेती है. फिर डॉग जितने दिन तक निगम के कब्जे में रहता है, उसके हिसाब से मालिक से जुर्माना वसूला जाता है.
मांस-मछली की दुकानों वाले क्षेत्रों में है सबसे अधिक कुत्तों का आतंक
आवारा कुत्तों के आतंक से आज शहर का हर मोहल्ला प्रभावित है. लेकिन इसमें भी सबसे अधिक प्रभावित उन क्षेत्रों के लोग हैं, जहां पर मांस मछली की दुकानें हैं. हर दिन इन दुकानों के आमने सामने आवारा कुत्ते जमावड़ा लगाकर बैठे रहते हैं. इन दुकानों द्वारा फेंके जा रहे अवशेष को ये कुत्ते दिन में खाते हैं. फिर रात में सुनसान सड़क पर गुजरते वाहनों पर एक साथ आक्रामक होकर काटने के लिए दौड़ते रहते हैं.
एंटी रेबीज के लिए ड्राइव चले, कुत्तों की नसबंदी हो
गली के कुत्ते को सामुदायिक डॉग के रूप में पहचान मिलना जरूरी है. उसे समाज के लोग गली का कुत्ता नहीं समझे. मैं पिछले 10 सालों से स्ट्रीट डॉग के लिए काम कर रहा है, इसलिए मेरा मानना है कि स्ट्रीट डॉग समाज का ही एक रूप है, जिसके साथ हमें जीना है. स्ट्रीट डाग की सबसे बड़ी परेशानी है कि उनका बंध्याकरण नहीं हो रहा है. इसके लिए एनिमल वेलफेयर बोर्ड राज्य में प्रभावकारी तरीके से काम नहीं कर पा रहा है. अगर स्ट्रीट डॉग को अगर समय पर खाना मिले, तो वह किसी को नहीं काटेंगे. समाज में कई लोग हैं, जो एनिमल लवर है. सभी एकजुट होकर उनके लिए काम करें. अगर कुत्तों को एक बार पत्थर मार देते है, तो उसके मन में भाव जाग जाता है कि इंसान ने चोट पहुंचायी है. स्ट्रीट डॉग रात में प्रहरी का काम करते है. जब सब लोग सो जाते है तो वह सेवा देता है. समाज उनके प्रति संवेदनशील नहीं है. स्ट्रीट डॉग को अगर समय पर भोजन मिलेगा, तो वह अक्रामक नहीं होंगे. कोरोना काल में लोग जानवरों को खाना खिला रहे थे, उसी तरह अभी भी करें. समाज में उनके प्रति लोगों में मानवता लाने के लिए जन जागरूकता चलाना चाहिए. एंटी रेबीज के लिए नगर निगम व एनजीओ को ड्राइव चलाना चाहिए. जीव और जानवर के प्रति सभी की जिम्मेदारी है. स्ट्रीट डॉग को लोग ऑडप्ट कर सकते हैं.
-कमलेश पांडेय, रिटायर मुख्य वन संरक्षक, भारतीय वन सेवा
छेड़े जाने पर ही उग्र होते हैं कुत्ते
अगर कुत्तों को प्यार करेंगे तो वह कभी किसी को नहीं काटेंगे. वह भी सामान्य पशुओं की तरह होते है. उनको छेड़ने पर ही वह उग्र हो जाते है और लोगों को काटने लगते है. इसलिए उनके प्रति लोगों में संवेदनशीलता लाने की जरूरत है. इसकी शुरुआत हर स्कूल में जागरूकता कैंप लगाकर करनी चाहिए, ताकि बच्चे अपने माता-पिता को समझा सकें और स्ट्रीट डॉग से प्यार करें. स्ट्रीट डॉग पर अगर कोई चक्का चढ़ा देता है, तो वह चक्का को जानता है. वह आदमी के पीछे नहीं डर से चक्का के पीछे दौड़ता है, ताकि दोबारा उसपर न चढ़ा दें. इसलिए स्ट्रीट डॉग के प्रति लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी. ट्रस्ट इनके लिए काफी काम कर रहा है.
