वर्जीनिया में कोरोना की दवा खोज रहे रांची के डॉ. अरुण सान्याल, जानिए क्या है अबतक की अपडेट

Coronavirus की दवा खोज रहे हैं रांची के डॉ अरुण सान्याल, वर्जीनिया में कर रहे शोध. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने शुरुआती कामयाबी के बाद 'रेमडेसीवीर' दवा के मेडिकल ट्रायल की अनुमति दे दी है. वर्जीनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में दवा पर शोध चल रहा है. शोध में लगी टीम में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं रांची के रहनेवाले डॉ अरुण सान्याल. प्रभात खबर के संवाददाता राजीव पांडेय ने व्हाट्सएप्प के जरिये उनसे बातचीत की.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 8, 2020 4:10 PM
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Coronavirus Outbreak, Ranchi News: कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में खौफ है. मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में जब किसी दवा या वैक्सीन की बात होती है, तो लोगों की उम्मीद जग जाती है. मलेरिया की दवा हाइड्रो क्लोरोक्वीन के बाद प्लाज्मा थेरेपी के बेहतर परिणाम से डॉक्टरों व वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ा है. अब सबसे बड़ी उम्मीद अमेरिका में चल रहे ‘रेमडेसीवीर’ दवा के शोध पर टिक गयी है.

अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने शुरुआती कामयाबी के बाद ‘रेमडेसीवीर’ दवा के मेडिकल ट्रायल की अनुमति दे दी है. वर्जीनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में दवा पर शोध चल रहा है. शोध में लगी टीम में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं रांची के रहनेवाले डॉ अरुण सान्याल. प्रभात खबर के संवाददाता राजीव पांडेय ने व्हाट्सएप्प के जरिये उनसे बातचीत की.

रेमडेसीवीर दवा कोरोना वायरस को खत्म करने में कितनी कारगर है? क्या इससे कोरोना संक्रमित पूरी तरह ठीक हो सकते हैं?

रेमडेसीवीर एक एंटी वायरल दवा है. यह सीधे तौर पर कोरोना वायरस पर हमला करती है. यह शरीर में वायरस को बढ़ने नहीं देती है. कोरोना के इलाज में दो बातें ध्यान देने योग्य हैं. पहला- वायरस नहीं बढ़ने दिया जाये. दूसरा- वायरस से खराब रसायन को तैयार होने से रोका जाये. रेमडेसीवीर दवा से बहुत कामयाबी मिल रही है. यह दवा पूरी तरह से शरीर के वायरस को खत्म नहीं करता है, लेकिन फायदा बहुत मिला है. शुरुआत में जिनको यह दवा दी गयी, वह अन्य मरीजों से पहले अस्पताल से स्वस्थ होकर गये. बीमारी शुरू होते ही, जिनको यह दवा दी गयी उनके लिए कारगर साबित हुआ. जिनका इलाज 10 दिन पहले से चल रहा था, उनको दवा देने पर यह ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा पाया. इससे हम इस नतीजे पर पहुंचे कि बीमारी की शुरुआत में यह दवा बेहतर काम करता है. अभी इसे मैजिक दवा नहीं कहा जा सकता है.

कोरोना वायरस में अक्सर देखने को मिल रहा है कि अधिकांश लोग बिना दवा के ही ठीक हो रहे हैं, यह कितना सही है?

कोरोना वायरस के तीन स्टेज हैं. पहले स्टेज में जब किसी को सर्दी, खांसी, बुखार व गले में दर्द की समस्या है, तो वह अपने अाप ठीक हो जाता है. इसकी संख्या बहुत अधिक है. गले की बीमारी के बाद जिनकी इम्युनिटी ठीक नहीं होती है, उनको निमोनिया होने लगता है. दोबारा बुखार व सांस लेने की समस्या होने लगती है. यह दूसरा स्टेज होता है. इस स्टेज में रेमडेसीवीर दवा कारगर साबित हो रही है. निमोनिया के कारण फेफड़ा काम करना कम कर देता है. तीसरे स्टेज में फेफड़ा में खून का थक्का जम जाता है. ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है. दूसरे स्टेजवाले मरीजों के लिए यह दवा बहुत कारगर साबित होती है, लेकिन थर्ड स्टेज की दवा में यह फायदा नहीं पहुंचाता है. एक टीम बिना दवा के ठीक होनेवालेे लोगों पर शोध कर रही है. इसका रिजल्ट आने के बाद इस स्तर पर भी शोध बढ़ाया जायेगा.

भारत में कोरोना को आप किस स्टेज में मान रहे हैं. क्या भारत की स्थिति अभी ठीक है?

भारत में कोरोना अभी शुरुआती दौर में है. अभी समस्या बढ़ रही है. अमेरिका की तरह भारत भी बड़ा देश है. हर क्षेत्र व राज्य अलग-अलग हैं. देखने की जरूरत यह है कि किस क्षेत्र में कितनी तेजी से बढ़ रहा है? वहां कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ने का कारण क्या है? किस सिस्टम को अपनाया जाये कि बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सके? डॉक्टर व पारा मेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित करना होगा. उपकरण तैयार करने होंगे. सब जिम्मेदारी सरकार की नहीं होती है. हर व्यक्ति को जिम्मेदार बनना होगा. हर व्यक्ति अपने स्तर से प्रयास करे. दर्जी मास्क बनायें. उपकरण बनानेवाली कंपनिया वेंटिलेटर तैयार करें. दवा कंपनियां सेनिटाइजर का निर्माण करें. यहां इस स्तर पर ही काम हो रहा है. ऐसी बात नहीं है कि भारत के पास टेक्नाेलॉजी नहीं है, लेकिन सोसाइटी को जिम्मेदारी उठानी होगी.

रांची से वर्जीनिया तक का सफर : जैसा डॉ सान्याल ने कहा

मेरे दादाजी व पिताजी ने रांची के कडरू बाइपास के पास घर बनाया. दादाजी सुरेंद्रनाथ सान्याल एजी ऑफिस के पहले एकाउंट ऑफिसर थे. मेरे पिता केंद्र सरकार के हेल्थ सर्विसेज में अधिकारी थे. रिम्स (उस समय आरएमसीएच) में एमबीबीएस का मेरा बैच 1976-77 था. मेरा बैच 1975 होता, लेकिन जयप्रकाश मूवमेंट के कारण सत्र एक साल देर शुरू हुआ. दो साल यानी एमबीबीएस प्रथम वर्ष आरएमसीएच में पढ़ा. इसके बाद मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज दिल्ली में स्थानांतरण करा लिया. वहां से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर अमेरिका चला गया. पहले रांची की आबोहवा शांत व शुद्ध थी, पता नहीं अब कैसा माहौल है. हंडरू, जोन्हा फॉल व रजरप्पा में मां का मंदिर हम अक्सर देखने जाते थे.

परिचय : एक नजर में

  • एमबीबीएस : मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (एक साल आरएमसीएच में पढ़ा)

  • आरएमसीएच (रिम्स) : बैच 1976-77

  • वर्तमान में वर्जीनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं

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