मनोज सिंह, रांची
झारखंड में तेजी से बढ़ रहा सूखा नशे अर्थात हेरोइन, ब्राउन शुगर, ब्लैक स्टोन, गांजा का धंधा. महक थोड़ी देर में खत्म हो जाने के कारण नशापान करनेवाले इसका सेवन करते हैं. लोगों को पता नहीं चल पाता है. नशे के सौदागर अपने फायदे के लिए युवाओं को नशे की लत लगा रहे हैं. इसके लिए वह शैक्षणिक संस्थानों जैसे स्कूल, कॉलेज, तकनीकी संस्था, मेडिकल कॉलेज, कोचिंग सेंटर, हॉस्टल को निशाना बना रहे हैं. इनके एजेंट हर जगह मादक पदार्थ आसानी से पहुंचा देते हैं. व्हाट्सअप, मैसेज के माध्यम से विद्यार्थी ऑर्डर करते हैं. चंद मिनटों में उन्हें नशे की पुड़िया मुहैया करा दी जाती है.
इसका खामियाजा स्कूल व कॉलेजों के विद्यार्थी भुगत रहे हैं. मानसिक रूप से बीमार छात्रों के परिजन सीआइपी, रिनपास और निजी मनोचिकित्सक की क्लीनिक का चक्कर लगा रहे हैं. वहीं नशे में विद्यार्थी मारपीट पर भी उतारू हो जा रहे हैं. दुर्घटनाएं अधिक घट रही है. पिछले दिनों राज्य के एक प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान में नशे के कारण विद्यार्थियों में मारपीट हुई. 26 दिसंबर 2023 को राजधानी में 21 पुड़िया ब्राउन शुगर के अतिरिक्त ब्लैक स्टोन भी पकड़ा गया था. इसकी कीमत तीन करोड़ रुपये से अधिक की बतायी जाती है.
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नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के ताजा आंकड़े के मुताबिक, झारखंड में जनवरी 2023 से मई 2023 तक करीब 3366 किलो गांजा बरामद किये गये. इसकी कीमत करोड़ों रुपये में है. इस दौरान करीब 200 किलो के आसपास अफीम बरामद किया गया है. मार्च 2023 में ही 131 किलो अफीम झारखंड में पकड़ा गया था. वहीं 24000 किलो के आसपास पॉपी (अफीम बनाने का कच्चा माल) पकड़ा गया. 6000 हजार बोतल प्रतिबंधित दवाओं का बोतल भी पकड़ा गया था.
एनसीबी के आकड़े के मुताबिक, इस दौरान झारखंड में नारकोटिक्स मामलों से संबंधित कुल 577 मामले दर्ज किये गये. इसमें 738 लोगों को पकड़ा गया. जनवरी और फरवरी 2023 में ही करीब 400 से अधिक मामले दर्ज किये गये.
पहले सीआइपी जैसे संस्थान में सूखा नशा का इलाज करानेवाले मरीज कम आते थे. अब धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ रही है. शराब के अतिरिक्त चरस, अफीम, गांजा, हेरोइन के सेवन करनेवाले युवा इलाज के लिए आ रहे हैं.
डॉ संजय मुंडा, प्रभारी, नशा विमुक्ति केंद्र, सीआइपी
युवाओं में विशेषकर कॉलेज और तकनीकी संस्थानों के विद्यार्थियों में नशे की लत बढ़ी है. शराब की गंध से घर में या समाज में पकड़े जाने की आशंका होती है. इससे बचने के लिए युवा सूखे नशा का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह युवाओं को बर्बाद कर रहा है.
डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, मनोचिकित्सक, रिनपास