राजीव पांडेय/ रांची. झारखंड में घरेलू कामगारों में 70% को महीना में मात्र 3,000 रुपये और 10% को अधिकतम 4,000 रुपये का वेतनमान मिलता है. बाकी 20% कामगार 2000 रुपये में भी काम करने को विवश हैं. घरेलू कामगारों में 40.9% शिक्षित हैंं. यह आंकड़ा झारखंड एंटी ट्रैफिकिंग नेटवर्क और स्पार्क रांची द्वारा ‘झारखंड के घरेलू काम करनेवालों की स्थिति’ पर किये गये सर्वे में मिला है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 40.9% में 13.1 को लिखना और पढ़ना आता है, जबकि 22.6% ने पांचवीं तक, 3.6% ने मैट्रिक और 1.5% ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की है. कम वेतन और शिक्षित होने के बाद भी 68.6% को महीना में मात्र चार दिन की छुट्टी मिलती है. अन्य साप्ताहिक अवकाश और एग्रीमेंट के अनुसार छुट्टी लेते हैं. 50%से अधिक घरेलू कामगार दोपहर का भोजन (उनके द्वारा ले जाकर) अपने नियोक्ता के घरों में खाते हैं, लेकिन वहां के किसी भी व्यंजन का उपयोग नहीं करते हैं.
फर्श पर बैठकर उनको खाना भी खाना पड़ता है. वहीं कुछ तो अपार्टमेंट की सीढ़ियों के नीचे खा लेते हैं. अगर इनके आर्थिक पहलू की बात की जाये, तो लगभग 85% घरों में काम करनेवालों का कच्चा घर है और अलग किचन नहीं है. इसके अलावा उनको पीने के लिए कुएं के पानी पर आश्रित रहना पड़ता है. उनके कार्य करने के समय का भी आकलन किया गया है, जिसमें 47.6% आराम नहीं कर पाते हैं.
70% को महीने में मात्र ~3,000
10% को महीने में ~4,000
20% को महीने में ~2,000 से भी कम मिल रहे हैं
40.9% घरेलू कामगार शिक्षित
59.1% घरेलू कामगार अशिक्षित पाये गये
रिपोर्ट की मानें तो घरेलू कामगारों की संपत्ति भी संतोषप्रद नहीं है. 67 फीसदी के पास साइकिल, 8 फीसदी के पास प्रेशर कुकर, 34 फीसदी के पास रेडियो, 10 फीसदी के पास टेलीविजन और लगभग 6 फीसदी के पास बिजली के पंखे हैं. इनकी सामाजिक स्थिति भी बेहतर नहीं है. ईंधन, बिजली और शौचालय की सुविधा भी ठीक से नहीं मिलती है. इनकी आय 81.8 फीसदी श्रम करके और 10.2 फीसदी कृषि से होती है. वहीं 1.5 फीसदी के पास व्यवसाय और 6.6 फीसदी के पास आय के अन्य स्रोत हैं.
झारखंड एंटी ट्रैफिकिंग नेटवर्क और स्पार्क रांची द्वारा ‘झारखंड के घरेलू काम करने वालों की स्थिति’ पर चर्चा की गयी. कांटाटोली स्थित होटल कोरल ग्रैंड में आयोजित इस कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता तारामणि साहू ने कहा कि अनुसूचित जातियों व जनजातियों के उत्थान के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों को मिलकर काम करना होगा
ऑक्सफैम इंडिया की सपना सुरीन ने कहा कि डोमेस्टिक वर्कर्स जब अपनी समस्याएं लेकर पुलिस अथवा सरकारी संस्थानों के पास जाते हैं तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है़ कई बार उनके ही चरित्र पर सवाल उठाया जाता है. वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने कहा कि इन्हें मदद की जरूरत है.
Posted by: Sameer Oraon