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दिल्ली को न्यूयार्क या रांची को दिल्ली बनाने की कोशिश न करें, बोले- सोनम वांग्चुक

रांची पहुंचे रेमन मैग्सेस पुरस्कार विजेता सोनम वांग्चुक ने कहा कि रांची को दिल्ली या दिल्ली को न्यूयार्क बनाने की कोशिश न करें. एक आदमी के लिए 26 डिग्री सेसि के आसपास का तापमान अनुकूल होता है. हम 17-18 डिग्री सेसि में एसी चला देते हैं. एसी का तापमान एक डिग्री ऊपर करने से छह फीसदी एनर्जी बचता है.

Jharkhand News: रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सह हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव, लद्दाख के संस्थापक सोनम वांग्चुक ने कहा कि जब मैं रांची आ रहा था, तो सोचा था, यहां का तापमान 40 डिग्री सेसि के आसपास होगा. कमरे से बाहर ऐसा ही था. कमरे के अंदर आने पर लद्दाख की तरह का माहौल मिला. तापमान काफी नीचे था. असल में हम जिस व्यवस्था में रहते हैं, उसको बदलने की कोशिश करते हैं. दिल्ली को न्यूयार्क और रांची को दिल्ली बनाने में लग जाते हैं. इसी मानसिकता से उबरने की जरूरत है. जो व्यवस्था हमें मिली है, उसी को दुरुस्त करने की जरूरत है. एक आदमी के लिए 26 डिग्री सेसि के आसपास का तापमान अनुकूल होता है. हम 17-18 डिग्री सेसि में एयरकंडीशन चला देते हैं. एसी का तापमान एक डिग्री ऊपर करने से छह फीसदी एनर्जी बचता है. यह सोचने की जरूरत है कि ऐसा कर हम कितनी एनर्जी बचा सकते हैं. श्री वांग्चुक मंगलवार को सीसीएल में सीएसआर पर आयोजित दो दिनी सेमिनार में बोल रहे थे. इनकी जीवनी पर ही आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट’ बनी थी.

पहले मात्र पांच फीसदी मैट्रिक पास करते थे, आज 75 फीसदी पहुंचे

श्री वांग्चुक ने बताया कि 1988 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद लद्दाख के लिए कुछ करने की निर्णय लिया. नौकरी नहीं की. 1990 में वहां से मात्र पांच फीसदी विद्यार्थी ही मैट्रिक पास कर पाते थे. बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. अपना स्कूल डिजाइन किया. 2015 आते-आते 75 फीसदी विद्यार्थी मैट्रिक पास करने लगे. जो बच्चे कई बार के बाद भी मैट्रिक नहीं पास कर पाते थे, उनका स्किल विकसित किया. चार बार मैट्रिक फेल करनेवाला उनका विद्यार्थी समाजसेवी बना. लद्दाख काउंसिल में शिक्षा मंत्री बना. तीन बार फेल करनेवाली एक लड़की को समाजसेवा के लिए देश ने सम्मान दिया. ऐसी ही एक विद्यार्थी नामी कैमरा मैन बनी.

कई परेशानियां भी आयी

जब मैंने यह काम शुरू किया तो पैसे की कमी महसूस हुई. हम लोगों ने जुलाई 1988 में एक टीम बनाकर पर्यटकों को सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाना शुरू किया. दो माह में ही इससे 12 लाख रुपये जमा हुए. उस वक्त मैं 21 साल का ही था. इस पैसे से स्कूल खोला. यहां बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. मैंने तय किया था कि विदेशी चंदा नहीं लेंगे. करीब आठ-दस साल के बाद लद्दाख में राजनीतिक अशांति हो गयी. पर्यटक नहीं आने लगे. स्कूल चलाने में परेशानी होने लगी. तब विदेश से आनेवाले कुछ लोगों ने सहयोग का वादा किया था. उनसे संपर्क किया तो, कुछ लोगों ने अपनी शर्त पर पैसा देने की पेशकश की. मैंने उनकी शर्त मानने से इनकार कर दिया. कुछ लोगों ने मेरी शर्तों पर सहयोग किया. इस कारण मैं वहां अपने मुताबिक एक स्कूल खड़ा कर पाया.

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देश का एक-एक व्यक्ति राष्ट्र का सिपाही

श्री वांग्चुक ने कहा कि देश का एक-एक व्यक्ति राष्ट्र का सिपाही है. हरेक ईमानदार व्यक्ति नीचे स्तर से आर्थिक विकास में सहयोग कर रहा है. इनके आर्थिक सहयोग से ही देश आर्थिक रूप से मजबूत होगा. देश आर्थिक रूप से मजबूत होगा, तो हमारी सेना भी मजबूत होगी. लेह-लद्दाख जैसे सुदूर में काम कर रहे सेना के जवानों का हौसला बढ़ेगा.

भ्रष्टाचारी देश के सबसे बड़े दुश्मन

उन्होंने कहा कि कई लोग देश का पैसा नीचे स्तर तक नहीं जाने दे रहे हैं. इससे विकास का काम प्रभावित होता रहा है. ऐसे लोग एंटी नेशनल हैं. ऐसे लोग ही देश की दुश्मन है. देश के को बाहरी दुश्मन से ज्यादा ऐसे लोगों से लड़ने की है.

अब यूनिवर्सिटी खोलने की तैयारी

श्री वांग्चुक ने कहा कि वह अपनी सोच के हिसाब से एक यूनिवर्सिटी खोलने की तैयारी कर रहे हैं. इसके लिए 150 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. पैसा जुटाना मैंने शुरू कर दिया है. हाल में पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रुपये मिले हैं. मैंने इसे यूनिवर्सिटी बनाने के लिए दिया है. भारत सरकार ने 2014 में सीएसआर स्कीम शुरू किया था. इसके माध्यम से कमाई करनेवाली कंपनियां सामाजिक कार्य में पैसा दे सकती हैं. ऐसी योजना विश्व में कहीं नहीं है. अगर कोई संस्था उनको सहयोग करना चाहे, तो बात हो सकती है.

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