-सौमेन मजुमदार, फाउंडर, एनिमल वेलफेयर ट्रस्ट
एंटी रेबीज इंजेक्शन लेने अस्पताल पहुंच रहे हैं बच्चे, बढ़ी चिंता
रांची शहर के विभिन्न मोहल्लों में आवारा कुत्तों का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है. खासकर छोटे बच्चे इसका शिकार बन रहे हैं और उन्हें स्कूल जाने से लेकर गली में खेलना तक मुश्किल हो गया है. कई मोहल्लों में आवारा कुत्ते छोटे बच्चों को काट कर घायल कर चुके हैं. इसके बाद भी इन कुत्तों से लोगों को राहत दिलाने की कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है. आवारा कुत्तों से मोहल्लों में रहनेवाले लोग दहशत में हैं.एंटी रेबीज इंजेक्शन लेने के लिए बड़ी संख्या में बच्चे अस्पताल पहुंच रहे हैं. कई मामले पालतू कुत्तों के द्वारा काटे जाने के भी शामिल रहते हैें. इनमें कई इतनी गंभीर स्थिति में अस्पताल पहुंच रहे हैं कि उन्हें डे केयर में भर्ती कर प्राथमिक उपचार देना पड़ रहा है. वहीं, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी रोज लोग इलाज कराने पहुंच रहे हैं.
अभिभावक बच्चों के बचाव के लिए रख रहे हैं डंडा
आवारा कुत्तों के हमले के भय से छोटे बच्चों का घर से बाहर निकलना कम हो गया है. कई अभिभावक अपने बच्चों को कुत्तों के भय से साथ लाते वक्त हाथ में डंडा लेकर चल रहे हैं. बीते कुछ महीनों से शहर के विभिन्न मोहल्लों में आये दिन आवारा कुत्तों के काटने की घटना हो रही है. पिछले एक महीना में करीब 4,755 लोगों ने सदर अस्पताल में एंटी रेबीज का सूई (इंजेक्शन) लगवायी है.
हर मोहल्ले में बच्चों पर कुत्ते कर रहे हैं हमला
आदर्श नगर में छह साल के बच्चे भाष्कर को घर के सामने खेलते वक्त आवारा कुत्तों के झुंड ने अचानक हमला कर हाथ को नोंच दिया था. वहीं, आवारा कुत्तों के ही एक झुंड ने कक्षा पांचवीं के स्कूली छात्र सोनू मुंडा के हाथ में झपट्टा मार कर उसे घायल कर दिया था.
डर के चलते 24 घंटे बंद रखना पड़ रहा दरवाजा
दीपाटोली रोड नंबर पांच के श्री बालाजी अपार्टमेंट के गार्ड मंटू कुमार का कहना है कि आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने से उन्हें हर समय मुख्य दरवाजा बंद रखना पड़ रहा है. इन दिनों आवारा कुत्ते ज्यादा आक्रामक दिखाई दे रहे हैं. इनमें से कई को गंभीर चोट है.
झारखंड के 13 नगर निकायों में होगी स्ट्रीट डॉग की गणना
वर्ष 2012 में हुई पशु गणना के अनुसार राज्य में कुत्तों की संख्या 5,23,526 थी. इसमें स्ट्रीट डॉग की संख्या 3,28,617 व पालतू कुत्तों की संख्या 1,94,909 है. हालांकि पिछले 10 वर्षों में इनकी संख्या में काफी वृद्धि हुई है. लेकिन पिछले चार साल में सिर्फ 40,507 कुत्तों को ही एंटी रेबीज वैक्सीन लगाया गया. वर्ष 2019-20 में 22,194, 20-21 में 9042, 21-22 में 6163 व 22-23 में 3018 कुत्तों को एंटी रेबीज का वैक्सीन लगा है.
इधर, स्वास्थ्य विभाग की ओर से शहरी क्षेत्रों में स्ट्रीट डॉग की गणना करने व इनके नियंत्रण को लेकर राज्य के 13 निकायों में अभियान चलाने का निर्देश दिया गया है. इसमें रांची नगर निगम, देवघर नगर निगम, धनबाद नगर निगम, चास नगर निगम, आदित्यपुर नगर निगम, हजारीबाग नगर निगम, मानगो अधिसूचित क्षेत्र, जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र, गिरिडीह नगर परिषद, रामगढ़ नगर परिषद, मेदिनीनगर नगर परिषद, साहिबगंज नगर परिषद व जुगसलाई नगरपालिका शामिल हैं. इस अभियान के तहत आवारा कुत्तों को पकड़ कर कैंप में लाया जायेगा. जहां उनका टीकाकरण और कृमि मुक्त किया जायेगा. साथ ही बंध्याकरण किया जायेगा.