Jharkhand News: 1932 का खतियान (1932 Khatian News) नहीं, झारखंड में जमीन स्थानीयता का आधार होना चाहिए. हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सरकार के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव (Dr Rameshwar Oraon) ने यह बड़ा बयान दिया है. प्रभात खबर संवाद (Prabhat Khabar Samvad) में झारखंड प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और अनुसूचित जनजाति आयोग के चेयरमैन रह चुके डॉ रामेश्वर उरांव ने पूछा कि क्या संविधान ऐसा कहता है? उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि स्थानीय नीति होनी चाहिए. झारखंड, बिहार से अलग होकर राज्य बना. हमने भी बिहार में जमीन खरीदी थी. उसे बेच दिया. अगर मैंने अपनी जमीन नहीं बेची होती, तो मैं भी बिहारी होता. मुझे भी लोग बाहरी कहते. अच्छा लगता क्या.’
डॉ रामेश्वर उरांव (Rameshwar Oraon) ने परोक्ष रूप से 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति का विरोध किया है. डॉ उरांव ने कहा, ‘मेरा मानना है कि झारखंड में जिसकी जमीन है, उसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए. उन्होंने साथ ही जोड़ा कि अलग-अलग समय में यहां जमीन का सर्वे हुआ. कई जिलों में वर्ष 1927 से 1934 तक सर्वे चला. हजारीबाग में 1927 से 1934 तक सर्वे हुआ. बुंडू व तमाड़ जैसे एक-दो जिलों में 1932 में सर्वे की बात कही गयी है. इसके बाद रिवीजनल सर्वे भी हुआ.’
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उन्होंने कहा कि वह इस बात के हिमायती हैं कि जमीन के आधार पर स्थानीयता तय हो. उन्होंने कहा कि आजादी से पहले भी यहां लोग आकर बस गये थे, तो क्या उन्हें बाहरी कहेंगे? झारखंड में अनुसूचित जनजाति ही नहीं, बल्कि अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की जमीन भी कोई नहीं खरीद सकता है. यह गलत है. आज लोग बाहर से आ रहे हैं और जमीन खरीद रहे हैं, यह गलत है. हम इसके खिलाफ हैं.
झारखंड के वित्त मंत्री ने कहा कि छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) और संताल परगना टेनेंसी ऐक्ट (एसपीटी) में व्यवस्था की गयी है कि कोई भी व्यक्ति एससी, एसटी व ओबीसी की जमीन नहीं खरीद सकता है. लेकिन, आज के समय में बड़े पैमाने पर इनकी जमीनों की खरीद-बिक्री हो रही है. यह गलत है.
झारखंड के वित्त मंत्री ने कहा कि हमारे यहां एक पुरानी कहावत है- दोना तो देबे, लेकिन कोना नईं देबे. यानी बाहरी लोगों को खाना खिला दो, लेकिन जमीन कभी मत देना. श्री उरांव ने कहा कि हम अब भी कहते हैं कि झारखंड के लोग अपनी जमीन बचाकर रखें, उसे बेचें नहीं. जहां तक 1932 के खतियान के विरोध का सवाल है, लोग विरोध नहीं कर रहे हैं. अपनी बात रख रहे हैं.
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उल्लेखनीय है कि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने 1932 के खतियान को स्थानीय नीति का आधार बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की अगुवाई में चल रही गठबंधन सरकार की सहयोगी पार्टी कांग्रेस के कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने भी इस पर सवाल खड़े किये हैं. डॉ उरांव ने इसे विरोध मानने से इंकार कर दिया है.