जागरूकता की कमी के कारण उठाना पड़ रहा है नुकसान, पशुपालकों को नहीं मिलता दवा व पूरक आहार में मार्जिन का लाभ
पशुपालकों को नहीं मिलता दवा व पूरक आहार में मार्जिन का लाभ
रांची : पशुओं के उपयोग में आनेवाली दवाइयों तथा फीड सप्लीमेंट की कीमत मेें मार्जिन का लाभ पशु पालकों को नहीं मिलता है. जागरूकता की कमी तथा छोटी-छोटी कंपनियों के दवा कारोबार में होने का नुकसान पशुपालकों को उठाना पड़ता है. वेटनरी मेडिसिन और फीड सप्लीमेंट के कारोबार पर सरकारी एजेंसियों की भी नजर कम होती है.
इस कारण पशु उत्पादों के प्रिंट रेट और बाजार दर में काफी अंतर होता है. 1200 से लेकर 1500 रुपये प्रिंट वाला फीड सप्लीमेंट बाजार में 400-500 रुपये में बिकता है. पशु चिकित्सा के पेशे में बड़ी संख्या में क्वैक (नीम-हकीम) हैं, जो पशुओं के इलाज के मानक का पालन नहीं करते तथा दवाओं की गुणवत्ता का ख्याल रखे बिना इसे बेचते भी हैं. ऐसे लोंगों पर नियंत्रण के लिए राज्य में वेटनरी काउंसिल का कार्यालय भी है.
यहां एक पशु चिकित्सक पदस्थापित भी हैैं. इन चीजों पर नजर रखने की जिम्मेदारी उनकी है, लेकिन यहां शिकायत नहीं आती. इस कारण पशुओं के इलाज में लापरवाही बरतने वालों पर कार्रवाई भी नहीं हो पाती है.
कई छोटी-छोटी कंपनियां बना रही है दवा :
पशुओं के लिए दवा उतत्पादन के कारोबार में बड़े-बड़े ब्रांड के साथ-साथ छोटी-छोटी कंपनियां भी हैं. इन छोटी कंपनियों के दवाअों में 60-70 फीसदी तक मार्जिन रहता है. 100 रुपये की दवा बाजार में 30 रुपये में बेची जाती है. पशुओं की दवा की दुकान कम होने से गांव-देहात में ये छोटी कंपनियां खूब प्रचार-प्रसार भी करती हैं. इन कंपनियों के प्रतिनिधि क्वैक या पशु चिकत्सिकों से सीधे बात करते हैं.
छोटी कंपनियों की दवा लिखने वाले पशु चिकत्सिक या क्वैक आम तौर पर पशुपालकों से फीस नहीं लेते हैं. जानवरों को देखने के बाद दवा खुद ही देते हैं. ऐसे क्वैक प्रिंट रेट में दवा बेचकर ही कमाई कर लेते हैं. छोटी-छोटी कंपनियां इस कारण दवाओं के उपयोग की विधि भी हिंदी में प्रिंट करती हैं, ताकि बिना पशु चिकित्सा की डिग्री वाले क्वैक, उपयोग की गाइड लाइन देख-समझ कर इसका प्रयोग कर सकता है.
बिना निबंधन के बिकता है फीड सप्लीमेंट :
पशुओं का फीड सप्लीमेंट बिना निबंधन के बिकता है. इसे बेचने के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती है. कस्बाई इलाके में फीड सप्लीमेंट का कारोबार करने वाले दुकानदार साथ में दवा भी बेचने लगते हैं.
वैक्सीन में भी है बड़ा खेल
जानवरों के वैक्सिनेशन की दवा में भी बड़ा खेल है. कुत्तों को दिये जाने वाले वैक्सिन का प्रिंट रेट 500-600 रुपये प्रति इकाई होता है. यह पशुपालकों को प्रिंट रेट में मिलता है. जबकि, पशु चिकत्सिकों को यह वैक्सीन 200 से 250 रुपये में मिलता है. वैक्सिन उत्पादन में भी बड़ी कंपनियों के साथ-साथ छोटी कंपनियां भी है.
वेटनरी काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइड लाइन के अनुसार केवल निबंधित पशु चिकत्सिक ही प्रैक्टिस कर सकते हैं. लेकिन, यह देखा जाता है कि बिना निबंधन वाले कई लोग जानवरों का इलाज करते हैं. इन पर कार्रवाई करने का प्रावधान है. लेकिन सही तरीके से शिकायत नहीं मिलने के कारण कार्रवाई नहीं हो पाती है.
posted by : sameer oraon