झारखंड के ड्रैगन बोट खिलाड़ियों की प्रतिभा पर्याप्त सुविधा नहीं मिलने से बेकार हो रही है. इनके पास प्रैक्टिस के लिए एक भी ड्रैगन बोट नहीं है. कई जगह फरियाद करने के बाद भी जब कहीं से इन्हें कोई मदद नहीं मिली, तो मजबूरी में इन खिलाड़ियों ने सूद पर 50 हजार रुपये का कर्ज लिया. अब उस पैसे से एक पुराने ड्रैगन बोट की मरम्मत में जुटे हैं.
बोट के अभाव में खिलाड़ियों ने देसी जुगाड़ लगाया है. इन्होंने पतरातू डैम में बांस का प्लेटफॉर्म बनाया है. इसी पर सवार होकर सभी खिलाड़ी घंटों चप्पू चलाने की प्रैक्टिस करते हैं. डैम के बढ़ते-घटते जलस्तर के अनुसार प्लेटफॉर्म को ऊपर नीचे शिफ्ट करना पड़ता है.
डैम के आसपास के गांव नेतुआ, मेलानी, तालाटांड़, किन्नी, हरिहरपुर, बीचा के करीब 35 ऐसे खिलाड़ी हैं, जो देश में ड्रैगन बोट की विभिन्न प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार जीत चुके हैं. इस टीम में महिला व पुरुष दोनों शामिल हैं. इन खिलाड़ियों की प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र से करीब 25 खिलाड़ी हर बार झारखंड टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
टीम ने 2016 में असम में हुई नेशनल चैंपियनशिप में तीसरा, 2017 व 2018 में बिहार में हुई नेशनल चैंपियनशिप में तीसरा, 2022 के केरल में दूसरा स्थान पाया. अब इन खिलाड़ियों का लक्ष्य 2023 फरवरी में बिहार में होनेवाली नेशनल चैंपियनशिप है, लेकिन बोट के अभाव में ये खिलाड़ी सही ढंग से प्रैक्टिस नहीं कर पा रहे हैं.
झारखंड राज्य ड्रैगन बोट संघ के सचिव संतोष कुमार ने बताया कि ड्रैगन बोट फाइबर का होता है और इसकी कीमत चार से साढ़े चार लाख रुपये है. महंगा होने के कारण खुद से खरीद पाना संभव नहीं है, इसलिए रामगढ़ विधायक ममता देवी और एनटीपीसी से बोट उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया है.
ड्रैगन बोट की लंबाई लगभग 20-35 मीटर होती है और इसमें एक साथ 10 से 60 लोग बैठ सकते हैं. बोट के सबसे पिछले हिस्से में जो व्यक्ति होता है, उसे ‘स्टीयरर’ कहते हैं. बोट की गति और दिशा इसी स्टीयर द्वारा नियंत्रित की जाती है. स्टीयरर के आगे बैठनेवालो को ‘पैडलर्स’ कहा जाता है, जो नाव में आगे की ओर मुंह करके बैठते हैं और चप्पू चलाते हैं. इस बोट के सबसे आगे या सामने बैठनेवाले को ‘ड्रमर’ कहते हैं. ड्रमर पीछे की ओर मुंह करके बैठता है और सभी पैडलर्स का उत्साह बढ़ाता है.