भारत की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जीवन की 4 कहानियां करेंगी प्रेरित
द्रौपदी मुर्मू ने आज देश के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लीं. इसके साथ ही वो भारत पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गयीं हैं. उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा हुआ रहा है. ऐसे में आज आपको उनके जीवन से जुड़े किस्से जरूर जानना चाहिए.
रांची : दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज नयी अंगड़ाई ले रहा है. करीब 140 करोड़ जनसंख्या वाला हमारा भारत अपने पहले नागरिक के तौर पर आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला द्रौपदी मुर्मू को आसीन कर दिया. देश के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर आज द्रौपदी मुर्मू शपथ ने ले लीं.
गौरतलब है कि द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल (2015- 2021) भी रह चुकी है. इस दौरान उनका कार्यकाल पूरी तरह बेदाग रहा था. राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाये जाने के बाद लोग जीवन के संघर्ष के बारे में जानना चाह रहे हैं. ऐसे में आज हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़े 4 किस्से बताने जा रहे हैं जो आपको प्रेरित भी करेगी.
उफनता नाला पार किया
ओड़िशा के रायरंगपुर के छोटे से गांव बैदापोसी में अभावों में पली-बढ़ीं द्रौपदी मुर्मू के बारे में उनके शिक्षक बासुदेव बेहरा बताते हैं कि एक बार भारी बारिश से गांव का नाला उफना रहा था. उफनते नाले को तैर कर पार करते हुए वह स्कूल पहुंचीं.
मंत्री से कहा-मुझे पढ़ना है
शिक्षक के साथ भुवनेश्वर पहुंचीं द्रौपदी मुर्मू एक कार्यक्रम के दौरान मंच पर चढ़ गयीं और तत्कालीन मंत्री कार्तिक टुडू से कहा-मेरे गांव में हाइ स्कूल नहीं है, मुझे आगे पढ़ना है. जिसके बाद उनका दाखिला भुवनेश्वर के आदिवासी आवासीय स्कूल में हुआ.
चुनाव के लिए मनाना पड़ा
बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहीं द्रौपदी मुर्मू को 1997 में वार्ड काउंसिल का चुनाव लड़ने के लिए भाजपा नेता उन्हें तीन माह तक मनाते रहे, तब जाकर राजी हुईं. आगे विधायक बनीं और फिर मंत्री. बड़े बेटे को खोने के बाद वह वापस घर लौट आयीं.
गांव के लिए रहीं पुती माई
भले ही द्रौपदी मुर्मू छह साल तक गवर्नर रहीं, लेकिन रायरंगपुर के लिए वह पुती माई (छोटी बच्ची) ही रहीं. जब भी वहां गयीं बिना सुरक्षा के चलतीं, सबसे मिलतीं. कहतीं- यहीं बड़ी हुई हूं, यही कर्मभूमि है, यहां के लोगों से नहीं मिलूंगी, तो दुख होगा.
Posted By: Sameer Oraon